इक बस्ती उजियारी सी,
इक में अँधियारा क्यूँ रहता है?
माँ तू तो कहती......
हम सब एक इश्वर की है संताने,
फ़िर , इक सोता फुटपाथों पर,
इक महलों में क्यूँ रहता है?
इक बस्ती में रोज़ हैं मेले,
इक में सन्नाटा क्यूँ रहता है?
मेघा देता है पानी,
नया सृजन फ़िर करता है,
सूरज देता है रोशनी,
नहीं भेदभाव वो करता है,
फ़िर ऊंच-नीच में बटा ये मानव,
आपस में क्यों लड़ता है?
इक बस्ती उजियारी सी,
इक में अँधियारा क्यों रहता है?
ये कविता अधूरी है....लेकिन आप चाहे तो इसे पुरी कर सकते हैं ....तो लिख भेजिए मुझे, अपने नाम और एक फोटो के साथ yogesh_gulatius@yahoo.co.in पर और कर दीजिये इसे पुरा! प्रकाशित होगी ये आपके नाम और फोटो के साथ!
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