Friday, 26 September 2008

मैं गीत ग़मों के गाता हूँ!


योगेश gulati

रास रंग की महफ़िल में,

मैं गीत ग़मों के गता हूँ,

महलों की जो नीवें भरते,

मैं उनकी व्यथा सुनाता हूँ,

उसका बच्चा रोता है,

वो पुरी रात ना सोता है!

वो दिन भर मेहनत करता है,

पर..उसका पेट ना भरता है!

उसकी माँ बीमार है,

लेकिन वो लाचार है,

दावा वो लाए कहाँ से,

डॉक्टर का खर्च उठाए कहाँ से?

क्योंकि जितना वो कमाता है,

उससे तो बस टा-नमक ही आता है!

नई नहीं ये बात कोई,

मै बात वो ही बतलाता हूँ,

महलों की जो नीवें भरते,

मैं उनकी व्यथा सुनाता हूँ!

गन्दी भद्दी बस्ती में,

एक खद्दर वाला आया है,

बड़ी-बड़ी बातें वो करता,

कितने सपने लाया है!

बदलेगी तस्वीर ये कहता,

फ़िर से चुनाव जो आया है!

वो गर्मी में मेहनत करता है,

बारिश में फांके करता है!

ठण्ड में सुकुड कर सोता,

अकसर रातों में रोता है!

नयी नहीं ये बात कोई,

मैं बात वो ही बतलाता हूँ,

महलों की जो नीवें भरते,

मैं उनकी व्यथा सुनाता हूँ!


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