Saturday 29 May 2010

डीयू से तौबा!: दिल्ली से योगेश गुलाटी

मेरे एक देहाती मित्र ने 12वीं में 96 प्रतिशत अंक अर्जित किये तो मैने उसे दिल्ली विश्चिद्यालय में दाखिला लेकर आगे पढाई करने की सलाह दी! मेरी इस सलाह को मानकर वो दाखिले की दौड में शामिल होने मेरे साथ दिल्ली विश्विद्यालय जा पहुंचा! खादी का कुर्ता-पजामा, और पैरों में चमडे की चप्पल पहने जब वो डीयू केम्पस में दाखिल हुआ, तो वहां के नज़ारे देख कर वो चौक गया! लेटेस्ट फैशन ट्रेंड को फालो करते छात्र-छात्राएं डीयू केंपस की शोभा बढा रहे थे! पूरा कैम्पस किसी फैशन शो से कम नहीं लग रहा था! अखबार और टीवी वाले भी डीयू के फैशन ट्रेंड की रिपोर्टिंग और हाट फोटो लेने में व्यस्त थे! लेकिन मेरे देहाती मित्र को कुछ समझ नहीं आ रहा था! जैसे-जैसे वो कैम्पस में आगे बढता जा रहा था, उसकी हैरानी बढती ही जा रही थी! उसे परेशान देख कर मैंने उसकी परेशानी का कारण जानना चाहा! उससे रहा नहीं गया और वो बोला, "यहां सब कार्टून बन कर क्यों घूम रहे हैं?" उसके इस सवाल पर मेंरी हंसी छूट गई! मैंने कहा ये तो डीयू का लेटेस्ट फैशन ट्रेंड है! देखा नहीं यहां इस फैशन को कवर करने के लिये कितनी मीडिया जुटी है़? वो बोला, "फैशन ट्रेंड? लेकिन हम तो यहां दाखिला करवाने आये हैं, क्या दिल्ली विश्विद्यालय में आज कोई फैशन परेड का आयोजन है?" उसके इस भोले सवाल पर मैंने कहा, अभी तो दाखिले की दौड है, एडमिशन के बाद के नज़ारे क्या तुम झेल पाओगे? शायद अपने पुराने और दकियानूसी संस्कारों की वजह से मेरा वो मित्र दिल्ली विश्वविद्यालय के उन्मुक्त वातावरण में असहज महसूस कर रहा था! बगीचे में लेटे छात्र-छात्राओं की नज़दीकीयां, बात-बात में एक दूसरे को छूना उसे जाने क्यों शर्मिंदा कर रहा था!! ऎसा वातावरण उसने शायद पहली बार देखा था, इसलिये मैंने उससे पूछ लिया, तुम्हारे शहर की यूनिवर्सिटी में कैसा माहौल होता है? "हमारे यहां तो बेहद सादगी भरा माहौल होता है, और हमें तो किसी लेटेस्ट फैशन ट्रेंड के बारे में कुछ पता ही नहीं होता है! हम तो वो ही सादे से कपडे पहनते हैं और हाथों में किताब लिये पढने पहुंच जाते हैं! बगीचों में बैठ कर भी हम पढाई ही करते हैं! और बात-बात में एम दूसरे को छूने को हमारे यहां अशिष्टता माना जाता है! और हां लडके-लडकियां इस तरह बगीचे में कभी लेटे हुए नहीं मिलते! वो सीना फुला कर बोला! "अरे भाई वो तुम्हारी देहाती यूनिवर्सिटी है और ये अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विश्विद्यालय! कुछ तो अंतर होगा ही! मैंने कहा! "अगर ऎसा है तो हमें हमारी वो देहाती यूनिवर्सिटी ही प्यारी है, हमें नहीं लेना यहां दाखिला! आप चलिये यहां से!" उसकी ये बात सुनकर मैं सन्न रह गया! वो वाकई में गंभीर नज़र आ रहा था! एक होनहार छात्र दिल्ली विश्विद्यालय में दाखिला लेना नहीं चाहता था! मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो अपने निर्णय पर अडिग रहा! देहात के सरकारी स्कूल में पढे उस होनहार लडके ने कानवेंट में पढे छात्रों के साथ दिल्ली विश्विद्यालय में पढने से इन्कार कर दिया था!

जन्मदिन है आज सोच रहा मैं क्या खोया क्या पाया: दिल्ली से योगेश गुलाटी

जन्म दिन है आज सोच रहा मैं, क्या खोया क्या पाया,
क्या अब तक जीवन यों ही व्यर्थ गवाया?
कितने बसंत देखे अब तक उनका हिसाब करूं,
या आने वाले कल को मैं प्रणाम करूं?
करने क्या आया मैं धरा पर,
क्या इस पर विचार करूं?
या जीवन की उलझनों को मैं पार करूं,
क्या द्रव्य का संग्रहण ही लक्ष्य है जीवन का,
या जीवन में एक नया लक्ष्य मैं तैयार करूं!
जितना समझता हूं दुनिया को,
उतना ही होता हूं निराश,
इससे तो अच्छा था मैं बच्चा ही रहता,
दुनिया के छल-कपट से दूर मन का सच्चा ही रहता!

देखे दुनिया के मेले,
और मेलों में देखे झमेले,
धन की चिन्ता में पिसता इंसान,
जब पैसा ही बन जाता भगवान,
तब सस्ती हो जाती इंसानी जान,

सबकी यही कोशिश,
बनानी है अपनी पहचान,
और इसी पहचान की चाहत में,
चल पडा है हर इंसान,
लेकिन वो जानता नहीं कि,
रेत पर खींची लकीरों की तरह है इंसान का वजूद,
वजूद जो इक दिन मिट जायेगा,
सागर की लहरों से लकीरों का,
नाम फिर गुम जायेगा,
जो रहेगा वो कर्म हैं,
विचार हैं, और ये संसार है!
इस नश्वर संसार में अनश्वर कुछ भी नहीं,
परिवर्तन तो प्रकृतिक का नियम है,
इस नियम से बढकर कुछ भी नहीं,

एक मदारी आया था,
संग अपने वो बंदर लाया था,
डमरू की थाप पर नाचता था बंदर,
मदारी की हर बात को मानता था बंदर,
वो कहता उठ तो उठ जाता,
वो कहता बैठ तो वो बैठ जाता,
मदारी के कहने पर वो करता था हर काम,
और हाथ जोड कर करता था सबको सलाम!
लेकिन जीवन मदारी का खेल तो नहीं,
पटरी पर चलने वाली ये कोई रेल तो नहीं,
जब तक ना मिलती राह कोई,
जीवन तब तक संग्राम रहेगा,
मंज़िल पर जब तक ना पहुंचोगे,
तब तक नहीं आराम रहेगा!