Friday 13 November 2009

राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट,

पिछ्ले दिनोँ देश के एक प्रतिष्ठित सरकारी सँस्थान मेँ जाने का मौका मिला! तो देखा एक बोर्ड हर जगह टँगा था! बोर्ड पर लिखा था....”अगर आपसे किसी काम के बदले सँस्थान का कोई कर्मचारी पैसोँ की माँग करता है तो तत्काल निदेशक से सम्पर्क करेँ!”
वहाँ कार्यरत अपने मित्र से मैने हर जगह टँगे इस बोर्ड का मतलब जानना चाहा तो वो मुस्कुराते हुए बोला: कितने नासमझ हो तुम ? मतलब ये कि अगर आपको रिश्वत देनी है तो सीधे निदेशक को ही देँ! बिचौलियोँ से सावधान! जब ज्यादा छान-बीन की तो पता चला कि वाकई मेँ वहाँ के निदेशक ऐसे ही गम्भीर आरोपोँ से घिरे हैँ! और इनक्वायरी चल रही है! मुझे ये मामला गँभीर इसलिये लगा क्योँकि ये सँस्थान वाकई देश का एक महत्वपूर्ण सँस्थान है! और जब इतने सँवेदंशील सँस्थान मेँ खुले तौर पर रिश्वत ली जा रही थी तो देश के बाकी सरकारी कार्यलयोँ मेँ भ्रष्टाचार के स्तर का अँदाज़ा लगाया जा सकता है! लेकिन सवाल ये है कि जब बात होती है भ्रष्टाचार की तो शिकँजे मेँ सिर्फ छोटी मछलियाँ ही क्योँ फसती हैँ? बडे मगरमच्छोँ पर कार्वाई क्योँ नहीँ होती? प्रधानमँत्री मनमोहन सिँह ने बीते दिनोँ जब यही बात कही थी तब मुझे इस बात का आभास होने लगा था कि जल्द ही कोई बडा नेता शिकँजे मेँ आने वाला है! और अब झारखँड के निर्दलीय मुख्यमँत्री मधुकोडा पर शिकँजा कस गया है! इस बार जाल मेँ है बडी मछली! चार हज़ार करोड रुपयोँ के घोटाले के सबूत मिल रहे हैँ...उस राज्य से जिस पर कुदरत तो मेहरबान रही है..लेकिन किस्मत नहीँ! 15 नवम्बर झारखँड के सबसे बडे सपूत बिरसा मुँडा का जन्मदिन है! यही दिन चुना था झारखँड के जन्म के लिये यहाँ की जनता ने! लेकिन झारखँड के निर्दलीय मुख्यमँत्री मधु कोडा ने इस सपने पर पलीत लगा दी! झारखँड मेँ निर्दलीय विधायक के रूप मेँ मुख्यमँत्री पद सँभाल कर इतिहास रचने वाले मधु कोडा पर आरोप है कि उन्होँने दो नँबर की कमाई मेँ भी इतिहास रच दिया! कोडा ने सिर्फ दो साल के अपने कार्यकाल मेँ चार हज़ार करोड रुपए से अधिक के वारे न्यारे कर डाले! खास बात ये है कि कोडा त्याग तपस्या और बलिदान की शिक्षा देने वाले आरएसएस की उपज हैँ! जिन्हेँ बीजेपी ने मँत्री बनाया! और काँग्रेस ने मुख्यमँत्री! लेकिन ये कोई सवाल नहीँ है! सवाल ये है कि कोडा कैसे इतनी बडी रकम अकेले ही डकार गये! क्या हमारी व्यस्था इतनी लाचार और पँगु है कि बिना आधार वाला मुख्यमँत्री भी इतनी बडी रकम हजम कर सकता है?
जब सन दो हज़ार के 15 नवँबर को भारतीय सँघ के 28 वेँ राज्य के रूप मेँ झारखँड का गठन हुआ था तो झारखँड की भोली और गरीब जनता ने एक सपना देखा था! उन्हेँ लगा था कि बिहार के कुशासन और राजनीतिक अपसँस्कृति से मुक्ति पाकर अब उनका प्रदेश विकास की नई उँचाइयोँ को छूएगा! क्योँकि ये इलाका खनिज सँपदा से भरपूर था! आधारभूत सँरचना भी अच्छी थी! अच्छी शिक्षण सँस्थायेँ थी! और ये प्रदेश कोरे कागज पर अपनी योजनायेँ बना सकता था! फिर झारखँड मेँ इतनी लूट क्योँ मची? ये कोइ बडा सवाल नहीँ है! बडा सवाल ये है कि क्या ये लूट सिर्फ झारखँड मेँ ही है या बाकी प्रदेशोँ मेँ भी यही सब चल रहा है? जो दिखता है वो तो सच होता है लेकिंजो छुपा हुआ है क्या वो सच नहीँ है? बहुमत का जादुई आकडा जुटाने के लिये ब्लेकमेल की राजनीति के परिणाम इससे भी भयानक हो सकते हैँ!
देश के नये जन्मेँ इस राज्य के जन्म के साथ ही इसके पतन की कहानी लिख दी गई थी! झारखँड मुक्ति मोर्चा घूस काँड भारत के सँवैधानिक इतिहास मेँ बहुचर्चित काँड है! जब बाबूलाल मराँडी की सरकार थी तब उसी सरकार के कुछ मँत्रियोँ ने अपने निजी स्वार्थोँ के लिये भाजपा को इस बात के लिये मजबूर कर दिया था कि वो बाबूलाल के स्थान पर किसी अन्य को पार्टी का नेता चुने! और भाजपा को सरकार बचाने लिये इस दबाव के आगे झुकना पडा! वैसे ही जैसे आज कर्नाटक मेँ भाजपा ने झुक कर अपनी सकार बचाई है! यानि कर्नाटक मेँ भी इतिहास एक बार फिर खुद को दोहरा रहा है! कर्नाटक का मुद्दा कोडा की कहानी से जुडा है इसलिये यहाँ उसका ज़िक्र करना भी ज़रूरी है! प्रेस काँफ्रेँस मेँ कर्नाटक के मुख्यमँत्री येदयुरपा की आँखोँ बहते आँसू कर्नाटॅक मेँ लोकतँत्र के पतन की दास्ताँ बयाँ करते हैँ! लेकिन बीजेपी ने अपनी पिछ्ली भूल से कोई सबक ना लेते हुए कर्नाटक मेँ भी झारखँड की कहानी को दोहराया है! सुषमा स्वराज भलेँ ही कहेँ कि सँकट टॅल गया है... लेकिन वो भी ये अच्छी तरह जानती हैँ कि सँकट तो अब शुरु हुआ है! कर्नाटॅक की जनता को अभी असली तमाशा देखना है! उम्मीद कीजिये कि यहाँ वैसा ना हो जैसा झारखँड मेँ हुआ!
खैर हम बात कर रहे थे झारखँड की! मराँडी और अर्जुन मुँडा की सरकार मेँ भी मधुकोडा मँत्री थे! लेकिन तब वे बदनाम नहीँ थे! साल दो हज़ार पाँच मेँ उच्चतम न्यायलय के हस्तक्षेप के बाद अर्जुन मुँडा सरकार बनी! और उस सरकार मेँ एनोस एक्का और हरिनारायण राय सहित मधु कोडा भी मँत्री बनेँ! एनोस एक्का और हरिनारायण राय अपने विभाग के कामकाज मेँ खुली छूट चाहते थे! जो अधिकारी इन मँत्रियोँ से सहमत नहीँ होते थे उनका तबादला कर दिया जाता था! क्योँकि इन मँत्रियोँ को पैसोँ का स्वाद लग चुका था! झारखँड की राजनीति की बिसात पर जो शतरँज चल् रही थी उसमेँ अपनी अहमियत को ये अच्छी तरह पहचान चुके थे! लेकिन अर्जुन मुँडा सरकार उन्हेँ इतनी छूट देने के लिये तैयार नहीँ थी! नतीजतन इन्होँने उस सरकार से समर्थन वापस ले लिया! काँग्रेस, झारखँड मुक्ति मोर्चा और राजद ने इनके मँसूबोँ को बढाया! निर्दलीय विधायक मधु कोडा को मुख्यमँत्री बनाया जिसमेँ झामुमो भी शामिल हुआ! इस कोडा सरकार के मुख्य खैवनहार थे लालू प्रसाद यादव! जिन्हेँ काँग्रेस का पूरा समर्थन था! तो क्या इस लूट मेँ कोडा अकेले शामिल थे? लालू कहते हैँ हमने तो सरकार चलाने के लिये समर्थन दिया था लूट मचाने के लिये नहीँ! तो इधर काँग्रेस ने बडी मछली को फाँस कर एक तीर से दो निशाने तो कर लिये...! लेकिन जब कोडा एँड कँपनी झारखँड को लूट रही थी....बाबू से लेकर अधिकारी और मँत्रीयोँ मेँ हिस्सा बट रहा था...और जनता न्याय के लिये ठोकरेँ खा रही थी....उन पूरे दो सालोँ तक क्या काँग्रेस सो रही थी? इस लूट के लिये ज़िम्मेदार आखिर कौन है? और इस बात की क्या गारँटी है कि ऐसी ही लूट महाराष्ट्र, हरियाणा या कर्नाटक मेँ नहीँ चल रही होगी? येदयुरप्पा के आँसू बहुत कुछ कहते हैँ...ज़रूरत है आसूओँ के पीछे की कहानी को समझा जाये और जल्द उसका निदान खोजा जाये! नहीँ तो झारखँड मेँ हुई लूट के किस्से बाकी प्रदेशोँ मेँ भी होते रहेँगे....जनता योँ ही तकलीफोँ मेँ जीती रहेगी....नेता अमीर और अमीर होते जायेँगे... और हम योँ ही कागज़ काले करते रहेँगे!