Wednesday 16 June 2010

भीख मांगता बचपन: दिल्ली से योगेश गुलाटी

दिल्ली में मेट्रो ने जिधर का रुख किया उधर वैभव और विलासिता के नित नये नज़ारे उभर आये! या यों कहें कि उन्नति की प्रतीक अट्टालिकाओं की शोभा बढाने मेट्रो ट्रेन भी वहां जा पहुंची! पन्द्रह साल पहले तक नोएडा एक सुनसान गांव हुआ करता था! लेकिन आज तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है! ये गांव अब महानगर में तब्दील हो चुका है! लेकिन खास बात ये है कि महानगर की तमाम खूबियां और खामियां इस गांव ने तेज़ी के साथ ग्रहण कर ली हैं! दिल्ली और नोएडा में काफी समानताएं हैं यहां भी गरीबी और अमीरी के बीच की खाई गहरी है! आसमान छूती इमारतों के सामने बनी झोंपडियां गरीबी और अमीरी के बीच के इस अंतर को बयान करती हैं! ये सब देख अब हैरानी नहीं होती! क्योंकि यही तो भारतीय महानगरीय संस्कृति की विशेषता है! यहां गरीब और अमीर के हक तो समान हैं लेकिन गरीब और अमीर में अंतर ज़मीन आसमान का है! दिल्ली और नोएडा में एक और अंतर भी है! दिल्ली में कामनवेल्थ गेम्स के मद्देनज़र गरीबी हटाओ का पचास सालों से चला आ रहा अभियान इन दिनों गरीब हटाओ का रूप ले चुका है! जबकि नोएडा में ऎसा बिल्कुल नहीं है! वहां सरकार की रुचि ना तो गरीबी हटाने में है ना ही गरीबों को हटाने जैसा कोई कर्म वो कर रही है! दर-असल यहां व्यवस्था गरीब और गरीबी दोनों को ही फलने फूलने का पूरा मौका दे रही है! झोपडी में रहने वाले गरीबों को जब सरकार घर नहीं दे सकी तो भी उसने गरीबों के आराम की पूरी व्यवस्था की और उनके लिये नोएडा में बडा सा पार्क बनवा कर उसमें लाखों रुपयों की बडी-बडी मूर्तियां लगवाईं! ऎसा शायद इसलिये किया गया कि दिल्ली के पार्कों से कामनवेल्थ गेम्स के मद्देनज़र गरीबों को हटाने का अभियान इन दिनों ज़ोरों पर है! शायद इसीलिये सरकार ने गरीबों को अपना गम भुलाने के लिये नोएडा में एक विशाल पार्क की व्यवस्था कर दी है! हालाकि कानूनी पचडों में पडा ये पार्क इन दिनों बंद है! और निर्माण कार्य रुक गया है!

नोएडा में गरीबों के साथ ही भिखारियों की संख्या में भी इन दिनों खासा इजाफा हुआ है! भिखारियों के लिये यहां की आबो-हवा दिल्ली से बेहतर है! दिल्ली की ही तरह यहां भी सडकों पर बच्चे भीख मांगते देखे जा सकते हैं! हालाकि हमारे यहां बाल मजदूरी और बाल भिक्षा-वृत्ति के खिलाफ दशकों पहले कानून बन चुका है! लेकिन कानून के रक्षकों के सामने हज़ारों मासूम बच्चे जिनकी उम्र 3-10 साल के बीच की है दिल्ली की ही तरह अब नोएडा की सडकों पर भीख मांग रहे हैं! इस गैर कानूनी काम को करने के एवज़ में नियत शुल्क इस धंधे के सरगना कानून के रक्षकों को चुकाते हैं! जिसके एवज़ में उन्हें 24 घंटे बच्चों से भीख मंगवाने की छूट मिलती है! ऎसा नहीं है कि सरकार, कोर्ट या कानून को ये सब दिखाई ना दे रहा हो! शिक्षा के अधिकार का कानून बनाने वाली हमारी सरकार को भी सब कुछ पता है! बावजूद इसके वैभव के प्रतीक नोएडा में देश का भविष्य भीख मांग रहा है! ऎसी ही एक नन्ही बच्ची जब नोएडा के सेक्टर 15 मेट्रो स्टेशन की सीढियों पर बैठी देखी तो मैं सोच में पड गया! क्योंकि गरीबी का ज़िंदा भूत भी मैंने ऎसे ही दिल्ली के कनाट प्लेस मेट्रो स्टेशन की सीढियों पर बैठा देखा था! फर्क सिर्फ इतना था कि लोग गरीबी के उस ज़िंदा भूत से कट कर निकल रहे थे! फैशनेबल लोग उसकी काली पड चुकी, कंकाली काया को घृणा से देख रहे थे! लेकिन नोएडा के मेट्रो स्टेशन की सीढियों पर बैठी इस मासूम बच्ची को लोग बेचारगी से देख रहे थे! और अपने हाथ में लिये जर्मन के कटोरे को वो जिसकी तरफ भी बढाती वो ही शख्स उस कटोरे में एक सिक्का डाल देता था! इस तरह उसके कटोरे में सिक्कों का ढेर लगता जा रहा था! मेट्रो की सीढियों से नीचे उतरते वक्त उस बच्ची ने वो कटोरा मेरी तरफ भी बढा दिया! मैंने उसके मासूम चेहरे को देखा फिर मेरी नज़र सामने खडे यूपी पुलिस के सिपाही पर गयी जो तंबाकू चबा कर थूक रहा था! मैं इसकी तुलना दिल्ली पुलिस के उस सिपाही से करने लगा जो गरीबी के उस ज़िंदा भूत को कनाट प्लेस मेट्रो स्टेशन की सीढियों से हटाने के लिये दौड पडा था! लेकिन यूपी पुलिस के इस सिपाही की इस मामले में कोई रुचि नहीं थी! वो तो रेहडी वाले को हडकाने में व्यस्त था! हां मैं भी एक सिक्का उस मासूम के कटोरे में डाल कर उन दानवीरों की तरह एक महादान का पुण्य कमा सकता था! लेकिन मैंने ऎसा नहीं किया ! मैं चुपचाप आगे बढ गया! लेकिन उस नन्ही बच्ची का चेहरा मेरी आंखों से ओझल नहीं हुआ था! इसलिये मैंने मुड कर देखा! वो नन्हा बचपन खेलने और पढने की उम्र में एक और राहगीर के सामने हाथ फैला रहा था! और कानून का रक्षक रेहडी वाले से हफ्ता वसूल रहा था!

4 comments:

दिलीप said...

pehle bhi padh chuka hun...dubara kya padhu man vyathit ho jayega

पंकज मिश्रा said...

shaandaar.

आचार्य उदय said...

प्रभावशाली लेखन।

M VERMA said...

बहुत करीने से आपने बातो को रखा है. विकास की आँधी (तथाकथित) में सब जायज है. सरकार और पुलिस सो रही है.