Wednesday 22 July 2009

कलाम की तलाशी पर संसद में हंगामा

दिल्ली हवाई अड्डे पर भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की तलाशी का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. सरकार ने इस मामले में अमरीकी एयरलाइन कंपनी को नोटिस जारी किया है.
संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में कई दलों के नेताओं ने यह मामला उठाया और सरकार से कॉंटिनेंटल एयरलाइंस का लाइसेंस रद्द करने की माँग की.
सदस्यों ने कहा कि इस तरह की लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और इस कंपनी को भारत में विमान सेवा देने की इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए.
प्रोटोकॉल के हिसाब से देश के पूर्व राष्ट्रपति होने के नाते एपीजे अब्दुल कलाम भारत के उन अहम शख़्शियतों में शामिल हैं जिन्हें इस तरह की तलाशी से अलग रखा गया है.
ये मामला 24 अप्रैल का है जब अब्दुल कलाम कॉंटिनेंटल एयरलाइंस के विमान से दिल्ली से अमरीकी शहर नेवार्क जा रहे थे.
सदस्यों का कहना था कि अब्दुल कलाम एक आम भारतीय नागरिक नहीं बल्कि देश के पूर्व राष्ट्रपति हैं और उनका अपमान एक तरह से भारत का अपमान है।
कुछ साल पहले अमरीकी हवाई अड्डे पर तत्कालनी रक्षा मंत्री जॉर्ज फ़र्नांडिस की तलाशी का मुद्दा उठा था. पिछले लोकसभा के अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने भी हवाई अड्डे पर तलाशी का विरोध करते हुए ऑस्ट्रेलिया का दौरा रद्द कर दिया था.

नारी ब्लाग के लिए खुश खबर...!

कौमार्य परीक्षण मामला : मप्र सरकार को नोटिस जारी
महिला आयोग ने शहडोल में कन्याओं के हुए कथित कौमार्य परीक्षण मामलें में जांच के बाद राज्य की मध्यप्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। सामूहिक विवाह समारोह से पहले लड़कियों का जबर्दस्ती कौमार्य परीक्षण कराने का मामलें ने तूल पकड़ लिया था। महिला आयोग ने इस पूरे मामलें में केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट भेज दी है। महिला आयोग ने इस पूरे मामलें को महिलाओं की अस्मिता के साथ खिलवाड़ बताया है और मानव अधिकारों को लेकर गंभीर मामला बताया है।

आग से घिरा है भारत !

पाकिस्तान में जो स्थिति है, उसे अशांति कहना सचाई से आंख मूंदना है। पाकिस्तान में आज सत्ता का कोई एक निश्चित केंद्र नहीं रह गया है। न चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बने आसिफ अली जरदारी, न उनसे चुनाव हारने के बाद भी पाकिस्तानी राजनीति में खासी जगह रखने वाले नवाज शरीफ और न वह फौज ही, जो ऐसे हर मौके पर सत्ता हथिया लेने का खेल खेलती आई है। जब इन तीनों की ऐसी हालत है, तो पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की तो बिसात ही क्या है, जो हर तरह से एक पिटे मोहरे भर रह गए हैं। पाकिस्तान की ऐसी हालत क्यों हुई है? जवाब पिछले दिनों राष्ट्रपति जरदारी ने खुद ही दिया है कि हमने छोटे क्षुद्र राजनीतिक लाभों के लिए आतंकवाद को जन्म दिया और आतंकवादियों को पाला-पोसा। पाकिस्तान अपने जन्म से ही एक अनाथ राष्ट्र रहा है, जिसे किसी ने भी स्थिर राजनीतिक-सामाजिक ढांचा देने की कोशिश नहीं की। जिन्ना कुछ दिन जीवित रहते तो शायद ऐसा कर पाते। उनके बाद तो राजनीतिज्ञों, फौजियों और मुल्लाओं की मनमानी ही पाकिस्तान की किस्मत बनाती-बिगाड़ती रही है। इसलिए आज एक राष्ट्र के रूप में वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। वह अपनी पूर्व-पश्चिम सीमा पर तालिबानियों के खिलाफ जो कार्रवाई कर रहा है, वह भले ही आतंकवाद के खिलाफ लग रही हो, लेकिन है वह खुद को बचाने की अंतिम कोशिश ही। उसमें उसे जितनी सफलता मिली है और जितनी मिलेगी, वह इसलिए कि वह अमेरिकी दबाव में, अमेरिका के साथ मिलकर की जा रही कार्रवाई है। उसके पीछे पाकिस्तानी समाज और फौज की दिली रजामंदी नहीं है। यही कारण है कि वह हमारी तरफ की सीमा पर की जा रही आतंकी कार्रवाइयों के बारे में न कुछ कर रहा है और न कुछ कह रहा है। बहुत संभव है कि यह सारी कसरत लिफाफा बदलने तक सीमित रह जाए।
और स्टोरीज़ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करे बांग्लादेश के भीतरी हालत का अंदाजा बांग्लादेश राइफल्स की हाल की बगावत से लगाया जा सकता है। वह किसी ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा मुल्क है। शेख हसीना अपनी कुर्सी पर भले ही हैं, देश की नब्ज उनके हाथ में नहीं है। हमारे पूर्वांचल के उल्फा आतंकी वहां पनाह लिए हुए हैं और भारत के प्रति एक खास किस्म की नफरत को हवा देते रहते हैं। नेपाल में अभी कौन सा तंत्र है, कहना कठिन है। माओवादियों के लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने से जो बड़ी संभावना पैदा हुई थी, वह बिखर चुकी है और वैकल्पिक सरकार के पास और जो कुछ भी हो, राष्ट्रीय स्वीकृति नहीं है। दूसरी तरफ सत्ता का स्वाद चख लेने के बाद प्रचंड व उनके लोगों के लिए भी पुरानी तरह की लड़ाई लड़ना संभव नहीं रह गया है। माओवादियों का वह पूरा राजनीतिक ढांचा एक ऐसा बम बन गया है जिसका पलीता खो गया है। इसलिए नेपाल में आज राजनीतिक जोड़तोड़ का दिशाहीन खेल चल रहा है। राष्ट्रीय विकास की जो थोड़ी-बहुत परियोजनाएं शुरू हुई थीं, वे सब भी ठिठक गई हैं। दूसरी तरफ नेपाल को चीन की तरफ ले जाने की (या चीन के नेपाल के भीतर आने की) स्थिति भी बनाई जा रही है। इनका मुकाबला करने के लिए भारत नेपाल के अंदरूनी मामलों में जिस तरह हस्तक्षेप करता रहा है, वह आज की स्थिति में अच्छी राजनयिक पहल का उदाहरण नहीं है और उसके नकारात्मक परिणाम आ रहे हैं। हमारे नीचे का श्रीलंका तमिल टाइगर्स को हराकर जीता है या किसी अंधेरी गुफा में प्रवेश कर गया है, यह समय ही बताएगा। प्रभाकरन जैसों का सफाया कर देने के बाद जो सबसे बड़ी चुनौती है श्रीलंका के सामने, वह तमिल और सिंहली आबादी को यह अहसास कराने की है कि वे एक ही देश के नागरिक हैं। सरकारी खजाने की चमक और राजनीतिक चालबाजियों से जख्मजदा लोगों का विश्वास नहीं जीता जा सकता है, यह हमने देखा है। ऐसे पड़ोसियों से घिरे हम क्या इस सचाई को समझ पा रहे हैं कि दुनिया बदलती जा रही है? पड़ोसी होने, बड़ा होने, शक्तिशाली व समर्थ होने आदि के मतलब भी बदलते जा रहे हैं। छोटे से छोटे मुल्कों में अपनी गैरत का बोध बढ़ा है और उनके सामने विकल्प भी ज्यादा खुल गए हैं। अफगानिस्तान और इराक ने अमेरिका को जिस चक्रव्यूह में फंसा दिया है, वह भी हमें सावधान कर रहा है कि पड़ोसियों के साथ बराबरी के स्तर पर आकर व्यवहार करना होगा। उनका कोई भी संकट हमारे लिए अपनी रोटी सेंकने का अवसर नहीं है। अपनी विश्वसनीयता ऐसी बननी चाहिए कि हम उनकी जनाकांक्षा को समझते हैं, उसका सम्मान करते हैं और उसे पूरा करने में मददगार भी हैं। यह कोरी कूटनीतिक पहल नहीं होगी, इसे नागरिक स्तर पर भी अभिव्यक्त होना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी। अगर हम जी 8 के साथ बैठने लगे हैं, तो वहां का अजेंडा इन छोटे और आकार लेने में लगे राष्ट्रों के पक्ष में बदलना चाहिए। दैत्याकार अर्थव्यवस्थाओं के संकट का रोना रोने में भारत भी शामिल हो जाए, तो यह हमारे राष्ट्रीय हित के खिलाफ है। हमें जवाहरलाल नेहरू की उस ऐतिहासिक समझ को आगे बढ़ाना होगा, जिसमें उन्होंने एशियाई मामलों से महाशक्तियों को दूर रखने की अथक कोशिश की थी। इसलिए चीन की तरफ दरवाजा खोलने की पहल भी उन्होंने की थी, वह कोशिश विफल हुई, लेकिन निरर्थक नहीं हुई है। वैश्विकरण की आज की आंधी में यह और भी जरूरी हो गया है कि हम अपना विश्व तय करें और उसे पुख्ता करें, और जब हम ऐसा करना चाहेंगे, तब हमें यह सचाई पहचाननी व स्वीकारनी होगी कि कोई भी दुनिया अपने पड़ोस से ही शुरू होती है। पड़ोसी ही है जो हमारे सबसे पास होता है और सबसे पहले पहुंचता है। वह कैसा है, यह हमें समझना ही चाहिए, लेकिन वह हमारे अनुकूल कैसे बने, इसकी सावधान कोशिश भी हर स्तर पर करनी चाहिए। आज की दुनिया में सबसे मजबूत, सुरक्षित और संपन्न देश वह है, जो अपने अनुकूल पड़ोसियों के साथ जीता है। भारत की विदेश नीति में सदाशयता जितनी बढ़ेगी, वह पड़ोसियों को साथ व पास लाने में उतना ही समर्थ होगा।

करोगे सच का सामना ?

कहते हैं रिश्ते ऊपर वाला तय करता है। किसको किससे मिलना है, किसके साथ रहना है, किसके साथ जाना है, सब कुछ 'लकीरों' में छिपा रहता है। पर, कुछ रिश्ते यहां भी बनते हैं, जिसे इंसान खुद बनाता है, इट मींस फिजिकल रिलेशन। रिश्तों को लेकर हमेशा से ही बहस होती रही है। कभी इसकी पहचान को लेकर, कभी इसकी सच्चाई को लेकर, तो कभी इसकी अहमियत को लेकर। होमोसेक्सुअल के बारे में किया जा रहा हो-हल्ला थमा भी नहीं था कि एक रियलिटी शो में फिजिकल रिलेशन सहित कई पर्सनल क्वेश्चंस अचानक से चर्चा का केंद्र बन गये। बीती जिंदगी के कई ऐसे सच, जिसे लोग भूलना चाहते हैं या भुलाने की कोशिश करते हैं, उसके बारे में पॉलीग्राफी मशीन के सामने सच उगलवाना कितना सच है। हालांकि सामाजिक ताने-बाने को कुरेदती-झकझोरती यह पहेली स्टार्टिग से ही इतनी पॉपुलर हो गई है कि समाजशास्त्रियों व मनोवैज्ञानिकों को बहस का फिर से एक बहाना मिल गया। हम न तो रियलिटी शो की बुराई कर रहे और न ही उसके पार्टिसिपेंट्स की, पर लाइफ की सच्चाई जानने का ऐसा प्लेटफार्म हमारी सोसायटी को हजम नहीं हो रहा। हम बात कर रहे हैं स्टार प्लस पर 15 जुलाई से मंडे टू फ्राइडे रात 10.30 बजे दिखाए जाने वाले रियलिटी शो 'सच का सामना' की। देश के कॉमन व सेलिब्रेटीज के लिए तैयार किये गए इस शो में पार्टिसिपेंट्स अपनों के बीच स्क्रीन पर देख रहे लाखों लोगों के सामने जिंदगी की सच्चाई की अग्निपरीक्षा देते हैं। शो में पार्टिसिपेंट्स से उनकी लाइफ के पर्सनल व इम्बरैसिंग सवाल पूछे जाते हैं, जिनके आंसर देकर वे एक ही दिन में करोड़पति बन सकते हैं।
इस शो को होस्ट कर रहे हैं राजीव खंडेलवाल। यह इंटरनेशनल रियलिटी गेम मोमेंट ऑफ ट्रूथ का रीमेक है, जिसे 23 देशों में मिली पॉपुलरिटी के बाद इंडियंस को देखने का मौका मिला है। इस साइकोलॉजिकल गेम में पार्टिसिपेंट्स से उनकी निजी जिंदगी से रिलेटेड सवाल पूछे जाते हैं, जो उन्होंने इससे पहले शायद किसी से शेयर किया हो। कितना सच, सच्चाई का सामना। यहां सवाल यह है कि कितना सच है सच का सामना करने वाला यह रियलिटी शो। फॉरेनर की तरह इंडियंस भी अब रियलिटी शोज के दीवने हो गये हैं, यह तो हर कोई जानता है। अब राखी के स्वयंवर को ही लीजिए, आइटम गर्ल राखी किससे शादी करेगी, कैसे करेगी, ये तो आने वाला वक्त बताएगा, पर इंडियन सोसायटी के लिए यह शो किसी नाटक से कम नहीं है। डॉक्टर सुभाषचंद्र झा कहते हैं कि इस तरह के रियलिटी शोज बस एक नाटक है। सच का सामना भी राखी के स्वयंवर की तरह नौटंकी ही है। सच्चाई की बात तो छोड़िए, जो चीज समाज में पर्दे के अंदर हो रहा है, उसे सबके सामने लाया जा रहा है, यह कहीं से भी जायज नहीं है। मेरी मानें तो सेंसर बोर्ड को इस शो पर बैन लगा देना चाहिए।
सवालों से इमोशनल अत्याचार
शो के पहले एपिसोड की पार्टिसिपेंट्स स्मिता मताई से कई बेतुके सवाल पूछे गए। दो बच्चों की मां स्मिता मुंबई में पति टोनी के साथ रहती हैं। वे वहां एक टिफिन ढाबा चलाती हैं। शो के दौरान उनसे मां के साथ उनके रिलेशन पर सवाल पूछे गए, जिससे वे इमोशनल हो गई थीं। उनसे पूछा गया कि पति अल्कोहलिक थे, जिससे आपकी मैरिज लाइफ अफेक्टेड हुई थी। इस दौरान आपके दिल में कभी भी उन्हें जान से मारने का ख्याल आया था। वहीं, दूसरे एपिसोड में यंग दिल वाले 64 वर्षीय लखनऊ के युसूफ हुसैन से कई पर्सनल सवाल पूछे गए। सच का सामना करते वक्त उनके साथ उनकी बेटी सफीना, गर्लफ्रेंड जेसबेल, पहली तीन पत्‍ि‌नयों में से एक कंचन, छोटे भाई हबीब और सन इन लॉ हंसल थे। ट्रेवल एजेंसी के मालिक और उर्दू पोएट युसूफ जो आर्ट, लिटरेचर और महिलाओं के दीवाने हैं, से पूछा गया कि आपको अब भी ड्रीम गर्ल का इंतजार है। आपका अपनी बेटी से कम उम्र की किसी लड़की के साथ फिजिकल रिलेशन रहा है? अब इस तरह के सवाल पूछने का क्या मतलब। क्रिश्चियन माइनॉरिटी एजुकेशनल सोसायटी के सेक्रेटरी व संत डोमिनिक सेवियोज हाई स्कूल के प्रिंसिपल ग्लेन जोसफ गॉल्स्टन का कहना है कि इस शो में लोग अपने मन से आते हैं, उन्हें प्रेशर नहीं दिया जाता। फिर भी, हर किसी की पर्सनल लाइफ होती है और उसमें औरों को नहीं झांकना चाहिए। वेल, एंटरटेनमेंट के लिए जब तक कुछ डिफरेंट नहीं होगा, व्यूअर्स अट्रैक्ट कैसे होंगे, इसीलिए टीवी चैनलों में ऐसा मसाला परोसा जा रहा है।
इस संबंध में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. बिंदा सिंह का कहना है कि रुपए-पैसों के लिए आदमी किसी भी हद तक जा सकता है। यह सच और झूठ के नाम पर सिर्फ कंप्यूजन पैदा करता है, जिसका सीधा असर बच्चों पर पड़ेगा। आज भी हमारी सोसायटी में इतना खुलापन नहीं आया है, लेकिन रियलिटी शो में इस तरह के खुलेपन की आड़ में एक गंदा मजाक पेश किया जा रहा है। वहीं डॉ सुधा सिन्हा का कहना है कि इस तरह के शोज से फैमिली पर बैड अफेक्ट पड़ेगा। सब जानते हैं कि एक-एक फैमिली मिलकर ही समाज बनता है। ऐसे शोज से हमारी सोसायटी में बिखराव आएगा।