Saturday 14 March 2009

तेरा क्या होगा पाकिस्तान?


जनरल परवेज मुशर्रफ की हुकूमत के खिलाफ वकीलों ने 2007 में जैसा माहौल बनाया था, आज दो साल बाद पाकिस्तान के सड़कों-बाजारों में दृश्य दोबारा वैसा ही है। जजों की बहाली के लिए वैसा ही लांग मार्च, वैसी ही नजरबंदियां और गिरफ्तारियां, उसी तरह अमेरिका का रुख बदलने का इंतजार। फर्क सिर्फ इतना है कि राष्ट्रपति की कुर्सी पर आज मुशर्रफ की जगह आसिफ अली जरदारी बैठे हैं और पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था चू-चूं के मुरब्बे जैसी लगने के बजाय कमोबेश लोकतंत्र जैसी नजर आने लगी है। बवाल शुरू हुआ है नवाज शरीफ और उनके भाई शहबाज शरीफ को अदालती फैसले के तहत चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित किए जाने और केंद्र के आदेश पर पंजाब में उनकी पार्टी की सरकार बर्खास्त किए जाने से। इस फैसले पर शरीफ बंधुओं का एतराज बिल्कुल वाजिब है। इसमें कोई शक नहीं कि परवेज मुशर्रफ को सत्ता से हटाने में केंद्रीय भूमिका नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन की ही थी। मुशर्रफ की सरकार ने जिन आरोपों के तहत नवाज शरीफ को देश निकाला दिया था, उन्हीं पर फैसला सुनाते हुए पाकिस्तान के सवोर्च्च न्यायालय ने उन्हें पाकिस्तान में चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दिया है। सवाल यह है कि ये आरोप अगर इतने ही सच्चे हैं तो नवाज शरीफ से काफी पहले यह सजा जरदारी को सुनाई जानी चाहिए थी, जिनके घपलों के बारे में पाकिस्तान में काफी पहले से आम राय बनी हुई है। लेकिन मुशर्रफ के साथ गुपचुप समझौता करके पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता तो मलाई काट रहे हैं जबकि मुशर्रफ द्वारा ही नियुक्त जजों के फैसले से नवाज और शहबाज शरीफ का राजनीतिक करिअर खत्म किया जा रहा है। जिन चीफ जस्टिस इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी को परवेज मुशर्रफ ने बर्खास्त किया था, वे बेचारे आज भी वनवास झेल रहे हैं, जबकि उनकी बहाली के लिए चले आंदोलन में खुद पीपीपी के नेता अगली पांत में रहा करते थे। ले-देकर मामला कुछ सत्ता गुटों के बीच लड़ाई का है। कयानी और मुशर्रफ के चेहरों वाला एक गुट फौज का, गिलानी और जरदारी के दो अलग-अलग चेहरों वाला एक गुट पीपीपी का, एक गुट नवाज और शहबाज की अगुआई वाली पीएमएल-एन का और दोनों बड़ी पार्टियों के बीच अपने लिए रास्ता तलाशता एक गुट पीएमएल-क्यू का। सत्ता के इतने दावेदार, और सत्ता की औकात इतनी कि कट्टरपंथी आतंकवादी कभी उसे अपने सामने घुटने टेक कर शरियत लागू करने पर मजबूर करते हैं तो कभी दिन-दहाड़े एक विदेशी क्रिकेट टीम को निशाना बना कर साफ निकल जाते हैं।