Monday 21 June 2010

एंडरसन बडा बेशर्म है: दिल्ली से योगेश गुलाटी

आज से 25 साल पहले 65 साल के एंडरसन को पूरे राजकीय सम्मान के साथ प्लेन में बैठा कर अमेरिका रवाना करते वक्त हमारी सरकार ने शायद यही सोचा होगा कि जब तक हमारी अदालत गैस कांड का फैसला सुनाएगी तब तक बूढा एंडरसन स्वर्ग को कूच कर चुका होगा! ये पुराना आजमाया हुआ फंडा है जो हमारी सरकारें किसी बडे नेता या उद्योगपति के कानून के शिकंजे में फंसने पर अपनाती आई हैं! ऎसे मामले जो खास लोगों से जुडे होते हैं उनमें हमारी धीमी न्याय व्यवस्था की चाल को किस तरह और धीमा किया जाये कि वो घिसट कर चलने लगे, ये हमारी सरकारें अच्छी तरह जानती हैं! हमारे देश में किसी भी प्रभावशाली व्यक्ति के जुर्म पर फैसला 25-30 सालों से पहले नहीं आता है! अब निचली अदालत ही जब इतना वक्त लेती है तो, चिंता किस बात की? यहां सज़ा सिर्फ उसे होती है जिसके पास हमारी न्याय व्यवस्था में मुकदमों को लंबा खींचने के लिये पैसा नहीं होता! ज़ाहिर सी बात है गरीब के पास चूंकि पैसा नहीं होता इसलिये उसे अपनी छोटी से छोटी भूल के लिये भी सज़ा भुगतनी पडती है! और फैसला आने में भी ज़्यादा देरी नहीं होती!

लेकिन प्रभावशाली लोगों के मुकदमें हमारी अदालतों में कछुए की चाल को भी मात कर देते हैं! ताज़ा उदाहरण शीबू सोरेन का है! जिनपर लगे हत्या के चंद आरोपों में से एक का फैसला बीते दिनों ही आया है! ये मामला सन 1974 का है! बताया जाता है कि शीबू सोरेन ने दो लोगों की हत्या के लिये भीड का नेतृत्व किया था! निचली अदालत में ये मुकदमा दशकों तक चलता रहा! अब जाकर निचली अदालत ने इसका फैसला सुनाया! और ज़ाहिर सी बात है ऎसी घटनाओं के सबूत इतने सालों तक न्याय की आस में ज़िंदा नहीं रह सकते! तो सबूतों के अभाव में गुरुजी को बरी कर दिया गया! दशकों पहले के ऎसे दो अन्य हत्या के मामलों में भी गुरुजी बरी हो चुके हैं! जिन मामलों में आरोपी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया जाता है उनमें आखिर पीडित को न्याय का क्या होता है? अगर आरोपी ने हत्या नहीं की तो फिर हत्या किसने की? हमारी अदालतें ये तो स्वीकर करेंगी कि जुर्म हुआ है? और अगर जुर्म हुआ है तो क्या गुनहगार को ढूंढ कर उसे सज़ा दिलवाना कानून का फर्ज़ नहीं है! खैर सबूतों के अभाव में आरोपी को बरी करना हमारे यहां आम बात है! अब 25 साल तक केस चलेगा तो कौनसा सबूत बचा रहेगा? अगर आरोपी ज़िंदा रह गया इतने वक्त तक तो क्या गारंटी है कि गवाहों की उम्र इतनी लंबी होगी? और कोई गवाह किस्मत से लंबी उम्र का निकला तो भी अब इतने सालों के बाद वो क्यों अपने बयान पर कायम रहेगा? उसे कोई मेडल थोडेय ही मिल जायेगा आरोपी को सज़ा दिला कर? और अगर उसने आरोपी के खिलाफ गवाही दे भी दी तो उसकी और उसके परिवार की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा? लेकिन इन फालतू के सवालों पर विचार करने के लिये हमारे सिस्टम के पाद टाईम नहीं है!

खुदीराम बोस को गिरफ्तारी के 11 दिनों में अदालती कार्वाई पूरी करते हुए अंग्रेज़ों ने फांसी पर लटाका दिया था! उस वक्त उनकी उम्र महज़ 14 साल थी! तो भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को भी फांसी देने में अंग्रेज़ों ने ज़्यादा वक्त नहीं लिया था! ये लोग कोई आतंकवादी नहीं थे! ना ही कोई खूंखार अपराधी, जिनसे समाज को कोई खतरा हो! ये महान विचारक,लेखक, शायर, और विद्वान देशभक्त थे! अंग्रेज़ हुकूमत भी इस बात को अच्छी तरह जानती थी! लेकिन साम्रज्यवादी हितों को पूरा करने के लिये उसने इन महान देशभक्तों को शहीद कर दिया था! ये आज़ादी के पहले की बात थी!

और आज़ादी के बाद.....एक शख्स जो हमारी संसद पर हमला कर इस देश की संप्रभुता को चुनौती देता है, उसके समर्थन में आवाज़ बुलंद करने कईं बडी शख्सियतें सामने आती हैं! सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी पाये जाने और लंबी कानूनी कार्यवाही के बाद देश के सर्वोच्च न्यायलय द्वारा सज़ाए मौत सुनाए जाने के बाद भी हमारी सरकार इस अदालती फैसले पर अमल करने से डरती है! क्योंकि वो कहती है कि इससे कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड जायेगी! अगर एक आतंकवादी को सज़ा देने से कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड जायेगी तो ये समझा जा सकता है कि हम किस दोराहे पर आ गये हैं! और इसका अंजाम क्या होगा?

एक और शख्स जिसने अपने साथियों के साथ मुंबई में हिंसा का वो तांडव किया कि सारी दुनिया हैरान रह गई! उसे जिंदा गिरफ्तार करने के लिये हमारे जाबाज़ों जान की बाज़ी लगा दी! जिसे हिंसा का तांडव रचते हुए सारी दुनिया ने अपनी टीवी स्क्रीन पर देखा! उसे 800 से ज्यादा लोगों की गवाही और तमाम सबूतों के साथ् लंबी चली अदालती कार्यवाही के बाद जब सज़ा सुनाई गई तो ऎसा प्रदर्शित किया गया मानो हमने आतंकवाद के खिलाफ बहुत बडी जंग जीत ली है! जबकि सबको पता है कि उंची अदालतों से होता हुआ मामला अभी राष्ट्रपति के पास जायेगा! लेकिन हमारी सरकार चिंतित है, उसे इस बात की चिंता है कि इस दौरान आतंकी उसे छुडाने के लिये प्लेन हाईजेक जैसी कोई वारदात कर सकते हैं! इसलिये उसने राज्य सरकारों को अलर्ट कर दिया है!

यानि हमारा सिस्टम हर किस्म के आरोपी के साथ समभाव से पेश आता है! और उसे बचने का पूरा-पूरा मौका देता है! वो गवाहों के बदलने और सबूतों के नष्ट होने का इंतज़ार करता है! ताकि आरोपी को सबूतों के अभाव में छोडा जा सके! ये स्थिति भी केवल उसी दशा में आती है जब हमारी पुलिस स्काटालेंड यार्ड की पुलिस की तर्ज़ पर काम करे! जबकि हम ये अच्छी तरह जानते हैं कि हमारी पुलिस किस मजबूती के साथ अदालत में केस पेश करती है! आरुषी मर्डर केस और निठारी जैसे मामले हमारी पुलिसिया रवैये को दर्शाते हैं! आरोपी को गिरफ्तार करने से ज्यादा मुस्तैदी ये बास का कुत्ता ढूंढने में दिखाते हैं! पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट के सब्र का बांध भी टूट गया और जस्टिस ढींगरा ने पुलिस को बेशर्म और भी जाने क्या-क्या अलंकारों से सुषोभित किया!

तो ये बात गौर करने लायक है कि हमारे यहां ऎसे किसी भी मामले का फैसला 25-30 सालों से पहले नहीं आता जिसमें कोई प्रभावशाली शख्सियत कानून के शिकंजे में होती है! अब यदि ऎसे मामलों में फैसला उस शख्स के खिलाफ आये और वो शख्स बदकिस्मती से उस वक्त तक ज़िंदा हो तो भी उसके पास उपरी अदालतों में अपील करने का मौका होता है! भोपाल गैंस कांड के बाद एंडरसन के मामले में भी सरकार की यही रणनीति रही होगी! लेकिन बदकिस्मती से एंडरसन की उम्र ज़रा लंबी है! सरकार ये अच्छी तरह जानती है कि एंडरसन को भारत वापस लाना उसके लिये टेढी खीर है, इसीलिये इस मामले पर आये अदालती निर्णय में एंडरसन का ज़िक्र तक नहीं हुआ! जब 25 बरस तक केस चलने के बाद आये फैसले में एंडरसन का ज़िक्र तक नहीं है तो किस आधार पर आप एंडरसन के प्रत्यर्पण की बात कर रहे हैं! शायद ये सवाल अमेरिका की तरफ से पूछा जा सकता है! जो भी हो एंडरसन बडा बेशर्म है क्योंकि अगर उसकी उम्र इतनी लंबी ना होती तो हमारी सरकार के लिये वो गले की हड्डी ना बनता! और दिनियाभर में भारत सरकार की किरकिरी ना हो रही होती!