Monday 30 March 2009

आडवाणी का काला धन स्विस बैंक में !


नहीं भाई ये मै नहीं कह रहा ! ये कहना है हमारे लालू जी का....! लालू जी एसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि वो ये बात अच्छी तरह जानते है ! अरे भाई भैसों का दूध बेच कर जो थोड़ा बहुत धन उन्होंने जोड़ा था वो भी तो उसी (स्विस) बैंक में जमा है ! और लालू जी के रिफरेन्स पर ही तो अडवाणी जी का खाता स्विस बैंक में खुला था ! इस बात को आडवानी जी भूल गए लेकिन हमारे मेनेजमेंट गुरु लालू की याददाश्त आडवानी जी की तरह कमजोर नहीं है ! इसीलिए उन्होंने आडवानी जी को याद दिलाया है की स्विस बैंक में आपका खाता है और उसमे से पैसा नीकलाते रहा कीजिये ! क्योंकि इन विदेशी बैंक वालों का कोई भरोसा नही कल को मुकर गए तो ? इसलिए लालू अडवानी को बस याद दिला रहे है बेलेंस चेक करते रहना अडवानी जी....! लालू ने कहा कि आडवाणी ने स्विस बैंक में किसी दूसरे के नाम से पैसा जमा करा रखा है। और ये बात सिर्फ़ लालू जी ही जानते हैं ! इसलिए किसी से कहना नही !
लालू सोमवार को बिहार के सिवान, सिताबदियारा व मांझागढ़ में सभाओं को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि अगर आडवाणी को प्रधानमंत्री की कुर्सी मिली तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा। भाजपा देश में राममंदिर का राग अलाप कर एक बार फिर दंगा कराना चाहती है। वह अल्पसंख्यकों को यहां से भगाना चाहती है, जो हम नहीं होने देंगे। वरुण गांधी प्रकरण में उन्होंने आरएसएस और भाजपा पर गलत तरीके से फायदा उठाने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि साधु यादव को शामिल कर कांग्रेस गलतफहमी का शिकार हो गई है। उसे मालूम नहीं कि जब तक लालू हैं, तभी तक कोई लाल है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी का भी भला करने वाले नहीं हैं।

दिल्ली, तेरी गलियों का वो इश्क याद आता है................


बीते हुए लम्हे....

गुजरे हुए पल.....

बिखरी हुई यादें.....

थोडी-सी कसक....।

थोडी सी-सी महक....

डूबी हुई कोई सिसकी....

कोई खुशनुमा-सी शाम.....

या दर्द में डूबा संगीत..........

सुरमई से कुछ भीने-भीने रंग.....

यादों से विभोर होता हुआ मन.......

मचलती हुई कई धड़कनें....

फड़कती हुई शरीर की कुछ नसें.....

जाने क्या कहता तो है मन....

जाने क्या बुनता हुआ-सा रहता है तन....

बहुत दिनों पहले की तो ये बातें थीं......

आज तक ये क्यूँ जलती हुई-सी रहती है....

ये आग मचलती हुई-सी क्यूँ रहती है.....

अगर प्यार कुछ नहीं तो बुझ ही जाए ना....

और अगर कुछ है तो आग लगाये ना...

बरसों पहले बुझ चुकी जो आग है....

वो अब तलक दिखायी कैसे देती है....

और हमारी तन्हाईयों में उसकी सायं-सायं की गूँज सुनाई क्यूँ देती है....!!

प्यार अमर है तो पास आए ना....

और क्षणिक है तो मिट जाए ना......

मगर इस तरह आ-आकर हमें रुलाये ना....!!



शर्मिंदा होने का एक और अवसर!


लीजिये अगर आप फ़िल्म स्लम डॉग देख कर शर्मिंदा नही हुए तो ये ख़बर आपको ज़रूर शर्मिंदा कर देगी ! हॉलीवुड अभिनेत्री ऎजिलीना जोली और अभिनेता बै्रड पिट लेगें भारतीय बच्चाा गोद लेने वाले है। यह जोडी पहले ही अलग-अलग देशों के कई बच्चाों को गोद ले चुकी है, लेकिन उन्हे भारत से बच्चाा गोद लेने की प्रेरणा मिली है स्लमडॉग मिलिनेयर के दस वर्षीय अजहरूदीन से । बताया जाता है कि उसने जोली से पूछा था कि उन्होने अब तक भारत से कोई बच्चाा गोद क्यों नहीं लिया। इस पर जोली का जवाब था, मैं तुम्हे एक राज की बात बता रही हंू। हमलोग जल्द ही एक भारतीय बच्चाा गोद लेने जा रहे है। तो बहाइये भारत की गरीबी पर आसूं और जोली को दीजिये नोबल पुरुस्कार ! सच जोली को कितनी चिंता है हिंदुस्तान की?

अडवाणी की जिद !



बीजेपी के पीएम कैंडिडेट लालकृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ टीवी पर बहस करना चाहते हैं, मनमोहन ने इंकार कर दिया तो उन्होंने सोनिया को न्योता दे दिया! आडवानी ज़िद पर हैं...! उनका कहना है बहस तो होनी ही चाहिए वो भी ठीक उसी तरह जिस तरह अमेरिका में प्रेजिडंट पद के उम्मीदवार बहस करते हैं। कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया कि संसदीय जनतंत्र में इस तरह की बहस का कोई रिवाज नहीं है। लेकिन मान लीजिए कि यह अमेरिकी परंपरा अपने देश में भी शुरू हो जाए तो नजारा कैसा होगा? हो सकता है तब शरद पवार, मायावती, रामविलास पासवान और यहां तक कि लालू प्रसाद भी मैदान में कूद पड़ें। इनका सवाल यह होगा कि आखिर डिबेट आडवाणी जी और मनमोहन सिंह ही क्यों करेंगे? इन्होंने यह कैसे मान लिया कि सिर्फ उन्हीं की पार्टियां प्रधानमंत्री का उम्मीदवार तय करेंगी? यदि बहस की नौबत आती तो पता चलता कि शरद पवार ने मनमोहन सिंह को चुनौती दे डाली और लालू प्रसाद आडवाणी से बहस करने के लिए ताल ठोंककर खड़े हो गए। लालू प्रसाद तो बहस की शुरुआत में ही यह कह देते कि उन्होंने आडवाणी जी की कुंडली देख ली है, उसमें उनके प्रधानमंत्री बनने का कोई योग ही नहीं है। आडवाणी के लिए इसका जवाब देना आसान नहीं होता। कल्पना कीजिए कि ऐसी ही बहस के लिए फर्स्ट राउंड में मायावती और मुलायम सिंह आमने-सामने खड़े हो गए, तब किस तरह की बहस होगी। उधर दक्षिण में जयललिता, देवगौड़ा और चंद्रबाबू नायडू इसी उम्मीद में बहस में उतर सकते थे कि उनके दावे पर पुनर्विचार हो सकता है। लोग टीवी खोलते और हर एक घंटे के बाद उन्हें प्रधानमंत्री पद के 2 संभावित उम्मीदवार बहस करते हुए नजर आते। यहां जब क्षेत्रीय पार्टियां विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे को सांपनाथ, नागनाथ बताने से नहीं चूकतीं तो राष्ट्रीय बहस का स्तर तो और ऊंचा हो जाता। हर नेता बेहतर परफॉर्म करने की कोशिश करता। लेकिन उन नेताओं का क्या होता, जो चतुर वक्ता नहीं होते? तब चुनाव आयोग से इस बात की मांग की जाती कि पीएम कैंडिडेट को बहस में अपना वक्ता लाने की छूट दी जाए। अगर आयोग यह छूट दे देता तो मनमोहन सिंह की ओर से कपिल सिब्बल और मुलायम सिंह यादव की जगह अमर सिंह भेजे जाते। वैसे बहस का प्रस्ताव रखते हुए आडवाणी ने क्षण भर के लिए यह जरूर सोचा होगा कि काश! टीवी डिबेट से ही पीएम का फैसला हो जाता। लेकिन टीवी या मंच पर बोलने से यह कैसे पता चलेगा कि कौन सचमुच 'लौह पुरुष' है और कौन 'कमजोर पुरुष।'