Wednesday, 5 November 2008

कौन सा सपना मचल रहा है


कौन सा सपना मचल रहा है
ये कौन सा सपना मचल रहा है

ये खून किसका उबल रहा है

ये किसकी सांसों में आग सी है

ये कौन गिर के संभल रहा है

ये किसके सुर हैं सिके सिके से

ये किसकी धड़कन चटक रही है

ये किसके कदमों में फौज सी है

ये कौन करवट बदल रहा है

ये कौन दरिया को पी रहा है

ये कौन सच कह के जी रहा है

ये किसके घाव में है तरन्नुम

ये कौन लोहा पिघल रहा है

ये किसका साया है धूप जैसा

ये किसका लहू है ‘सूप’ जैसा

ये किसके होठों में हड्डियां हैं

ये कौन नीदों में चल रहा है

चलो टटोलूं मैं आज खुद को

कहीं ये गुस्ताख मैं तो नहीं

ये हलचलें हैं मुझी में शायद

यकीं मुझे खुद पे मिल रहा है.

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