Thursday 3 June 2010

इ..... सीनियर जूनियर का है ब्लाग जगत मा?: दिल्ली से योगेश गुलाटी

आजकल ब्लागजगत में सीनियर जूनियर की चर्चा बडी जोरों पर है! बीते दिनों सुनने में आया कि जूनियर ब्लागरों ने अपना संगठन भी बना लिया है! भई हमारी तो कुछ समझ नहीं आया! इसलिये आज हमने निश्चय किया कि ज़्यादा से ज़्यादा ब्लाग्स के नये पुराने सभी लेखों को पढा जाये! ताकि पता लगे कि वाकई में ब्लाग जगत में अपनी लेखनी के दम पर कौन सीनियर है और कौन जूनियर! इस काम में पूरा दिन लग गया! कईं ब्लाग्स इतने उत्कृष्ट थे कि दिल बाग्-बाग हो गया! लेकिन अफसोस ऎसे ब्लाग्स भी देखने को मिले जो........!

इन्हें देखकर जो सवाल मन में आया वो ये कि क्या सच में हमलोग पक्के गुटबाज या यों कहें राजनीतिबाज बन चुके हैं कि हम कोई भी जगह राजनीति से अछूती छोडना नहीं चाहते! मुझे समझ नहीं आता कोई ब्लागर किस बिनाह पर जूनियर कहलता है और कोई ब्लागर किस आधार पर खुद को सीनियर कहलवा सकता है! ब्लाग आपकी निजी अभिव्यक्ति है! ये वो ज़रिया है जिसके माध्यम से आप सच को सच और झूठ को झूठ कह सकते हैं! लेकिन याद रखियेगा आपका ब्लाग आपके व्यक्तित्व का दर्पण भी है! यदि आप इसपर पूर्वाग्रहों से भरी बात करते हैं, साम्प्रदायिक या अश्लील विचार रखते हैं या अन्य कोई आपत्तिजनक बात कहते हैं तो ये आपके अपने व्यक्तित्व के लिये ही नुकसानदायक है! और ऎसे में कोई भी आपके ब्लाग को गंभीरता से नहीं लेगा! मुझे नाम लेने की ज़रूरत नहीं लेकिन इन दिनों ब्लागजगत में ऎसे आपत्तिजनक विचारों वाले ब्लाग्स की कोई कमी नहीं है! एक विद्वान महापुरुष जो एक बडे अखबार के संपादक भी हैं उनके बारे में कोई ये सोच भी नहीं सकता है कि वो इतनी साम्प्रदायिक विचारधारा वाले होंगे! लेकिन उनका ब्लाग देखने पर आप खुद हैरान रह जायेंगे कि इतना बडा आदमी इतनी छोटी बातें कैसे कह सकता है? तो वहीं महिलाओं पर आधारित होने का दावा करने वाले एक ब्लाग में आपको ऎसी सोच मिलेगी जो आधुनिकता के नाम पर दिग्भ्रमित करने का काम कर रही है!

ऎसे कईं ब्लाग हैं जो गलत बातों को सही साबित करने के लिये उलझूलूल तर्क दिये जा रहे हैं! जबकि वो खुद ये जानते हैं कि ये उचित नहीं है! हो सकता है इसमें मेंरा भी कोई लेख शामिल हो, क्योंकि मैं कभी पूर्ण सत्य होने का दावा नहीं करता! लेकिन मेरे ब्लाग पर आने वाले ब्लागरों की टिप्पणीयां ही मुझे ये बताती हैं कि मेरी दिशा सही है या गलत! उन ब्लागरों के ब्लाग्स को पढ कर ही मैं इस बात का अनुमान लगाता हूं कि कहीँ वो किसी पूर्वाग्रह के चलते तो मेरी किसी बात का समर्थन या विरोध नहीं कर रहे? इसतरह मुझे ये समझने में मदद मिलती है कि मेरी दिशा सही है या नहीं? इसीलिये अपने ब्लाग में मैं बेनामी टिप्पणीयों को भी स्थान देता हूं! यदि वे शालीन हैं तो उसमें तर्क खोजने की कोशिश करता हूं! यदि वे मेरी लेखनी से सहमत नहीं हैं या उन्हें मेरी लेखनी पसंद नहीं आ रही तो मेरी कोशिश यही रहती है कि यदि वे चाकई में सही हैं तो मैं अपनी गलतियों को सुधार लूं!

लेकिन आज ढेर सारे ब्लाग्स पढकर मुझे इस बात का अंदाज़ा हो गया कि कुछ लोगों ने स्वतंत्रता का मतलब कुछ भी करने या कहने से लगा लिया है! जबकि आपकी स्वतंत्रता तो केवल आपकी नाक की नोक तक सीमित है! और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ये मतलब कतई नहीं कि जो मन में आया वो कह दिया! और बेतुके और फिज़ूल के तर्कों के आधार पर भारतीय संस्कृति पर कीचड उछालने लगे! या साम्प्रदायिक सोच को दर्शाने वाली बातें करने लगे! वाकई में मैं हैरान हूं कि कैसे लोग बेतुके तर्कों के आधार पर अपनी ही सभ्यता और रीति रीवाजों का मखौल उडा सकते हैं! चार किताबें पढ कर ये लोग खुद को सारे जहान से समझदार समझने का दावा कैसे कर सकते हैं! कुछ ऎसे भी युवा देखे जो विदेशों में जाने को ही बहुत बडी उपलब्धि मान बैठे हैं! और वहां बैठ कर अपने ब्लाग्स पर भारतीय संस्क्रिति और यहां के आदर्शों को गरिया रहे हैं! अगर हम थोडा सा सीख कर खुद को समझदार मानने लगें तो ये हमारी बहुत बडी भूल है! हर संस्कृति में अच्छे और बुरे की परिभाषा अलग होती है! जैसे यूरोप में महिलाओं से अभिवादन के वक्त उनके गालों या हाथों को चूमना सभ्य माना जाता है! जबकि हमारे यहां यही असभ्यता की निशानी है!

चोला बदल लेने से व्यक्ति तो बदल नहीं जाता? हमें गर्व होना चाहिये कि हमारी संस्कृति चरित्र पर ज़ोर देती है! क्योंकि शुध्द चरित्र ही शुध्द चिंतन को उत्पन्न करता है! और शुद्ध चिंतन से ही विश्व कल्याण हो सकता है! खैर ये बहस का अच्छा मुद्दा हो सकता है और ऎसे मुद्दों पर सार्थक बहस होनी भी चाहिये ताकि अपने ब्लाग्स पर सिगरेट पीने शराब पीने या अन्य आपत्तिजनक बातों को अपने फिज़ूल के तर्कों से सही बताने वाले नादान ब्लागरों को जवाब मिल सके! और बाकी लोग भी ये जान सकें कि नैतिकता ज़िंदा है अभी!

पुरुषों से मुकाबला: दिल्ली से योगेश गुलाटी

मेरे पास बैठी वो भद्र महिला सिगरेट के कश लगा रही थी! लेकिन सिगरेट के धुंए से मुझे खासी परेशानी हो रही थी! आखिर मुझसे रहा नहीं गया और मैने पूछ ही लिया,- "बहनजी आपको नहीं लगता सिगरेट आपके स्वास्थ्य के लिये नुकसान दायक हो सकता है! उसने मुझे घूर कर देखा! और बोली, एक्सक्यूज़ मी, बहन किसे कहा आपने? मैंने कहा हिंदी में ये एक सामान्य शिष्टाचार है! वैसे तंबाकू निषेध दिवस पर तो आप जम कर सिगरेट और तंबाकू के खिलाफ बोल रही थीं! आपका स्पेशल प्रोग्राम देखा था मैंने! वो खबरों के पीछे दौडने वाले एक चैनल की स्टार एंकर थी!
वो मेरा पेशा है उसने जवाब दिया! तो आपको लगता है सिगरेट पीना अच्छी बात है? इसमें बुरा क्या है? उसने कहा! जो काम पुरुष कर सकते हैं वो काम अगर महिलाएं करें तो आप जैसे लोगों को परेशानी क्यों होने लगती है! आज हर काम में महिलयें पुरुषों को कडी टक्कर दे रही हैं! जो काम पुरुष करते हैं अगर वही काम हम महिलायें करें तो आपको क्यों दिक्कत होती है? मैंने कहा आप पुरुषों से मुकाबला कर रही हैं ये अच्छी बात है, लेकिन परेशानी मुझे नहीं परेशानी तो आपको होने वाली है स्मोकिंग से! क्योंकि इसके साइड इफेक्ट आप ही को झेलने होगें! आप तो खुद इतनी पढी-लिखी और समझदार दिखती हैं, मुकाबला अच्छी बात के लिये हो तो ठीक है लेकिन क्या बुरे कामों में मुकाबला अच्छी बात है? वो बोली मुकाबला तो मुकाबला है फिर वो किसी भी बात में हो सकता है! हमारा मकसद पुरुषों को हर मामले में कडी टक्कर देना है!
ये कहते हुए उसने सिगरेट का एक ज़ोरदार कश अपने फेफडों में भर लिया! मुंह से धुआं निकालते हुए उसने आसमान की तरफ देखा और बोली मैं एक मिडिल क्लास फेमिली को बिलांग करती थी, जहां लडकियों को पढाई के लिये दूसरे शहर में भेजना भी बडी बात होती थी! लेकिन मैंने पुरुषों की इस व्यवस्था से बगावत की! मैं दिल्ली आई और अपना मुकाम हासिल किया! मैं पुरुषों के बीच काम करती हूं! और उनके बीच उन्हीं की तरह रहती हूं! जहां तक बात है शराब और सिगरेट की तो मुझे लगता है इनसे किसी भी लडकी को परहेज़ नहीं करना चाहिये! यूरोप और अमेरिका में भी तो लडकियों के लिये ये सब आम बात है! फिर भारत में महिला विरोधी किस अधिकार से महिलाओं की मारल पोलिसिंग करते हैं? तरक्की का रास्ता तो यहीं से होकर गुजरता है! क्या साडी पहनकर एक सती सावित्री महिला पुरुषों से मुकाबला कर सकती है? सिगरेट के एक ही कश में वो इतना सब कह गई थी! उसके ऎसे महान विचारों से मैं स्तब्ध था! वो सिगरेट का दूसरा कश ले इससे पहले ही मैं वहां से उठकर चल दिया!

एक बंदर, मेट्रो के अंदर: दिल्ली से योगेश गुलाटी

दिल्ली मेट्रो में बंदर के घुसने के बाद से ही दिल्ली सरकार खासी चिंतित नज़र आ रही है! मुख्यमंत्री का ये सख्त आदेश था कि कामनवेल्थ गेम्स के मद्देनज़र गरीब और उनके पूर्वज यानि बंदर मेट्रो स्टेशन के आस-पास भी ना फटकें! गरीबों पर तो दिल्ली सरकार का ज़ोर चल गया लेकिन बंदरों पर नही चल सका! तमाम सुरक्षा व्यवस्था की धज्जियां उडाते हुए एक फिदायीन बंदर दिल्ली मेट्रो में घुसने में कामयाब हो ही गया! दिलशाद गार्डन की ओर जाने वाली रिठाला मेट्रो में ये बंदर ना केवल घुसने में कामयाब हुआ बल्कि उसने बकायदा मेट्रो में बिना टिकिट सफर भी कर डाला!

हालाकि यात्रियों को इस बंदर के अपने साथ सफर करने से कोई परेशानी नहीं हुई और उन्होंने बिस्किट खिला कर अपने साथी यात्री का स्वागत किया!लेकिन मेट्रो में बंदर के घुस आने की खबर लगते ही प्रशासन में हडकंप मच गया! उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि गरीबों का पूर्वज ये कम्बख्त बंदर इतनी कडी सुरक्षा के बावजूद इतनी बडी हिमाकत करने में कामयाब कैसे हो गया! इसलिये तत्काल बंदर को बाहर निकालने के लिये औद्योगिक सुरक्षा बल मौके पर बुला ली गई! मेट्रो ट्रेन को अगले स्टेशन पर रोक कर यात्रियों से खाली कराया गया! और फिर सुरक्षा बल के जवान बंदर को ट्रेन से बाहर निकालने के काम में जुट गये! इसके लिये उन्होंने साम-दाम, दंड-भेद सारी नीतियों का सहारा लिया! लेकिन कम्बख्त बंदर एयरकंडीशन ट्रेन से बाहर आने को राज़ी ही नहीं हुआ!

जब सुरक्षा बलों ने हार मान ली तो मेट्रो स्टाफ के एक समझदार कर्मचारी ने अक्ल का इस्तेमाल किया! उसने थोडे से चने मेट्रो के बाहर रख दिये, जिसे देख कर वो भोला बंदर ललचाया और एक ही छलांग में मेट्रो ट्रेन से बाहर आ गया! मेट्रो प्रशासन ने तत्काल मेट्रो ट्रेन के दरवाज़े बंद किये और मेट्रो को रवाना कर दिया! मेट्रो प्रशासन ने खुशी के लड्डू यात्रीयों में बंटवाए! इस कामयाबी की सूचना तत्काल मुख्यमंत्री कार्यालय पहुंचा दी गई! क्योंकि आखिर उन्हें गरीबों के पूर्वज उस बंदर को मेट्रो से बाहर करने में कामयाबी मिल गयी थी! खैर बंदर वो काम कर चुका था जो वो करने आया था! मेट्रो की सवारी कर वो दिल्ली सरकार को अपना संदेश दे चुका था!

दरसल इस घटना की स्क्रिप्ट घटना से एक दिन पहले ही रिठाला के नज़दीक एक बगीचे में उस समय लिख दी गई थी! जब सर्व समाज बंदर महा सभा ने सर्व सहमति से ये प्रस्ताव पारित किया था कि दिल्ली पर उनका भी उतना ही हक है जितना कि उनके वंशजों का! दिल्ली के तमाम बुध्दिजीवी बंदर इस सभा में शिरकत करने पहुंचे थे! सर्व समाज बंदर महासभा का मानना है कि वो भी दिल्लीवासी हैं, और रिश्ते में चूंकि इंसानों के पूर्वज हैं इस लिहाज से उन्हें सीनियर सिटिजन का दर्जा मिलना चाहिये! और इस गर्मी में मुफ्त में मेट्रो की सवारी की अनुमति मिलनी चाहिये!

ये सर्व समाज बंदर महासभा बंदरों के साथ दिल्ली सरकार के रवैये से खासी नाराज़ है! उनका कहना है कि दिल्ली सरकार को गरीबों की ही तरह उनकी भी कोई चिंता नहीं है! बल्कि दिल्ली सरकार ने पिछले साल बंदरों को दिल्ली से दफा करने के लिये ठीक वैसी ही मुहीम चालाई थी जैसी इन दिनों वो गरीबों के लिये चला रही है! लेकिन इस मुहीम को धता बताते हुए तमाम बंदर दिल्ली वापस आ गये! इतना ही नहीं इस मुहीम का विरोध करने की खातिर उन्होंने अन्य प्रदेशों से अपने रिश्तेदारों को भी बुला लिया था! और आज दिल्ली में पिछले साल की तुलना में दुगने बंदर हैं! सर्व समाज बंदर महासभा का कहना है कि वो गरीब नहीँ हैं, जो चुप रहेंगे! वो बंदर हैं और अपने हक की लडाई पुरज़ोर तरीके से लडेंगे!

इसतरह बंदर महसभा में सर्व सम्मत्ति से ये प्रस्ताव पास हुआ कि दिल्ली मेट्रो में घुस कर दिल्ली की शीला सरकार को चुनौती दी जाये! इसके लिये बकायदा एक ट्रेंड फिदायीन बंदर का इस्तेमाल किया गया! उसे किसी भी कीमत पर मेट्रो ट्रेन से बाहर ना आने की नसीहत दी गई थी! लेकिन वो मूर्ख बंदर गरीबों के ही तरह लालच में फंस गया! और थोडे से चने के लालच मे अपने उद्देश्य से भटक कर ट्रेन से बाहर आ गया! शायद इसलिये क्योंकि गरीब और बंदर दोनों में ही एक समानता उनका खाली पेट है! और शायद यही कारण है कि सरकार ने बंदर और उनके वंशजों को विदेशी मेहमानों के आने से पहले दिल्ली से बाहर करने की ठानी है! क्योंकि पेट की खातिर अगर इन्होंने विदेशी मेहमानों के सामने हाथ फैला दिये तो दिल्ली की इज़्ज़त का क्या होगा?