Monday, 30 March 2009

अडवाणी की जिद !



बीजेपी के पीएम कैंडिडेट लालकृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ टीवी पर बहस करना चाहते हैं, मनमोहन ने इंकार कर दिया तो उन्होंने सोनिया को न्योता दे दिया! आडवानी ज़िद पर हैं...! उनका कहना है बहस तो होनी ही चाहिए वो भी ठीक उसी तरह जिस तरह अमेरिका में प्रेजिडंट पद के उम्मीदवार बहस करते हैं। कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया कि संसदीय जनतंत्र में इस तरह की बहस का कोई रिवाज नहीं है। लेकिन मान लीजिए कि यह अमेरिकी परंपरा अपने देश में भी शुरू हो जाए तो नजारा कैसा होगा? हो सकता है तब शरद पवार, मायावती, रामविलास पासवान और यहां तक कि लालू प्रसाद भी मैदान में कूद पड़ें। इनका सवाल यह होगा कि आखिर डिबेट आडवाणी जी और मनमोहन सिंह ही क्यों करेंगे? इन्होंने यह कैसे मान लिया कि सिर्फ उन्हीं की पार्टियां प्रधानमंत्री का उम्मीदवार तय करेंगी? यदि बहस की नौबत आती तो पता चलता कि शरद पवार ने मनमोहन सिंह को चुनौती दे डाली और लालू प्रसाद आडवाणी से बहस करने के लिए ताल ठोंककर खड़े हो गए। लालू प्रसाद तो बहस की शुरुआत में ही यह कह देते कि उन्होंने आडवाणी जी की कुंडली देख ली है, उसमें उनके प्रधानमंत्री बनने का कोई योग ही नहीं है। आडवाणी के लिए इसका जवाब देना आसान नहीं होता। कल्पना कीजिए कि ऐसी ही बहस के लिए फर्स्ट राउंड में मायावती और मुलायम सिंह आमने-सामने खड़े हो गए, तब किस तरह की बहस होगी। उधर दक्षिण में जयललिता, देवगौड़ा और चंद्रबाबू नायडू इसी उम्मीद में बहस में उतर सकते थे कि उनके दावे पर पुनर्विचार हो सकता है। लोग टीवी खोलते और हर एक घंटे के बाद उन्हें प्रधानमंत्री पद के 2 संभावित उम्मीदवार बहस करते हुए नजर आते। यहां जब क्षेत्रीय पार्टियां विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे को सांपनाथ, नागनाथ बताने से नहीं चूकतीं तो राष्ट्रीय बहस का स्तर तो और ऊंचा हो जाता। हर नेता बेहतर परफॉर्म करने की कोशिश करता। लेकिन उन नेताओं का क्या होता, जो चतुर वक्ता नहीं होते? तब चुनाव आयोग से इस बात की मांग की जाती कि पीएम कैंडिडेट को बहस में अपना वक्ता लाने की छूट दी जाए। अगर आयोग यह छूट दे देता तो मनमोहन सिंह की ओर से कपिल सिब्बल और मुलायम सिंह यादव की जगह अमर सिंह भेजे जाते। वैसे बहस का प्रस्ताव रखते हुए आडवाणी ने क्षण भर के लिए यह जरूर सोचा होगा कि काश! टीवी डिबेट से ही पीएम का फैसला हो जाता। लेकिन टीवी या मंच पर बोलने से यह कैसे पता चलेगा कि कौन सचमुच 'लौह पुरुष' है और कौन 'कमजोर पुरुष।'

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