Tuesday 14 April 2009

सबसे बड़े प्रजातंत्र की लागत


विभिन्न नेताओं ने स्वीकार किया है कि एक सांसद के चुनाव पर तीन से पांच करोड़ रूपए की राशि खर्च होती है। अमूमन चुनाव प्रचार के लिए एक दिन में होने वाला खर्च करीब पांच लाख रूपए होता है जो प्रचार के अंतिम हफ्ते तक बढ़ कर दस से पन्द्रह लाख तक भी पहुंच सकता है।
विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र के लिए हो रहे चुनाव पर एक अनुमान के मुताबिक करीब 18 हजार करोड़ रूपए खर्च होंगे। इस मायने में भारत का यह आम चुनाव कुछ महीने पहले अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव के खर्च को भी पीछे छोड़ देगा। उसमें लगभग दस हजार करोड़ रूपए खर्च हुए थे।
इस संबंध में राष्ट्रीय दलों के चुनावी प्रत्याशियों और वरिष्ठ नेताओं से चर्चा की। स्वाभाविक रूप से इस संबंध में खुल कर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। नाम न जाहिर करने की शर्त पर इन नेताओं का कहना है कि एक सांसद के चुनाव में तीन से पांच करोड़ रूपए की राशि खर्च होती है।
सूत्रों का कहना है कि अगर चुनाव जद्दोजहद और खींचतान वाला हो तो यह खर्च दुगुना और तिगुना भी हो सकता है। राष्ट्रीय दलों की बात करें तो उनकी ओर से प्रत्याशियों को लगभग एक करोड़ रूपए की राशि चुनाव खर्च के लिए दी जाती है। चुनाव खर्च मोटे तौर पर प्रचार सामग्री और जनसभा के आयोजन तथा कार्यकर्ताओं को प्रतिदिन दी जाने वाली राशि के रूप में होता है।
एक कार्यकर्ता को रोज करीब 200 रूपए दिए जाते हैं। विधानसभा क्षेत्रवार तीन सौ से पांच सौ कार्यकर्ता चुनाव प्रचार के लिए जुटते हैं।
आमतौर पर एक लोकसभा क्षेत्र में छह से आठ विधानसभा क्षेत्र होते हैं।
सूत्र बताते हैं कि पहले चुनाव में वाहन आदि की व्यवस्था पर खासी रकम खर्च होती थी लेकिन चुनाव आयोग की सख्ती के मद्देनजर अब इसमें काफी कमी आई है। फिर भी चोरी छिपे बडी संख्या में वाहन अब भी चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल होते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले गाडियां किराए पर ली जाती थीं अब खुद ज्यादातर कार्यकर्ताओं के पास कार या जीप होती है जिसका इस्तेमाल प्रचार के लिए किया जाता है।
सूत्रों के अनुसार पहले चुनाव में कंबल ् कपड़े और मदिरा बंटने की बातें ही ज्यादा सामने आती थीं लेकिन पिछले कुछ वर्षो में चुनाव में एक वर्ग ऐसा भी सामने आया है जिसके लिए विशेष उपहार की व्यवस्था होती है। इन उपहारों में मल्टी यूटिलिटी व्हीकल सहित अन्य मूल्यवान वस्तुएं शामिल होती हैं। चुनाव में विशिष्ट उपहार प्राप्त करने वाला यह वर्ग राजनीतिक समीकरण की दृष्टि से खासा महत्वपूर्ण होता है। ये राजनीतिक रसूख रखने वाले लोग होते हैं जिनके कहने पर संबंधित क्षेत्रों में पांच से लेकर पचास हजार तक के वोटों का फैसला हो जाता है।
खास बात यह भी है कि राजनीतिक दलों में कुछ विशिष्ट कार्यकर्ताओं का ऐसा हुजूम भी होता है जिन्हें टास्क परफार्मर कहा जाता है। ऐसे कार्यकर्ता उन क्षेत्रों में झोंके जाते हैं जहां उम्मीदवार की हालत कमजोर होती है। अनुकूल परिणाम आने पर टास्क परफार्मर कार्यकर्ता भी मूल्यवान उपहारों से नवाजे जाते हैं।
करीब पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय स्तर के एक दल के कार्यकर्ताओं को इसी तर्ज पर एक ट्रक भर-भर मोटरसाइकिलें बांटे जाने की खासी चर्चा रही थी।

1 comment:

अजय कुमार झा said...

chhee chhee , itnee badee laagat ke baavjood itneee ghatiyaa paidaawaar lagtaa hai wakai jameen banjar hotee ja rahee hai, aachha likhaa hai badhai.