एक अजीबो गरीब स्थिति देख रहा हूँ इन दिनोँ! समझ नहीँ आता क्या करूँ? अमर प्रेम कथा अभी खत्म भी नहीँ हुई कि शाहरुख पर महाभारत शुरु हो गई? हिँदुस्तान मेँ जिस तरह मीडिया का दुरुपयोग हो रहा है वैसा शायद ही दुनिया के किसी देश मेँ होता होगा! सारा देश जब महँगाई की मार से कराह रहा है उस वक्त हमारे मीडिया मेँ शाहरुख और शिव सेना का डेली सोप चल रहा है! कल किसने क्या कहा था? आज किसने क्या कहा और अगले दिन कौन क्या कहने वाला है? बचकाने बयान...और उनसे भी बचकाना उन बयानोँ का प्रसारण! क्या इस वक्त देश मेँ कोई खबर नहीँ? महँगाई, गरीबी, अशिक्षा, बेरोज़गारी और उससे भी बढकर भ्रष्टाचार! जी हाँ भोपाल मेँ आईएस दम्पत्ति के गद्दोँ से करोडोँ रुपये बरामद हुए हैँ! लेकिन ये कोई खबर ही नहीँ बनी! ये कोई मुद्दा नहीँ बना! बाला साहब ने सामना मेँ क्या लिखा? शाहरुख ने क्या कहा? ये मुद्दा बन गया! राष्ट्रीय मुद्दा? क्या मज़ाक नहीँ हो रहा इस देश की जनता के साथ! कौन नहीँ जानता कि ठाकरे और शाहरुख दोनोँ ही अपना मतलब साध रहे हैँ? क्या शाहरुख पानी मेँ रह कर मगरमच्छ से बैर ले सकते हैँ? क्या ठाकरे नहीँ जानते कि वो जो कर रहे हैँ या जो लिख रहे हैँ वो मर्यादित है या नहीँ! जानते हैँ सब जानते हैँ.....ठाकरे भी....शाहरुख भी और मीडिया भी! शिवसेना अपनी राजनीति चमका रही है! शाहरुख अपनी फिल्म चमका रहे हैँ मीडिया टीआरपी चमका रही है! और बेचारी जनता बेवकुफ बन रही है! ठाकरे सोनिया को ताना दे रहे हैँ...राहुल को भी नहीँ बख्श रहे! महाराष्ट्र मेँ काँग्रेस की सरकार है! लेकिन काँग्रेस चुप है! चुप ही नहीँ वो खुश भी है! कुछ दिन पहले महँगाई के मुद्दे पर केन्द्र सरकार के हाथ पाँव फूल रहे थे! उससे जवाब देते नहीँ बन रहा था! लेकिन अब शाहरुख पर मची इस महाभारत का फायदा उठा कर चुपके से तेल और डीज़ल की कीमतेँ बढाने की तैयारी हो रही है! क्योँकि जनता का ध्यान तो अब शिवसेना और शहरुख पर है! महँगाई को तो वो भूल गई है! इसीलिये हमारे विद्वान गृह मँत्री भी शाहरुख-शिवसेना विवाद मेँ कूद पडे हैँ! वो खुल कर शाहरुख का समर्थन कर रहे हैँ! ये बात अलग है कि महँगाई पर वो कुछ नहीँ बोलते! किसानोँ की आत्म हत्या पर कुछ कहने के लिये उनके पास वक्त नहीँ होता!
कैसी विडम्बना है? गँगा का प्रदूषण कोइ मुद्दा नहीँ है! कालाहाँडी की भुखमरी कोई मुद्दा नहीँ है! खत्म होते बाघ कोई मुद्दा नहीँ है! बढती जनसँख्या कोई मुद्दा नहीँ है! बढते अपराध कोई मुद्दा नहीँ है! भ्रष्टाचार मेँ डूबे नेता और अफसर ,कोई मुद्दा नहीँ है! न्याय की आस मेँ दम तोडते गरीब....कोई मुद्दा नहीँ है! चरमाराई कानून व्यस्था कोई मुद्दा नहीँ है! गाँवोँ मेँ चिकित्सा के अभाव मेँ दम तोडते मरीज़ कोई मुद्दा नहीँ है! सडकेँ राशन, स्कूल, खेती, तरक्की.....! क्या करेँगे इन सब की बात करके? लेकिन बाटला हाउस......? मुद्दा है.......! बहुत बडा मुद्दा है! क्या अँतर रह जाता है काँग्रेस और शिव सेना मेँ? दोनोँ ही तो बटवारे की राजनीति कर रहे हैँ! बाटला हाउस मुटभेड के वक्त केन्द्र और राज्य दोनोँ जगह काँग्रेस की ही सरकार थी तो क्या काँग्रेस के चाणक्य दिग्विजय सिँह जवाबदारी लेँगेँ? कौन नहीँ जानता कि ये बयान बिहार चुनावोँ के मद्देनज़र दिया गया है! पहले दिग्विजय का आज़मगढ जाना, फिर मुटभेड मेँ मारे गये आरोपीयोँ के घर जाकर वहाँ से बयान जारी करना....क्या साबित करता है? चुनावोँ के वक्त हमारे नेता साम्प्रादायिकता से जुडी बातोँ को ही क्योँ हवा देते हैँ? क्या लोकतँत्र मेँ नेताओँ का मकसद सिर्फ और सिर्फ चुनाव जीतना ही रह गया है? मुझे लगता है अब वक्त आ गया है न्यायपालिका को इसमेँ दखल देना चाहिये! मीडिया इन बयानोँ को प्रमुखता के साथ दिखाता है? अच्छी खबरोँ को दबाना और बुरी खबरोँ को बार-बार दिखाना....! क्या सच मेँ हम पत्रकारिता कर रहे हैँ? ज़रा सोचिये!
4 comments:
Yogesh sawal ye hai ki media mein phaile corruption aur dogli neetiyon ko kaun pardafaash karega......Media ko democracy ka fourth pillar kaha jaata hai .....aur wo kitna hippocrate hai ham sab jaante hai....Bollywood ke ye sitare ek din kisi news channel mein telecast na ho to beemar pad jaate hai...Janta bewkoof nahi hai.....sach ye hai ki wo majboor hai.....aap aadmi subah ki roti kamakar shaam ke khane ke itezaam ke bare mein sochta hai
सबसे पहले मेरे ब्लोग पर आने के लिये शुक्रिया! प्रिया, आपकी कमेँट से लगता है कि कितना गुस्सा है आपमेँ इन सब को लेकर! इँडिया टीवी के सँपादक ने एक बार मुझसे पूछा था, कि आपको इँडिया टीवी कैसा लगता है? मैँने उनसे सवाल किया “अगर आपको किसी और चैनल का सँपादक बना दिया जाये तो क्या आप इँडिया टीवी देखेँगे”? मीडिया की स्वतँत्रता का ये मतलब नहीँ होता कि हम कुछ भी दिखायेँ! सवाल ये है कि जनता को हमसे बहुत उम्मीदेँ हैँ लेकिन इससे भी बडा सवाल ये है कि क्या हम उन उम्मीदोँ पर खरा उतर रहे हैँ? साठ साल के हमारे बूढे गणतँत्र मेँ सडक पर चलने के लिये नियम कायदे हैँ! लेकिन मीडिया के लिये कोई रेग्यूलेटरी बाडी अब तक नहीँ बन पायी है! जब तक मीडिया कारपोरेट के हाथोँ की कठपुतली बना रहेगा उसकी स्वतँत्रता का उपयोग कारपोरेट मालिक अपने हितोँ के लिये करते रहेँगे! ऐसे मेँ देश की जनता को कहना कि मीडिया लोकतँत्र का चौथा स्तँभ है देश के साथ छल है!
priya ki jo vyaktigat ray hogi so hogi magar Yogesh ji mujhe aapki ek ek baat sachchee lagee sahi lagi
... jyadatar galtee janta ki hi hai aur janta sach me bewakoof banna chahtee hai isliye media bana pa rahi hai..
Jai Hind... Jai Bundelkhand...
thanx deepak.
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