Thursday, 27 May 2010

वो सूरज को आंख दिखाता था: दिल्ली से योगेश गुलाटी

करोल बाग मेट्रो स्टेशन के करीब एक मरियल सा रिक्षावाला तपती दुपहरी में रिक्षा खींच रहा था! फटी पैंट और एक बनियान बस यही था उसके तन पर! लू के थपेडों से बचने के लिये उसने अपने कान कपडे से ढक रखे थे! पैरों में टूटी सी चप्पल थी! गर्मी की इस दुपहरी में उसके पसीने से नहाये शरीर को देख कर तापमान की भीषणता का अंदाज़ा लग रहा था! उसके रिक्षे पर एक प्रेमी जोडा बैठा था! दोनों एक दूसरे की बाहों में मगन थे! आते-जाते लोगों की निगाहें उनकी हरकतों पर टिकी थी! लेकिन दोनों ही इस बात से बेपरवाह थे! प्रेमी अपनी प्रेमिका को सूरज से बचाने की कोशिश करता दिख रहा था! दोनों ही पहनावे से काफी उन्मुक्त और आधुनिक नज़र आ रहे थे! हालाकि दिल्ली में इस तरह के नज़ारे आम हो चले हैं! लेकिन मुझे उसमें कुछ खास नज़र आ रहा था! रिक्षावाला चुंकि शरीर से काफी दुबला था इसलिये उसे दोनों को खींचने में काफी ज़ोर लगाना पड रहा था! वो कभी सूरज को आंख दिखाता तो कभी ज़ोर लगा कर रिक्षा खींचता! ऎसा लग रहा था मानो वो सूरज को चुनौती दे रहा हो, कि "तू चाहे कितनी भी आग बरसा ले, मेरे हौंसले को डिगा नहीं पायेगा"! लेकिन मैं उसकी मजबूरी को समझ रहा था! क्योंकि पेट की आग सबसे भयानक होती है! करोल बाग मेट्रो स्टेशन के नज़दीक रिक्षा रोक कर रिक्षावाले ने कहा, साहब मेट्रो स्टेशन आ गया! प्रेमी युगल ने होंश संभाला, अपने आस-पास देखा और रिक्षा से उतर गये! प्रेमी ने दस रुपये का नोट रिक्षा वाले को थमा दिया! "साहब इतनी दूर से आप दोनों को खींच कर लाया हूं, बीस रुपये होते हैं"! रिक्षावाले ने कहा! "मेरे पास छुट्टे नहीं हैं बस यही दस का नोट है लेना हो तो लो"! ये कह कर प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ आगे बढ गया! पसीने में तर रिक्षावाला उस दस के नोट को देख कर कुछ सोचने लगा! उसने फिर सूरज की तरफ देखा! सामने की दुकान से प्रेमी युगल ने पचास रुपये में कोका-कोला की दो बोतलें खरीदीं, अपना गला तर किया! इसके बाद गर्मी में आराम से वक्त बिताने के लिये पास के मेक्डानेल्स में जा कर बैठ गये! इधर रिक्षावाला मेट्रो स्टेशन के सामने लगी रिक्षों की लंबी लाईन में सबसे पीछे अपना रिक्षा लगा कर सवारी के लिये अपनी बारी का इंतज़ार करने लगा! लू के थपेडों का असर उसके शरीर पर तो हो रहा था लेकिन मेहनत और इमानदारी के उसके हौंसले पर लू के थपेडे कोई असर नहीं डाल पाये थे! रिक्षावाला सूरज को देख कर मुस्कुरा रहा था!

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

आदमी ओर जानवर.....रिक्क्षे वाला इंसान है ओर द्स रुपये देने वाला जानवर है