इश्क का नाम लिया करते हैं,
लोग यूं ही बदनाम किया करते हैं!
हमारे पास नहीं काम कोई दूजा,
इसीलिये चाहत का काम किया करते हैं!
चाहत अब फितरत बन गई है,
फितरत को अंजाम दिया करते हैं!
इश्क का नाम लिया करते हैं,
लोग यूं ही बदनाम किया करते हैं!
क्या चाहने भर से कोई मिल जाता है यारों,
फिर चाहत को क्यों इल्ज़ाम दिया करते हैं!
क्या हिम्मत है ज़माने में मरने की,
हम किसी पर मरने का काम किया करते हैं!
इश्क का नाम लिया करते हैं,
लोग यूं ही बदनाम किया करते हैं!
चाहकर भी चाहत को छुपाना,
ये काम नहीं आसां,
गमें मोहब्बत में हम,
जाम पर जाम पिया करते हैं!
इश्क का नाम लिया करते हैं,
लोग यूं ही बदनाम किया करते हैं!
उसको तो खबर भी नहीं कि हम उसपर मरते हैं,
फिर ज़माने भर में, लोग हमें क्यों बदनाम किया करते हैं!
सुना है इश्क करने वालों का नाम बडा होता है ज़माने में,
छोटे नाम को बडा बनाने के लिये इल्ज़ाम लिया करते हैं!
इश्क का नाम लिया करते हैं,
लोग यूं ही बदनाम किया करते हैं!
2 comments:
वाह ! बहुत खूब
बेहतरीन रचना, बहुत खूब!
इश्क का नाम लिया करते हैं,
लोग यूं ही बदनाम किया करते हैं!
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