Friday, 7 May 2010
कसाब को फांसी पर, जश्न किसलिये?
हिंदुस्तान के लिए एक ऐतिहासिक मुक़दमा ! आज़ाद हिन्दुस्तान के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि एक मुकदमे के फैसले का सारा मुल्क दिल थामे इंतज़ार कर रहा था! पूरे मुल्क को कसाब के लिए मौत की सजा का इंतज़ार था! और अदालत ने आखिर वो फैसला सुना ही दिया! अदालत ने कसाब से कहा कि तुम्हे मरते दम तक फांसी दी जायेगी! क्योंकि तुमने जो किया है, उसके एवज़ में इससे कम कोई सज़ा नहीं है! वाकई हमने इतिहास रच दिया! हम इस बात पर खुश हो सकते है कि हमने महज़ एक साल में एक बड़े आतंकी मुकदमे का फैसला कर दिया! क्योंकि हमारी अदालते साधारण विवादों का फैसला करने में भी दशको का समय लेती है! हम इस बात पर भी खुश हो सकते हैं कि इस संवेदनशील मामले में दो भारतीय आरोपीयों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया ! हमारे विद्वान इसे न्यायालय की निष्पक्षता से जोड़ कर देख रहे हैं! और वो कसाब को मिली फांसी की सज़ा पर जश्न मना रहे हैं! लेकिन जश्न किस बात का? आतंक की इस शतरंज में कसाब महज़ एक प्यादा है! इस खेल के असली खिलाड़ी तो हमारी पहुंच से बाहर हैं! क्या हम अमेरिका की तर्ज़ पर पकिस्तान और पाक- कश्मीर में चल रही आतंक की फेक्त्रीयो को ख़त्म करने की हिम्मत रखते हैं अगर नहीं ...तो एक कसाब को फांसी पर लटकाने से कुछ नहीं होने वाला! क्योंकि महज़ चंद लाख रुपयों के लालच में भारत पर हमला करने को कितने ही कसाब तैयार बैठे है! हमारे पड़ोसी मुल्कों में इतनी गरीबी है कि वहां भारत पर हमला करने के लिए मानव बम तैयार करना कोइ मुश्किल काम नहीं है! और दुर्भाग्य से हमने अब तक आतंक के खिलाफ अमेरिका जैसी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है जिसे देख कर ये लगता हो कि हम आतंक के खिलाफ वाकई में सख्त हैं! और हममे ऐसी किसी हरकत का मुह तोड़ जवाब देने की ताकत है! कसाब तो मरने के लिए भारत आया था....शायद वो खुश होगा कि अदालत में उसकी उम्र बढ़ गयी! क्योंकि अब उसके पास हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और फिर राष्ट्रपति के पास दया के लिए गुहार लगाने का रास्ता बचता है! इसके बाद भी कसाब के ज़िंदा रहने की पूरी उम्मीदें हैं! क्योंकि अकेले महाराष्ट्र में ५८ अपराधी फांसी की सज़ा का इंतजार कर रहे हैं! कसाब का नंबर ५९वां है! और अभी तो संसद पर हमले के दोषी अफ़ज़ल की दया याचिका भी विचाराधीन है! ऐसे में ये कैसे मान लिया जाए कि हामारी सरकारें आतंकवाद पर वाकई में सख्त हैं? लेकिनं २६/११ के हमले में मारे गए लोग इतने खुशकिस्मत नहीं थे! मज़हबी उन्माद ने उन्हें उसी दिन मौत की नींद सुला दिया था! लेकिन इससे भी बड़ा सवाल आतंक की इस साजिश को रचाने वाले वो असली आतंकी कहां हैं? क्या आतंक के असली आकाओं के गिरेबां तक पहुंचने की हिम्मत हमारी सरकारों में है? कहां हैं २६/११ के असली सूत्रधार जो सरहद के पार बैठे इस हमले को अंजाम दे रहे थे? शायद वो इस वक्त अगले हमले की तैय्यारी कर रहे हो? और हम कसाब की फांसी पर जश्न मना रहे हैं? हमें नहीं भूलना चाहिए अमेरिका पर हुए एक आतंकी हमले के बाद उसने दो मुल्क तबाह कर दिए थे! तब से अब तक वहां कोई आतंकी हमला नहीं हुआ! और हम हर महीने औसतन एक आतंकी हमले का गवाह बन रहे हैं! क्योंकि हम हर बार यही कहते हैं कि अगले हमले का मुंह तोड़ जवाब देंगे!
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