Sunday 29 March 2009

कब तक रहेंगे पीछे?


आईटी में भारत के विश्व महाशक्ति बन जाने की बात पिछले कई सालों से कमोबेश उसी तरह कही जा रही है, जैसे कुछ समय पहले तक भारत एक कृषि प्रधान देश है जैसे जुमले बोले जाते थे। लेकिन हमारे नेताओं को अगर चुनावी गहमागहमी के बीच कुछ वक्त मिले तो उन्हें वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की सालाना इन्फर्मेशन ऐंड कम्यूनिकेशन टेक्नॉलजी की रिपोर्ट देख लेनी चाहिए। नेटवर्क रेडिनेस इंडेक्स (एनआरआई) के पैमाने पर दुनिया के 134 देशों में भारत की जगह पिछले 3 सालों में 44वीं से खिसक कर 50वीं और अब 54वीं हो गई है। इस एनआरआई की गणना सूचना और संचार के उपकरणों की बिक्री, इससे जुड़े कानूनी तथा आधारभूत ढांचे; इस संबंध में व्यक्तियों, व्यापारिक घरानों और सरकार की तैयारी तथा सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी की नवीनतम तकनीकों के जमीनी इस्तेमाल के आधार पर की जाती है। इनके आधार पर भारत का एनआरआई अब से छह साल पहले 4.03 का निकाला गया था और तब से लेकर आज तक यह वहीं का वहीं पड़ा है। इस ठहराव का नतीजा यह है कि आईटी के क्षेत्र में हमसे काफी बाद में आए देश तेजी से हमसे आगे निकलते जा रहे हैं। एक सी आबादी और आजादी के एक से समय को ध्यान में रखते हुए भारत की तुलना अक्सर चीन से की जाती है। आईटी के मामले में हम अभी तक ताल ठोक कर चीन को खुद से काफी पीछे साबित करते आए हैं। पिछले साल एनआरआई की नाप पर दुनिया में चीन का मुकाम 57वां और भारत का 50वां था, यानी भारत चीन से सात स्थान आगे था। लेकिन सिर्फ एक साल में पासा ऐसा पलटा कि चीन 46वें स्थान पर आ गया जबकि हम 54वें पर, यानी उससे आठ स्थान पीछे चले गए। ऐसा क्यों हुआ, इसका अध्ययन पूरी गंभीरता से और तत्काल किया जाना चाहिए, वरना औद्योगिक टेक्नॉलजी में अपने पिछड़ेपन की भरपाई सूचना टेक्नॉलजी से कर लेने का हमारा सपना इस बार की चूक के बाद सपना ही रह जाएगा। कुछ बातें साफ हैं और बिना किसी विशेष अध्ययन के ही रेखांकित की जा सकती हैं। सूचना और संचार हमारे यहां खुद में भले ही एक कामयाब धंधा समझा जा रहा हो, लेकिन आम लोगों की रोजी-रोटी से इसका जैसा जुड़ाव बनना चाहिए, वह बन नहीं पा रहा है। आखिर क्यों ब्रॉडबैंड इंटरनेट भारत में एक उच्च-मध्यवर्गीय सुविधा बन कर रह गया है? मोबाइल फोन का इस्तेमाल जिस तरह हम सब्जी और कबाड़ तक के खुदरा कारोबार में होते देख रहे हैं, वैसी कोई भूमिका कंप्यूटर और इंटरनेट के लिए भी क्यों नहीं खोजी जा पा रही है? जिन देशों में यह काम हो रहा है वहां ब्रॉडबैंड विशेषाधिकार के दायरों से निकल कर नियमित घरेलू इस्तेमाल की चीज बनता जा रहा है। जाहिर है, यह दृष्टि की, विजन की समस्या है, जिसे हल करने की जिम्मेदारी देश के राजनीतिक और व्यापारिक नेतृत्व की है। इसे अजंडा पर लाए बगैर आईटी में अपनी काबलियत के गुण गाने का कोई अर्थ नहीं है।


1 comment:

Anil Kumar said...

हाल ही में एक दोस्त के साथ उसका मैरिज सर्टिफिकेट बनवाने गया. वहाँ पर दफ्तर में अधिकारी सभी काम हाथ से लिख-लिखकर कर रहा था. मेरे मित्र का नाम, पता, जन्मतिथि इत्यादि उसने कम से कम दस रजिस्टरों में बार-बार लिखी.

उनके दफ्तर में कंप्यूटर जी का कहीं नामोनिशान नहीं दिख रहा था. सोचा ऐसे ही उनसे पूछ लेते हैं. हमने उन्हें सुझाया कि यदि वे कंप्यूटर का प्रयोग करें तो उनका काम आसान हो जायेगा.

उन्होंने पलटकर कहा, यदि कंप्यूटर ही सारा काम कर लेगा तो हमें नौकरी पर कौन रखेगा?

सरकार ने अधिकारियों की कंप्यूटर-शिक्षा के लिये कोर्स बनाये हैं और उन्हें मुफ्त मुहैया भी कराया है. लेकिन कर्मचारी यह सोचकर बैठे हैं कि कंप्यूटर के आने से उनकी नौकरी पर खतरा है. अब इनको कौन समझाये?

दूसरी बात - पैसे के भुगतान के लिये अब भी लाइनों में लगना पडता है. केवल कुछ ही सरकारी संस्थान हैं जो अंतरजाल पर पैसे लेते हैं. इसका कारण यह है कि यदि आप किसी अधिकारी के पास जाकर पैसे देंगे तो उसे रिश्वत मांगने का मौका मिलेगा. यदि आपने सारा काम अंतरजाल के माध्यम से ही करवा लिया तो सरकारी महकमे रिश्वत कैसे खायेंगे?

सोचिये!