Wednesday 26 May 2010

गन्दे नाले पर भी जुटेंगे ब्लागर: दिल्ली से योगेश गुलाटी

प्यार भरा निमन्त्रण कोई भला कैसे अस्वीकार कर सकता है! पिछले रविवार मुझे एक ज़रूरी मीटिंग में जाना था! उस दिन गर्मी भी बहुत थी, और नांगलोई मेरे घर से करीब दो घंटे का सफर था! लेकिन अविनाश जी ने जो स्नेहभरा निमन्त्रण मेरे ब्लाग पर छोडा वो मुझे नांगलोई की उस छोटूमल जाट धर्मशाला तक खींच लाया! अपना एक दिन मैंने उन लोगों से मिलने के लिये दिया जिन्हें मैं जानता तक नहीं था! बडा ही अदभुत अनुभव था ये मेरे जीवन का! सभी से मिल कर और उनके विचार जानकर जो खुशी हुई उसका मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकता! वो गर्म दोपहरी एक अनोखी शीतलता का एहसास करा रही थी! इसी लिये मैंने कहा कि ये हिन्दी ब्लागिंग के इतिहास में एक पन्ना दर्ज हो रहा था! ब्लागर्स एसोसिएशन एक बहुत सुन्दर विचार है! यदि ये विचार कार्य रूप में परिणित होता है, तो एक मिसाल कायम की जा सकती है! निश्चित तौर पर ये मीडिया का विकल्प और सामाजिक चेतना का बडा मंच साबित हो सकता है! क्योंकि प्रबुध्द ब्लागरों में अपने-अपने क्षेत्र के विद्वान और विषय वेत्ता भी शामिल हैं! आज की इस भागमभाग वाली ज़िन्दगी में जहां लोगों के पास वक्त की सख्त कमी है, और सभी सिर्फ अपने बारे में ही सोचने में व्यस्त हैं, वहां यदि ब्लागिंग जैसी कोई चीज़ प्रबुध्दजनों को एक दूसरे से सीधे जोड रही है, तो निश्चय ही इसे नज़रअंदाज़ करना एक बडी भूल होगी! मैं ये नहीं कहता कि ब्लागिंग से हम कोई क्रांति कर देंगे! क्रांति हमारा उद्देश्य भी नहीं है! लेकिन विभिन्नताओं वाले कईं लोगों में कोई चीज़ यदि समान हो, जो उन्हें एक मंच पर लाने का काम करे तो निश्चय ही उसमें कोई असाधारण बात तो होगी ही! मुझे लगता है कि हिन्दी ब्लागिंग अपने शुरुआती दौर में है! इसे अभी लंबा सफर तय करना है! लेकिन एक नदी की तरह ये अपना मार्ग खुद बना लेगी! इसलिये खुशदीप जी आप गंदे नाले पर भी ब्लागर मिलन समारोह करवा लीजिये, मेरा दावा है वहां भी ब्लागर आयेंगे! बिन बुलाये आयेंगे! और हर ब्लागर मीट में उनकी संख्या बढती ही जायेगी! यही हिंदी ब्लागिंग की असली ताकत है, जो वक्त आने पर उभर कर सामने आयेगी!

वो सूरज को आंख दिखाता था: दिल्ली से योगेश गुलाटी

करोल बाग मेट्रो स्टेशन के करीब एक मरियल सा रिक्षावाला तपती दुपहरी में रिक्षा खींच रहा था! फटी पैंट और एक बनियान बस यही था उसके तन पर! लू के थपेडों से बचने के लिये उसने अपने कान कपडे से ढक रखे थे! पैरों में टूटी सी चप्पल थी! गर्मी की इस दुपहरी में उसके पसीने से नहाये शरीर को देख कर तापमान की भीषणता का अंदाज़ा लग रहा था! उसके रिक्षे पर एक प्रेमी जोडा बैठा था! दोनों एक दूसरे की बाहों में मगन थे! आते-जाते लोगों की निगाहें उनकी हरकतों पर टिकी थी! लेकिन दोनों ही इस बात से बेपरवाह थे! प्रेमी अपनी प्रेमिका को सूरज से बचाने की कोशिश करता दिख रहा था! दोनों ही पहनावे से काफी उन्मुक्त और आधुनिक नज़र आ रहे थे! हालाकि दिल्ली में इस तरह के नज़ारे आम हो चले हैं! लेकिन मुझे उसमें कुछ खास नज़र आ रहा था! रिक्षावाला चुंकि शरीर से काफी दुबला था इसलिये उसे दोनों को खींचने में काफी ज़ोर लगाना पड रहा था! वो कभी सूरज को आंख दिखाता तो कभी ज़ोर लगा कर रिक्षा खींचता! ऎसा लग रहा था मानो वो सूरज को चुनौती दे रहा हो, कि "तू चाहे कितनी भी आग बरसा ले, मेरे हौंसले को डिगा नहीं पायेगा"! लेकिन मैं उसकी मजबूरी को समझ रहा था! क्योंकि पेट की आग सबसे भयानक होती है! करोल बाग मेट्रो स्टेशन के नज़दीक रिक्षा रोक कर रिक्षावाले ने कहा, साहब मेट्रो स्टेशन आ गया! प्रेमी युगल ने होंश संभाला, अपने आस-पास देखा और रिक्षा से उतर गये! प्रेमी ने दस रुपये का नोट रिक्षा वाले को थमा दिया! "साहब इतनी दूर से आप दोनों को खींच कर लाया हूं, बीस रुपये होते हैं"! रिक्षावाले ने कहा! "मेरे पास छुट्टे नहीं हैं बस यही दस का नोट है लेना हो तो लो"! ये कह कर प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ आगे बढ गया! पसीने में तर रिक्षावाला उस दस के नोट को देख कर कुछ सोचने लगा! उसने फिर सूरज की तरफ देखा! सामने की दुकान से प्रेमी युगल ने पचास रुपये में कोका-कोला की दो बोतलें खरीदीं, अपना गला तर किया! इसके बाद गर्मी में आराम से वक्त बिताने के लिये पास के मेक्डानेल्स में जा कर बैठ गये! इधर रिक्षावाला मेट्रो स्टेशन के सामने लगी रिक्षों की लंबी लाईन में सबसे पीछे अपना रिक्षा लगा कर सवारी के लिये अपनी बारी का इंतज़ार करने लगा! लू के थपेडों का असर उसके शरीर पर तो हो रहा था लेकिन मेहनत और इमानदारी के उसके हौंसले पर लू के थपेडे कोई असर नहीं डाल पाये थे! रिक्षावाला सूरज को देख कर मुस्कुरा रहा था!

लोग यूं ही बदनाम किया करते हैं: दिल्ली से योगेश गुलाटी

इश्क का नाम लिया करते हैं,
लोग यूं ही बदनाम किया करते हैं!

हमारे पास नहीं काम कोई दूजा,
इसीलिये चाहत का काम किया करते हैं!

चाहत अब फितरत बन गई है,
फितरत को अंजाम दिया करते हैं!

इश्क का नाम लिया करते हैं,
लोग यूं ही बदनाम किया करते हैं!

क्या चाहने भर से कोई मिल जाता है यारों,
फिर चाहत को क्यों इल्ज़ाम दिया करते हैं!

क्या हिम्मत है ज़माने में मरने की,
हम किसी पर मरने का काम किया करते हैं!

इश्क का नाम लिया करते हैं,
लोग यूं ही बदनाम किया करते हैं!

चाहकर भी चाहत को छुपाना,
ये काम नहीं आसां,
गमें मोहब्बत में हम,
जाम पर जाम पिया करते हैं!

इश्क का नाम लिया करते हैं,
लोग यूं ही बदनाम किया करते हैं!

उसको तो खबर भी नहीं कि हम उसपर मरते हैं,
फिर ज़माने भर में, लोग हमें क्यों बदनाम किया करते हैं!

सुना है इश्क करने वालों का नाम बडा होता है ज़माने में,
छोटे नाम को बडा बनाने के लिये इल्ज़ाम लिया करते हैं!

इश्क का नाम लिया करते हैं,
लोग यूं ही बदनाम किया करते हैं!