Thursday 8 October 2009

असली खबरों से टीआरपी आती है!

कल एक रीजनल न्यूज चेनल के चेयरमेन से मुलाकात के दौरान चर्चा टीआरपी पर आ गइ! वे बोले मै एक नेशनल न्यूज़ चेनल लाँच करने वाला था लेकिन अब मैने अपना विचार बदल दिया है! क्योँकि न्यूज चैनल मेँ टीआरपी का बडा पँगा है! टीआरपी के लिए क्या कुछ नहीँ करना पडता? इसीलिये अब मै न्यूज़ चेनल की जगह फिल्मी और म्यूज़िक चैनल लाँच करने की सोच रहा हूँ! मैने सिर्फ इतना ही कहा यकीन मानिये असली खबरोँ से टीआरपी आती है! ये वैसा ही है जैसे मारधाड और सेक्स से भरपूर फिल्मोँ का एक दौर था ! जो बहुत थोडे वक्त के लिये था! अब फिर पावारिक और लीक से हट कर फिल्मोँ का दौर आ गया है! ये वैसा ही है जैसे सास-बहू टायप्ड टीवी सोप का दौर आया था! ये दौर भी आया और चला गया! लेकिन इस दौर मे और इसके बाद भी दर्शकोँ ने हर उस कोशिश को सराहा जो कुछ अलग थी! जहाँ फिल्मोँ मेँ पारिवारिक और लीक से हट कर विषयोँ की वापसी हुइ है ! वहीँ टीवी पर भी मध्यम वर्गीय परिवार और गाँवोँ की कहानियाँ अब धूम मचा रही हैँ! 12/24 करोल बाग का ही उदारहण ले लीजिये...! ज़ी टीवी का ये नया सीरियल दिल्ली के एक मध्यम वर्गीय परिवार की तस्वीर पेश करता है! साथ ही समाज की सोच पर सवाल भी खडे करता है! इस सीरियल ने इन दिनो धूम मचा रखी है! क्योँकि ये एक आम मध्यम वर्गीय परिवार की कहानी है जिससे हर कोइ खुद को रिलेट करता है!यही बात न्यूज़ चैनलोँ के लिये भी लागू होती है! हर वो खबर हिट है जो आम आदमी से सीधे जुडी है! और वो टीआरपी भी देगी! ज़रुरत इस बात की है कि आप उस खबर के मर्म को समझ कर उसे खबर के रुप मे पेश करेँ! ना कि तमाशे रुप मेँ! न्यूज़ रूम मेँ रिपोर्टर कइ बार ऐसी खबरेँ लेकर आते हैँ जो वाकइ बडी होती है! और उनका इम्पेक्ट भी काफी अच्छा हो सकता है! लेकिन मै तब हैरान हो जाता हुँ जब रिपोर्टर को खुद ही नही पता होता है कि जो स्टोरी वो लेकर आया है उसमे खबर क्या है! ऐसा शायद इस लिये है कि हम टीवी पत्रकार न्यूज़ पर मेहनत करना नहीँ चाहते! हम खबरोँ की तह तक जाने की बात तो करते हैँ लेकिन असल मेँ खबरोँ की तह तक जाने से डरते हैँ! जब खबरोँ पर मेहनत ही नहीँ की जायेगी तो टीआरपी भला कैसे आयेगी? यहाँ ये बात भी ध्यान देने लायक है कि टीआरपी के मापदँड कितने सही है? क्योँकि प्रसार भारती की झिडकी के बाद दूरदर्शन की टीआरपी मेँ हैरान कर देने वाली बढोतरी हुइ है!मुझे याद है आन्ध्र प्रदेश के एक गाँव से डायन हत्या की एक स्टोरी हमारे रिपोर्टर ने फाइल की थी! गौरतलब है कि आन्ध्र प्रदेश मेँ आज भी खुले तौर पर डायन बता कर बेकसूर महिलाओँ को मार दिया जाता है! पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे ये सारी घटनाएँ होती है! हैरानी की बात तो ये है कि सरकार को भी इस बात की जानकारी होती है! बावजूद इसके ना तो आज तक कोइ ठोस कार्वाइ ही की गइ है ना ही सरकार ने इसे रोकने की कोइ ठोस कोशिश ही कभी की है! अब बात स्टोरी की कतरते हैँ, स्टोरी ये थी कि गाँव वालोँ ने डायन बता कर दो महिलाओँ को दर्दनाक यातनायेँ दे कर मार डाला था! जब मैने विज़वल देखे तो मेरे रोँगटे खडे हो गये! गाँव के चौक पर लगभग सारा गाँव जमा था! लोगोँ ने पहले तो दोनो महिलाओँ को पत्थरोँ से बुरी तरह ज़ख्मी किया! उसके बाद उनके मुह मेँ लोहे की राड डाल कर उनके दाँत तोड दिये! इस दौरान दोनोँ महिलाएँ दर्द से छ्टपटाती रही! वो अपनी जान की भीख माँग रही थी! लेकिन मध्य युग मेँ जी रहे उस गाँव के बाशिन्दोँ के पास रहम की कोइ गुँजाइश नहीँ थी! उन्होँने दोनोँ महिलाओँ के अंतराँगोँ पर लात घुँसे और लोहे की राड से वार किया! महिलाओँ को खुन से लथपथ तडपते हुए जब काफी वक्त हो गया तो प्रशासन की एक वैन आइ और दोनोँ महिलाओँ को अस्पताल ले जाया गया! जहाँ उनहोँने दम तोड दिया! यानी एक गाँव ने मिल कर दो बेगुनाह महिलाओँ को डायन बता कर बेदर्दी से कत्ल कर दिया था! और प्रशासन और सरकार तमाशबीन बनी देख रहे थे! ये खबर हमारे चैनल पर सुबह की शिफ्ट मेँ एँकर विज़वल बाइट के रुप मेँ चल कर उतर चुकी थी! लेकिन इसे हेड लाइन नहीँ बनाया गया था! (एक पुलिवाले द्वारा एक बच्चे की पिटाइ उस वक्त सभी चैनलोँ पर ब्रेकिँग न्युज़ के रुप मेँ चल रही थी! और सिर्फ उसी के विज़वल बार बार दिखा कर उसपर घँटोँ से चैट चल रहा था!)लेकिन मै ये जानता था कि डायन हत्या की ये खबर जो सिर्फ हमारे पास थी कितनी अहम थी? इसलिये मैने तत्काल इस खबर पर पैकेज बनवाए! रिपोर्टर जिसने इस खबर को खुद कवर किया था उसका लाइव चैट करवाया! आन्ध्र प्रदेश सरकार के ज़िम्मेदार अधिकारियोँ को भी फोनो पर लिया! इसके बाद मानवाधिकार से जुडे सँगठनोँ का भी फोनो करवाया! हमने आन्ध्रप्रदेश सरकार से सीधा सवाल पूछा कि ये आन्ध्र प्रदेश मेँ हो क्या रहा है? हालाकि हमारा चैनल अभी लाँच ही हुआ था और हमारा डिस्ट्रीब्युशन भी कम ही हुआ था! फिर भी हमारी कोशिश रँग लाइ! हमारे खबर दिखाने के बाद आँध्र् प्रदेश सरकार ने जाँच के बाद दोषियोँ को कडी सज़ा दिलाने का वादा किया! लेकिन इस खबर को अभी और आगे बढाया जा सकता था! क्योँकि आँध्रप्रदेश मेँ डायन हत्या आम बात है! दरअसल ये आदिवासी इलाकोँ मेँ विधवा महिलाओँ की सम्पत्ति और ज़मीन हडपने का एक हथकँडा है! आँध्र प्रदेश के पिछ्डे इलाकोँ की ही तरह छत्तीसगढ के आदिवासी इलाकोँ मेँ भी डायन बता कर बेगुनाह महिलाओँ को मार दिये जाने की घटॅनाएँ आम हो चली थीँ! उस वक्त मै इटीवी मेँ था ! और हमने इसके खिलाफ एक मुहीम छेड दी थी! क्योँकि डायन हत्या की रोज आ रही रिपोर्टोँ ने हमेँ दँग कर दिय था! ज़मीन हडपने के लिये महिलओँ को डायन बता कर मारा जा रहा था! हमने इन खबरोँ को प्राथमिकता से दिखाया! और सरकार से वही सवाल पुछा कि आखिर छत्तीसगढ मेँ ये हो क्या रहा है? जिसका परिणाम ये हुआ कि रमन सरकार ने छत्तीसगढ विधानसभा मेँ डायन हत्या को रोकने के लिए बिल पेश किया! और ये बिल पास हुआ! इसके बाद छत्तीसगढ मेँ इटीवी किसी पहचान का मोहताज नहीँ रहा! यानि असली खबरोँ से टीआरपी आती है! कम से कम पत्रकारिता के अपने छोटे से अनुभव मेँ मैने तो यही सीखा है! ज़रुरत खबरोँ की भीड मेँ से असली खबरोँ को पहचानने की और उनहेँ खबर के रुप मेँ पेश करने की है!