Sunday 14 November 2010

क्या भ्रष्टाचार बन गया है शिष्टाचार?

लमाडी, चव्हाण के बाद अब राजा को भी गद्दी छोडना पडी है. चाहे मनमोहन अंतराआत्मा की आवाज़ पर जागे हों या विपक्ष के दबाव के आगे उन्हें झुकना पडा हो...दोनों ही स्थितियों में यूपीए सरकार के दामन पर लगे भ्रष्टाचार के दाग धोना आसान नहीं होगा. मनमोहन सिंह् स्वच्छ छबि के लिए जाने जाते हैं. लेकिन ये भी उतना ही सत्य है कि उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार सिर्फ बढा ही नहीं है बल्कि अच्छी तरह फला फूला है. अभी कामनवेल्थ में भ्रष्टाचार पर जांच पूरी भी नहीं हुई है कि एक और महा घोटाले के चलते प्रधानमंत्री को शर्मिंदगी उठानी पडी है. भारतीय लोकतंत्र में शायद ये पहला उदाहरण है जब एक साथ सरकार में शामिल इतने दिग्गज एक-एक कर भ्रष्ट्राचार की बलि चढ रहे हैं. आदर्श घोटाले ने महाराष्ट्र में एक चव्हाण को हटा कर दूसरे को गद्दी दिला दी. तो 2 जी स्पेक्ट्रम ने राजा को गद्दे से उतार दिया. कलमाडी पहले ही अपने साथ कईं दिग्गजों को लपेटे में ले चुके हैं. कलमाडी और शीला की महाभारत भी किसी से छिपी नहीं है. ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि क्या इन महा घोटालों की जानकारी प्रधानंत्री या सोनिया गांधी को नहीं रही होगी. और यदि वो अपनी ही सरकार की नाक के नीचे होने वाले कारनामों से अनजान रहते हैं तो ये कितना सही है? राजा से इस्तीफा ले लिया गया या राजा ने इस्तीफा दे दिया...? प्रधानमंत्री ने अंतर आत्मा की आवाज़ पर ये फैसला लिया या वो विपक्ष के दबाव के आगे झुक गये....? इन तमाम मुद्दों पर काफी बहस होगी और विश्लेषक कागज़ काले करेंगे इसलिये इस मुद्दे पर मैं कुछ कहना नहीं चाहता. कल प्रधानमंत्री संसद में बयान देंगे जिसमें वो कहेंगे कि "हमारी सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सख्त है और किसी भी मामले में दोषी को बक्शा नहीं जायेगा". इसके बाद विपक्ष शांत हो जायेगा और भ्रष्टाचार का मुद्दा फिर ठंडे बस्ते में चला जायेगा. लेकिन यहां मुख्य मुद्दा ये है कि इन घोटालों के चलते देश को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कौन करेगा? आज़ादी के बाद भी भारत से धन की निकासी रुकी नहीं है. फर्क सिर्फ इतना है कि पहले ये धन विदेशी ले जाते थे और अब हमारे चुने हुए नेता ले जाकर विदेशी बैंकों में जमा कर रहे हैं. कैसा अचंभा है कि हमारी सरकारों के पास गांवों में बिजली, पानी, सडक, स्कूल और दवाखाने जैसी मूलभूत सुविधायें जुटाने के लिये पैसा नहीं है, लेकिन एक खेल आयोजन करने के लिये टैक्स पेयर का धन पानी की तरह बहा दिया जाता है. पहले घोटाले करना और फिर इस्तीफा देकर अपना पल्ला झाड लेना क्या यही अब दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र में शिष्टाचार बन चुका है?