Sunday 1 February 2009

राहुल की राह


योगेश गुलाटी


पिछले कुछ समय से राजनीतिक गलियारे से छन-छनकर यह खबर आई (या आने दी गई) कि सरकार के कुछ हालिया फैसले राहुल गांधी के प्रभाव में लिए गए। मसलन मुंबई हादसे को लेकर पाकिस्तान के प्रति कड़े रुख का इजहार और जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की ताजपोशी। लेकिन कांग्रेस सीधे-सीधे यह नहीं कह सकती कि वह मनमोहन सिंह के नेतृत्व को खारिज कर रही है। ऐसा करना यूपीए सरकार की उपलब्धियों पर खुद ही पानी फेर देना होगा, फिर वह कौन सा मुंह लेकर जनता के बीच वोट मांगने जाएगी?इसीलिए जो नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की बात कर रहे हैं, वे मनमोहन सिंह के कामकाज की प्रशंसा करना भी नहीं भूलते, लेकिन वे साफ तौर पर यह भी नहीं कहते कि कांग्रेस मनमोहन सिंह को भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश करके चुनाव मैदान में उतरेगी कि नहीं। चुनाव के पहले कांग्रेस नेतृत्व के सवाल को अनसुलझा रखना चाहती है लेकिन राहुल की इमेज चमकाने का अभियान भी चलता रहेगा।राहुल गांधी के मामले में सोनिया गांधी ने बहुत ही फूंक-फूंक कर कदम उठाए हैं। कुछ उसी तरह, जैसे राजीव गांधी के मामले में इंदिरा गांधी ने उठाए थे। पहले कहा गया कि राहुल राजनीति में नहीं आएंगे। फिर धीरे-धीरे वे सियासत में आए और उसके बाद सांसद बने। उसके बाद उन्हें पार्टी संगठन में अहम जिम्मेदारी दी गई। अपने चुनाव क्षेत्र और देश के दूसरे हिस्सों में राहुल लगातार दौरे कर रहे हैं। पार्टी चाहती है कि राहुल समाज से परिचित हों और जनता भी उन्हें जान जाए। शुरू-शुरू में राहुल ने कुछ अपरिपक्वता दिखाई थी। बांग्लादेश और बाबरी मस्जिद के संबंध में उनके दिए बयान से विवाद हुआ, पर अब वह बहुत संभलकर बोल रहे हैं। संसद में भी उनके भाषणों में परिपक्वता दिखने लगी है। सवाल है कि क्या देश की जनता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार करने को तैयार है? राहुल के व्यक्तित्व में कोई करिश्मा नहीं है, लेकिन युवा होना उनकी सबसे बड़ी ताकत है। यह ठीक है कि उन्हें अपने पिता की तरह किसी तरह की सहानुभूति लहर का लाभ नहीं मिल रहा है, लेकिन उनके लिए सकारात्मक बात यह है कि विपक्षी दलों के पास कोई युवा नेता नहीं है। यह नहीं भूलना चाहिए कि आज देश की 70 फीसदी आबादी 35 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की है। यह वर्ग अब राजनीति पर निर्णायक असर डालने की स्थिति में आ गया है। आज की यह युवा पीढ़ी स्वतंत्रता के बाद पैदा हुई है। यह कई पुराने आग्रहों और रूढि़यों से मुक्त है। यह सूचना क्रांति और ग्लोबलाइजेशन के दौर में जवान हुई है, इसलिए उसके सोचने का ढंग अलग है। यह पॉलिटिक्स और लीडरशिप के बारे में पुरानी पीढ़ी से भिन्न राय रखती है। इसे ऐसा नेता चाहिए जो ठोस काम करे, जो डिवेलपमंट सुनिश्चित कर सके ताकि इस पीढ़ी के सपने साकार हों। हाल के विधानसभा चुनावों के परिणाम में इस नजरिए की झलक मिली है। यह पीढ़ी अस्सी पार कर चुके लालकृष्ण आडवाणी की बजाय युवा राहुल गांधी को ज्यादा उम्मीद से देख रही है। राहुल के विरोध में यह तर्क दिया जाता है कि वह अनुभवहीन हैं। लेकिन आज के दौर में विजन ज्यादा महत्वपूर्ण है, अनुभव नहीं। नई पीढ़ी नया नजरिया चाहती है। रही वंशवाद की बात, तो यह मामला कमजोर पड़ता जा रहा है क्योंकि आज हर पार्टी इसका शिकार हो चुकी है। ऐसे में राहुल गांधी के लिए स्थितियां निश्चय ही अनुकूल होती जा रही हैं, लेकिन यह सवाल तो फिर भी बचता ही है कि क्या कांग्रेस राहुल गांधी को महज एक युवा प्रतीक की तरह इस्तेमाल करेगी या नई आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सत्ता में रहकर या उसके बाहर गंभीरता से प्रयास भी करेगी?

4 comments:

दिगम्बर नासवा said...

राहुल गांधी परिवार स हैं और पूरी कमान उनके हाथ में है, उनके बिना पत्ता भी नही हिलता
आगे आगे देखिये जनाब होता है क्या.

अभिषेक मिश्र said...

Pratikatmak hi card chala ja raha hai Rahul ka, magar vakt hi unki upyogita siddh karega; jaisa kabhi Indira ji aur Rajiv ji ke sath bhi hua tha.

Unknown said...

कांग्रेस अपने प्रारम्भकाल से ही नेहरू-गांधी परिवार की पिछलगगू रही है। अब भी वही कार्य कर रही है। तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। क्या देश में अन्य युवाओं की कमी है? क्या अन्य पार्टियों में युवाओं की कमी है? परन्तु राहुल को जिस तरह से प्रोजेक्ट किया जा रहा है वैसे अन्य किसी को नही।
श्याम बाबू शर्मा
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Anonymous said...

कांग्रेस कैसे राहुल को प्रोजेक्ट कर रही है कैसे नही इससे फर्क नही पड़ता फर्क इससे पड़ता है की एक आम वोट देने वाला इंसान कैसे उन्हें ले रहा है हमारा सोचना है कि किसी भी इंसान का मूल्यांकन उसके परिवार के आधार पर नही उसके पाने व्यक्तित्व के आधार पर होना चाहिए. जो योग्य होगा वो देर तक टिकेगा लौन्चिंग चाहे जैसे हो