बीते हुए लम्हे....
गुजरे हुए पल.....
बिखरी हुई यादें.....
थोडी-सी कसक....।
थोडी सी-सी महक....
डूबी हुई कोई सिसकी....
कोई खुशनुमा-सी शाम.....
या दर्द में डूबा संगीत..........
सुरमई से कुछ भीने-भीने रंग.....
यादों से विभोर होता हुआ मन.......
मचलती हुई कई धड़कनें....
फड़कती हुई शरीर की कुछ नसें.....
जाने क्या कहता तो है मन....
जाने क्या बुनता हुआ-सा रहता है तन....
बहुत दिनों पहले की तो ये बातें थीं......
आज तक ये क्यूँ जलती हुई-सी रहती है....
ये आग मचलती हुई-सी क्यूँ रहती है.....
अगर प्यार कुछ नहीं तो बुझ ही जाए ना....
और अगर कुछ है तो आग लगाये ना...
बरसों पहले बुझ चुकी जो आग है....
वो अब तलक दिखायी कैसे देती है....
और हमारी तन्हाईयों में उसकी सायं-सायं की गूँज सुनाई क्यूँ देती है....!!
प्यार अमर है तो पास आए ना....
और क्षणिक है तो मिट जाए ना......
मगर इस तरह आ-आकर हमें रुलाये ना....!!
1 comment:
आपकी ये कविता कमेन्ट में भी पढ़ी थी. यहाँ फिर से देख कर अच्छा लगा.
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