Sunday 27 June 2010

अंधेर नगरी-चौपट राजा: दिल्ली से योगेश गुलाटी





अंधेर नगरी-चौपट राजा की कहानी तो आपने सुनी ही होगी! आप भले ही उस चौपट राजा को बुरा भला कह लें! लेकिन मेरा मन उस चौपट राजा को प्रणाम कर रहा है! बचपन में मैं यही सोचता था कि लोग उस राजा को बुरा क्यों कहते थे, जिस राजा ने अपनी जनता के लिये हर चीज़ इतनी सस्ती कर दी थी कि टके सेर में जनता कुछ भी खरीद सकती थी! जिस राजा ने महंगाई और कालाबाज़ारी पर इस कदर अंकुश लगा दिया हो कि हर चीज़ आम आदमी की पहुंच में आ गई हो वो राजा तो महान अर्थशास्त्री और कुशल प्रशासक रहा होगा! लेकिन कुछ क्रूर इतिहासकारों ने अपने निहित स्वार्थों के चलते उस महान शासक को बदमान कर दिया! आज जब गरीबों का भोजन आटा और दाल भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गया है, मुझे ये कहानी बार- बार याद आ रही है! क्योंकि चौपट राजा की असली भूमिका में तो हमारी सरकार और सांसद हैं! जो इस महंगाई में जनता को राहत देने की बजाय अपना वेतन बढाने की कवायद कर रहे हैं! हमारी सरकार कहती है कि भगवान ने चाहा तो जल्द ही जनता को भी महंगाई से निजात मिलेगी! यानि जनता भगवान भरोसे है और ये लोग अपनी परेशानी से निजात पाने के लिये भगवान भरोसे नहीं हैं वो काम तो ये अपना वेतन पांच गुना करके खुद ही कर लेंगे! अब इसमें भगवान को कष्ट देने की क्या ज़रूरत?

महंगाई की मार से सबसे ज़्यादा अगर कोई परेशान है तो वो हैं हमारे सांसद! अब जल्द ही देश का उद्धार करने वाले हमारे गरीब सांसदों का वेतन पांच गुना हो जायेगा! क्योंकि इनका वेतन बढाने के लिये ना तो किसी वेतन आयोग की ज़रूरत होती है ना ही इनके काम के मुल्यांकन की! चाहे ये संसद में हाज़िर रहें या ना रहें! चाहे ये सदन में सोते हुए दिखाई दें! फिर भी ये आपस में मिल बैठ कर अपना वेतन बढाने का अधिकार रखते हैं! महंगाई बढ़ने के साथ ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सांसदों ने बेहतर वेतन पैकेज की मांग शुरू कर दी है। संसद की एक स्थायी समिति ने सिफारिश की है कि सांसदों की मंथली सैलरी 16,000 रुपये से बढ़ा कर 80,001 रुपये यानी केंद्र सरकार के सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी से एक रुपया अधिक कर दिया जाए। सरकार इस पर विचार कर रही है। सांसदों को सैलरी के अलावा संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए अभी 1000 रुपये बतौर अलाउंस मिलते हैं। संभावना जताई जा रही है कि सरकार इसको दोगुना यानी 2000 रुपये कर देगी। वहीं, संसदीय क्षेत्र का अलाउंस भी 40 हजार रुपये तक बढ़ाए जाने के संकेत हैं। इस समय सांसदों को इस मद में 20 हजार रुपये मिलते हैं। ऑफिस अलाउंस के तौर पर सांसदों को अब से हर महीने 54 हजार रुपये मिलने की उम्मीद है। जॉइंट पार्लियामेंटरी कमिटी ने इसे 60 हजार किए जाने की सिफारिश की थी।



जनता भले ही महंगाई की मार से कराह रही हो, लेकिन सरकार की सेहत पर इससे कोई फर्क नहीं पडता है! क्योंकि सरकार ये अच्छी तरह जानती है कि उसके पास पर्याप्त बहुमत है... चुनाव बहुत दूर है.... और जनता की याद्दाश्त बहुत कमज़ोर... इसलिये इस वक्त जनता उसका कुछ नहीं बिगाड सकती! तो वहीं महंगाई पर विपक्ष की नौटंकी भी इस वक्त सारा देश देख रहा है! आम आदमी की किसी को फिक्र नहीं है! कोई ये समझना नहीं चाहता कि प्रति दिन बीस रुपये से भी कम पर गुज़ारा करने वाले 26 करोड हिन्दुस्तानी अब कैसे जीयेंगे? कालाबाज़ारी अपने चरम पर जा पहुंची है और मुनाफाखोर इस स्थिति का बखूबी फायदा उठा रहे हैं! सरकार के प्रवक्ता बडी बेशर्मी के साथ ये बयान देते हैं कि भगवान ने चाहा तो आने वाले दिनों में महंगाई कम हो जायेगी? समझ नहीं आता इस देश की भोली जनता को ये कैसा छलावा दिया जा रहा है? हमारी सरकार ये साफ करे कि क्या महंगाई के लिये भगवान ज़िम्मेदार है? क्या भगवान ये सरकार चला रहा है? अगर नहीं तो भगवान महंगाई कैसे कम कर सकते हैं? आप कालाबज़ारियों पर लगाम क्यों नहीं लगाते? एक तरफ तो आप कहते हैं कि देश में खाद्य पदार्थों की कोई कमी नहीं है तो दूसरी तरफ ज़रूरी चीज़ों की कीमतें आसमान छू रही हैं! आम आदमी अब घर से बाहर निकलने में भी डर रहा है! बस, ट्रेन, मेट्रो, आटो, पेट्रोल, डीज़ल, केरोसिन, रसोई गैंस, स्कूल, कालेज, पानी, बिजली, दाल, आटा, सब्ज़ी, दवाईयां, हर ज़रूरत पर महंगाई की मार पडी है!

आम आदमी अपने पुराने ज़ख्म सहला भी नहीं पया था कि उसे नये ज़ख्म देने की तैयारी कर ली गई! बिजली, पानी, टेक्स के बाद रही सही कसर पेट्रोल डेज़ल और केरोसिन की कीमतों ने पूरी कर दी! और बडी बेशर्मी के साथ इसका ऎलान भी कर दिया गया! और इसे भगवान की मर्ज़ी कह कर जनता को बेहलाया जा रहा है! चुनाव जीतने के लिये तो जनता को सब्जबाग दिखाए जाते हैं! रसोई गैंस पर सब्सीडी देकर उसे दिल्ली में सबसे सस्ता बना दिया जाता है! और फिर सत्ता हथियाते ही जनता पर जुल्म शुरु हो जाते हैं! कामनवेल्थ के नाम पर रुपया पानी की तरह बहाया जा रहा है! इधर आम आदमी महंगाई और करों के बोझ तले दबा जा रहा है! कामनवेल्थ गेम्स के लिये सजाई जा रही दिल्ली की सडकों पर हमारे बच्चे भीख मांगते देखे जा सकते हैं! जब यही बच्चे विदेशी मेहमानों के सामने हाथ फैलाएंगे तब हमारी सरकार की नाक नीची नहीं होगी? लेकिन हमारे सांसदों को इसकी क्या चिंता? इन्हें चिंता है तो इस बात की कि इस महंगाई में उनको मिल रहे वेतन से उनका गुज़ारा नहीं होता इसलिये वे अपना वेतन पांच गुना करने की तैयारी कर रहे हैं! यानि गरीब जनता की गाढी कमाई अब कामनवेल्थ के बाद सांसदों की झोली में जाएगी! और बीस रुपये से भी कम पर अपना गुजारा करने को मजबूर करोडों हिंदुस्तानी महंगाई की मार से यूं ही बेहाल होते रहेगें! लेकिन हमारी सरकार बेचारी क्या करे? ये सब भगवान की मर्ज़ी है!