Saturday 5 December 2009

भारत को क्या चाहिये....मँदिर या मस्जिद?

लो फिर आ गया छह दिसम्बर! किसी के लिये ये काला दिन है तो किसी के लिये विजय दिवस? लेकिन अयोध्या...? उसके लिये ये कौन सा दिन है? कोई जा कर पूछे अयोध्या से! उस अयोध्या से जहाँ जन्मेँ थे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम! वो राम जो भारत की आत्मा मेँ बसते हैँ! वही राम घर-घर मेँ पूजे जाते हैँ! वो तुलसी के राम हैँ....वो अहिल्या के राम हैँ,,,वो केवट के भी राम हैँ....हाँ वही राम जिनका नाम लेकर हसते हुए गाँधी ने अपने सीने पर गोलीयाँ खाई थी! ताकी इस देश की एकता और सँस्कृति को बचाया जा सके! तो क्या गाँधी का बलिदान काम आया?
मातम मनाने वाले आज मातम मनायेँगे...! उनके लिये ये बरसी है! बरसी जो हर बरस आती है! उनहेँ रोने और बिलखने का मौका देकर जाती है! उनहेँ मौका देती है इस बात का कि वो बता सकेँ इस देश मेँ अल्पसँख्यकोँ पर कितने अत्याचार हो रहे हैँ! उनके धार्मिक स्थलोँ को तोडा जा रहा है! वो कितने असुरक्षित हैँ! ये दिन उनहेँ राजनीति करने का एक अहम मौका देता है इसलिये इस दिन को तो कभी भुला ही नहीँ सकते! लेकिन हैरानी की बात ये है कि आस्ट्रेलिया महाद्वीप के बराबर जनसँख्या वाले वर्ग को अल्पसँख्यक बता कर उसे राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग करने का दुस्साहस करते हैँ और कोई उनहेँ कुछ नहीँ कहता! यही तो भारत की विशेषता है कि यहाँ निर्माण और विनाश करने वाली ताकतेँ एक साथ रहती हैँ!
राम थे तो रावण भी था! कृष्ण थे तो कँस भी था! गाँधी थे तो जिन्ना भी था! गाँधी ने प्रेम का सँदेश दिया तो जिन्ना ने नफरत को फैलाया! गाँधी ने अहिँसा को पूजा तो जिन्ना ने प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस मनाया! राम ने रावण का वध किया तो कृष्ण ने कँस का! लेकिन गाँधी, जिन्ना की नफरत का वध नहीँ कर पाये! कह सकते हैँ कि राम और कृष्ण तो अवतार थे लेकिन गाँधी कोई अवतार नहीँ थे... इसलिये गाँधी की अहिँसा जिन्ना की नफरत के आगे जीत नहीँ पाई! लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीँ है कि जिन्ना सही थे! जिस नफरत को हथियार बना कर जिन्ना ने पाकिस्तान लिया था आज आधी शताब्दी बीत जाने के बाद भी पूरा पाकिस्तान उसी नफरत की आग मेँ जल रहा है! शायद ये उन मासूमोँ की आहेँ हैँ जो बँटवारे की आग मेँ अपना सब कुछ लुटा बैठे!
भारत की स्वतंत्रता का इतिहास पढाने से ज्यादा ज़रूरी है कि इस देश की नई पीढी को बँटवारे का इतिहास पढाया जाये! उसे कभी ये क्योँ नहीँ बताया जाता कि क्योँ हुआ था देश का बटवारा? और क्या हुआ था बटवारे के बाद? मुझे अपने स्कूल के एक शिक्षक की वो बात याद आती है जो हमेँ इतिहास पढाया करते थे....वो कहा करते थे कि “इतिहास की अच्छी बातोँ को चाहे भुला दो.... लेकिन उसकी बुरी बातोँ को कभी नहीँ भुलाना! क्योँकि इतिहास खुद को दोहराता है!”
हाँ अयोध्या का इतिहास गुजरात मेँ दोहराया गया! लेकिन सवाल ये है कि ये इतिहास कब तक खुद को दोहरायेगा? आखिर हम कब इतिहास से सबक लेकर अपनी पुरानी गलतियॉ को दोहराना बँद करेँगे? कब तक हम अल्पसँख्यक - बहुसँख्यक, अगडे –पिछडे का रोना रोते रहेँगे? किसी को मँदिर चाहिये तो किसी को मस्जिद..! आज़ादी के वक्त हमारी जनसँख्या तीस करोड थी और आज चालीस करोड हिँदुस्तानी गरीबी की रेखा के नीचे बसर कर रहे हैँ! क्या सच मेँ हम विकास की तरफ बढ रहे हैँ! अगर ये विकास है तो ये कैसा विकास है जो सिर्फ एक वर्ग विशेष का ही भला कर रहा है और दूसरा वर्ग मूल्भूत सुविधाओँ के लिये भी तरस रहा है! हम आखिर ये क्योँ नहीँ समझ पा रहे कि आज हमारे सामने असली मुद्दे और असली चुनौतियाँ क्या हैँ?
द्वितीय विश्व युध्द के बाद बरबाद हो चुके देश जर्मनी और जापान थोडे ही समय मेँ फिर से दुनिया की महा शक्ति बन बैठे हैँ! और हम......? हम आठ नौ फीसदी की ग्रोथ रेट पर फूले नहीँ समा रहे! जबकि हमारे बच्चे इँडिया गेट और लाल किले पर भीख माँगते देखे जा सकते हैँ! कामनवेल्थ के मद्देनज़र सरकार दिल्ली से झुग्गीयोँ और भिखारियोँ को हटा रही है ताकि विदेशी मेहमानोँ को असली भारत की तस्वीर ना दिखे! गरीबी हटाओ के नारे के साथ इँदिरा गाँधी सत्ता मेँ आई थीँ! इस बात को अरसा बीत चुका! लेकिन गरीबी नहीँ हटी...अब हमारी सरकार गरीबोँ को हटा कर विदेशी मेहमानोँ के सामने भारत की साख बचाने की कोशिश कर रही है! सुरसा के मुह की तरह बढती गरीबी... और विस्फोटक होती हमारी जनसँख्या.....क्या आपको लगता है कि मँदिर-मस्जिद इस देश के लिये कोई मुद्दा है? कभी गये हैँ हमारे गावोँ मेँ...? कभी देखा है गाँवोँ मेँ बसने वाला हमारा भारत किस दयनीय स्थिति मेँ है? देश की इकोनामी तेज़ी के साथ ग्रोथ कर रही है! और उसी तेज़ी के साथ ग्रोथ कर रही है महँगाई और बेरोज़गारी! तेज़ी से बधती इस कागज़ी इकोनामी का फायदा आखिर किसे मिल रहा है? आम हिँदुस्तानी तो आज भी बेहाल है! घर उसके लिये एक सपना बन कर रह गया है! उच्च शिक्षा उसकी पहुँच से बाहर की बात हो गई है! रोज़गार उसे मिलता नहीँ! उस पर आसमान छूती कीमतेँ...! आखिर वो जाये तो जाये कहाँ? करे तो करे क्या? गरीबोँ के लिये बडी- बडी योजनाएँ बनाने वाली हमारी सरकारोँ को कडाके की सर्दी मेँ फुटपाथोँ पर सोते लाखोँ स्त्री-पुरुष क्या दिखाई नहीँ देते? या वो माटी की सँतान नहीँ! तो फिर क्योँ हैँ वो भूखे और बेघर? कौन दूर करेगा उनके कष्टोँ को? और कब अँत होगा उनके कष्टोँ का? क्या गरीब की झोपडी मेँ रात बिता देने से गरीबोँ के कष्टोँ का अँत हो जायेगा? ये वोट की राजनीति भी कमाल चीज़ है गरीबोँ को भी ज़िँदा रखेगी और गरीबी को मरने भी नहीँ देगी!
कोई सामान्य बुध्दि का मानुष भी इस बात को अच्छी तरह समझ सकता है कि इस देश मेँ गरीबी हटाने और जनसँख्या नियँत्रण के लिये जितना धन-बल खर्च किया गया है यदि उसका दस प्रतिशत भी सही रूप मेँ इस्तेमाल किया जाता तो आज हमारे सामने एक सशक्त और खुशहाल भारत की तस्वीर होती! जो सही मायने मेँ विश्व शक्ति के रुप मेँ स्थापित होने की दावेदारी कर रहा होता! भला हो नार्मन बारलोग का जिनकी बदौलत भारत मेँ हरित क्राँति आयी और भला हो इस देश के अन्न्दाता (किसान ) का जिसने अपने पसीने से खेतोँ को सीँचा और खुद भूखा रह कर इस देश की विशाल जनसँख्या का पेट भरा! हमारे यहाँ विदेशोँ से पढ कर आये कुछ विद्वान ये दावा करते नहीँ थकते कि कुछ समय के बाद हमारी इकोनामी ग्रोथ चीन को भी पीछे छोड देगी! अति- अति उत्साह मेँ वो कागज़ी हकीकत और ज़मीनी हकीकत के अँतर को भुला देते हैँ! वो ये भूल जाते हैँ कि हमारी अर्थ व्यस्था आत्म निर्भरता से अब भी कोसोँ दूर है! गाँधी का ग्राम स्वराज का सपना अब भी अधूरा है! और जब तक वो पूरा नहीँ हो जाता इस देश मेँ राम राज्य नहीँ आ सकता! फिर आप अयोध्या मेँ मँदिर बनाने मेँ चाहे कामयाब क्योँ ना हो जायेँ?