Thursday, 25 September 2008

आतंकवाद के विरुद्ध


दबाव में ही सही केंद्र सरकार आतंकवाद से निपटने के अपने तौर-तरीकों पर फिर से विचार करने लगी है। संभवत: पहली बार प्रधानमंत्री ने यह स्वीकार किया है कि हमारे खुफिया तंत्र में कमजोरी है, जिसे जल्दी ही दूर करने की जरूरत है। वह मान रहे हैं कि मौजूदा कानूनों से काम नहीं चलने वाला है इसलिए सख्त कानून चाहिए। अब तक तो वह बेहद औपचारिक तरीके से रस्म अदायगी की तरह आश्वासन दिया करते थे, लेकिन दिल्ली धमाकों के बाद उन्होंने आतंकवाद के एक-एक पहलू को सामने रखते हुए उसकी चुनौतियों की चर्चा की है। उन्होंने आतंकवाद के लोकल फैक्टर पर गौर किया है और आतंकवादियों को स्थानीय लोगों से मिलने वाली मदद पर भी चिंता व्यक्त की है। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के वक्तव्य में भी सरकार की यह चिंता झलकती है। उन्होंने मेट्रो टेररिज्म के बढ़ते खतरों की ओर इशारा किया है। ज्यादा दिन नहीं हुए जब सरकार आतंकवाद से निपटने के लिए नए कानून बनाने की मांग को सिरे से खारिज करती थी। वह अपनी रणनीति पर ठहरकर सोचने की जरूरत तक महसूस नहीं करती थी। जाहिर है सरकार का स्टैंड बदल रहा है। यह मंत्रियों की बदलती भाषा से भी स्पष्ट है। गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने भी सख्त कानून की बात कही है। लेकिन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने एक अलग पहलू की ओर ध्यान खींचा है जिस पर गौर करना होगा। उन्होंने कहा है कि समाज में अल्पसंख्यक अपने को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। यह अलगाव ही उन्हें आतंकवाद के रास्ते पर धकेल रहा है। इस संदर्भ में चिदम्बरम ने सवाल उठाया है कि आखिर क्यों डॉक्टरी और इंजीनियरिंग जैसी शिक्षा पाने वाले युवक आतंक के रास्ते पर बढ़ रहे हैं। इन सारी बातों को मिलाकर देखें तो आतंकवाद जैसी समस्या की गहराई को जानने-समझने और उसकी चुनौतियों से लड़ने की एक चाहत दिखती है, पर इसकी सार्थकता तभी है जब गंभीरता से संगठित रूप में प्रयास किए जाएं। ऐसा न हो कि समय बीतने के साथ सरकार इस मामले में सुस्त पड़ जाए। आमतौर पर यही होता आया है। आतंकवाद से निपटने के लिए प्रशासनिक तंत्र में सुधार की जरूरत तो है ही लेकिन जैसा कि चिदंबरम कह रहे हैं समाज में भी सकारात्मक माहौल बनाने की आवश्यकता है। सरकार जो करना चाहती है उस पर दृढ़ रहे और अपने सहयोगी दलों तथा विपक्ष को विश्वास में लेकर कार्य करे। विपक्ष को भी जिम्मेदारी का परिचय देना होगा। बीजेपी ने वीरप्पा मोइली के प्रस्ताव पर उंगली उठाई है और उसे अपर्याप्त बताया है। सरकार के हर निर्णय पर सवाल उठाने की बजाय कोई ऐसा सुसंगत रास्ता खोजा जाए जो सभी पक्षों को मंजूर हो। आतंकवाद को लेकर अब किसी भी स्तर पर ढीलेपन को जनता बर्दाश्त नहीं करेगी।

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