Saturday, 6 February 2010

बीमार है हमारा लोकतँत्र!

राहुल गाँधी की तारीफ करनी होगी! क्योँकि काँग्रेस के युवराज इन दिनोँ वो सवाल उठा रहे हैँ जिसे कहने की हिम्मत किसी नेता ने आज तक नहीँ दिखाई! राहुल खुले-आम ये कहते हैँ कि काँग्रेस सहित देश के किसी भी दल मेँ आँतरिक लोकतँत्र नहीँ है! राहुल ये कहने से भी नहीँ चूकते कि राजनीति मेँ परिवारवाद हावी है!
अगर काँग्रेस का इतिहास उठा कर देखेँ तो आज़ादी के बाद से काँग्रेस मेँ परिरवाद का ही बोल-बाला रहा! आज़ादी के बाद काँग्रेस मेँ आँतरिक लोकतँत्र खत्म सा हो गया था! जो थोडा बहुत बचा था वो इँदिरा गाँधी ने खत्म कर दिया! राहुल गाँधी कहते हैँ कि राजनीति मेँ इसलिये हैँ क्योँकि वो एक राजनैतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैँ! उनके मुताबिक राजनीति मेँ आने के चार रास्ते हैँ, पहला परिवारवाद, दूसरा पैसा, तीसरा शक्ति, और चौथा सँघर्ष! वो ये भी बताते हैँ कि चौथा रास्ता सबसे मुश्किल है! और उसमेँ बहुत वक्त भी लगता है! यानी काँग्रेस के युवराज देश मेँ लोकतँत्र का सच जानते हैँ! ये उतना चौकाने वाला नहीँ है जितना ये कि वो इस सच को बताने से नहीँ चूक रहे! राहुल काँग्रेस मेँ आँतरिक लोकतँत्र की वकालत कर रहे हैँ इसी लिये अब पार्टी मेँ पदाधिकारियोँ के लोकताँत्रिक तरीके से चुनाव की बात हो रही है! लेकिन सवाल ये है कि ये बात राहुल के कहने के बाद ही क्योँ हुई? उससे भी बडा सवाल अगर काँग्रेस सहित तमाम राजनैतिक दलोँ मेँ आँतरिक लोकतँत्र ही नहीँ है तो देश मेँ लोकतँत्र कहाँ बचता है! राहुल ने व्यवस्था की उस नस को पकडा है जिसकी वजह से देश मेँ लोकतँत्र बीमार है! जी हाँ अगर हमारे राजनीतिक दलोँ मेँ ही आँतरिक लोकतँत्र नहीँ है तो फिर देश मेँ लोकताँत्रिक व्यस्था की बात करना आईने से मुँह चुराने की तरह है! सच्चाई ये है कि देश मेँ ऐसा कोई राजनैतिक दल नहीँ है जो जो परिवारवाद की जकड से मुक्त हो! सबसे दुखद पहलू ये है कि तमाम राजनैतिक दल प्राईवेट लिमिटेड कँपनीयोँ की तरह किसी एक परिवार की जागीर बन कर रह गये हैँ! मायावती बीएसपी की मालकिन हैँ तो मुलायम सपा के मालिक! आरजेडी मेँ लालू का सिक्का चलता है! तो डीएमके के लिये करुणानिधी भगवान हैँ! एआईडीएमके की मालकिन हैँ जयललिता! बाला साहब ठाकरे शिवसेना के लिये सब कुछ हैँ तो टीडीपी सहित दक्षिण की भी सभी पार्टीयाँ परिवारवाद की जकड मेँ हैँ1 ये सिर्फ चँद नाम हैँ लेकिन अछूता कोई नहीँ! कहने की ज़रूरत नहीँ कि देश के दोनोँ प्रमुख राजनैतिक दलोँ मेँ भी आँतरिक लोकतँत्र ना के बराबर है! जहाँ बीजेपी सँघ के इशारोँ पर चलती है तो वहीँ काँग्रेस मेँ सोनिया का कद पीएम और राष्ट्रपति से भी उँचा है!
ऐसे मेँ अगर काँग्रेस के युवराज भारतीय राकनीति की बबसे पुरानी बिमारी के बारे मेँ खुल कर बात कर रहे हैँ तो इसका स्वागत होना चाहिये! क्योँकि जब तक इस बीमारी का इलाज नहीँ होगा भरतीय राजनीति मेँ अच्छे नेताओँ का पदार्पण नहीँ हो सकता! कहने की ज़रूरत नहीँ है कि हमारे देश मेँ एक इमानदार व्यक्ति को कोई राजनैतिक दल टिकट तक देना पसँद नहीँ करता ! जबकि अपराधियोँ को धडल्ले से सँसद पहुँचाया जा रहा है! भारतीय राजनीति के बढते अपराधिकरण का केवल एक ही इलाज है! और वो है पार्टियोँ मेँ आँतरिक लोकतँत्र की स्थापना! हमेँ आज अच्छे नेताओँ की सख्त ज़रूरत है! लेकिन सवाल ये है कि अच्छे नेता आयेँगे कहाँ से? क्या हमारा सिस्टम ऐसा है जो अच्छे नेता पैदा कर सके? इस बात का जवाब काँग्रेस के युवराज राहुल गाँधी दे रहे हैँ! अगर हमारा सिस्टम राजनीति मेँ मधु कोडा जैसे नेता पैदा कर रहा है......अगर हमारा सिस्टम बटवारे की राजनीति को बढावा दे रहा है......अगर हमारा सिस्टम सँसद मेँ चालीस फीसदी से भी ज़्यादा खूँखार अपराधियोँ को पहुँचा रहा है....... अगर हमारा सिस्टम राजनीति मेँ परिवारवाद को पोषित कर रहा है......अगर हमारे सिस्टम ने देश को चलाने वाले राजनैतिक दलोँ को प्राईवेट लिमैटेड कँपनीयोँ मेँ तब्दील कर दिया है........अगर हमारे सिस्टम ने देश से आँतरिक लोकतँत्र को खत्म कर दिया है तो इस सिस्टम को हमेँ खत्म कर देना चाहिये! और जन्म देना चाहिये एक नई व्यस्था को ...एक ऐसी व्यवस्था जो सच्चे अर्थोँ मेँ लोकताँत्रिक हो! ये आवाज़ जनता की तरफ से ही उठनी चाहिये कि काँग्रेस ही नहीँ देश की सभी राजनैतिक पार्टियोँ मेँ आँतरिक लोकतँत्र की स्थापना की जाये! चुनावोँ के वक्त टिकिट वितरण पूरी तरह से पारदर्शी बनाया जाये! और किसी भी स्थिति मेँ अपराधियोँ को टिकिट ना दिया जाये! भारत मेँ बीमार पडी लोकताँत्रिक व्यवस्था के उपचार की शुरुआत राजनैतिक दलोँ मेँ आँतरिक लोकतँत्र की स्थापना से की जा सकती है! अब देखना है राहुल अपने ही दल मेँ लोकतँत्र की स्थापना मेँ कितने कामयाब हो पाते हैँ?

2 comments:

Anonymous said...

भाई योगेशजी
आपने बात तो लाख टके की उठाई है। लेकिन असल सवाल ये है कि जब दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र साठ साल का हो गया..तब लोगों को पता चल रहा है कि इसकी जद में लोकतांत्रिक मूल्य तो हैं ही नहीं....यानी देश साठ सालों तक एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रुप में चलता रहा है.. और अभी भी इस बात की उम्मीद करना बेमानी होगी कि देश की सत्ता बागडोर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से निकलकर किसी लोकतांत्रिक हाथों में होगी...क्योंकि देश की सबसे बड़ी पार्टी का हाल उसके युवराज और महासचिव ने तो बता दिया है..रही दूसरी सबसे बड़ी पार्टी की बात तो...उसमें कितना अनुशासन और भीतरी लोकतंत्र है..पिछले कुछ महीनों के वाकए सब जगजाहिर कर देते हैं... देश में तीसरी ताकत के तौर पर वामदल हैं...लेकिन लेफ्ट-राइट करने के सिवा उनके पास कोई काम नहीं है...मार्क्स और डांगे से अपने को संबद्ध बताने वाली ये पार्टियां भी जुगाड़ टेक्नोलॉजी के मातहत ही काम कर रही हैं... बाकी सपा, राजद, बसपा, तृणमूल, एनसीपी, शिवसेनाऔर अन्य दक्षिणपंथी पार्टियां तो एक बैन्ड बाजे की तरह हैं....जिसका मॉनीटर अगर भोंपू बजा दिया तो.बाकी सभी हुआं-हुआं करने लगते हैं... कुल मिलाकर भारत की खोज अभी बाकी है...जिसमें कई राहुल को नेहरु बनने का इंतजार है... एक ऐसा इंतजार..जो कभी खत्म नहीं होगा..क्योंकि सच्चे मायनो में अगर देश में लोकतंत्र लाना है तो..पहले लोक की पूजा करनी पड़ेगी..उनके लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करना होगा.और इससे भी ज्यादा ये कि अगर वो दो जून की रोटी खुद अपने बूते हासि कर रहे हैं..तो उसे कोई छीन ना पाए...इसकी गारंटी देशवासियों को देनी होगी....तभी महात्मा गांधी, और अम्बेदकर का लोकतांत्रिक सिद्धान्त कारगर होगा...

प्रमोद प्रवीण

योगेश गुलाटी said...

शुक्रिया प्रमोद जी आपके सुँदर विचारोँ के लिये! आज सबसे बडा सवाल यही है कि क्या सच मेँ हमारे देश मेँ कहीँ लोकतँत्र है? अगर हाँ तो ये देश प्राइवेट लिमिटेड कँपनी की तरह क्यूँ चल रहा है?