Monday 15 February 2010

ताकि भारत को सबक सिखाया जा सके.....!

जिस वक्त शिवसेना और शाहरुख की महाभारत का धारावाहिक चल रहा था....राहुल के मुँबई दौरे का चँदबरदई स्टाईल मेँ गुणगान किया जा रहा था! ठीक उसी वक्त पाक अधिकृत कश्मीर मेँ भारत पर अगले हमले की घोषणा की जा रही थी! उस वक्त जब सरहद के पार भारत के खिलाफ जिहादी नारे लग रहे थे....हमारे यहाँ कथित बुध्दिजीवी एक अनोखी बहस मेँ उलझे थे! हमारी सरकार को उन जिहादी नारोँ की कोई फिक्र नहीँ थी! क्योँकि उसे तो एक फिल्म को रीलीज़ कराना था! लश्कर से जुडे जमात-उद-दावा के नेता मक्की ने पीओके मेँ चार फरवरी को कश्मीर सम्मेलन मेँ कहा था कि पुणे समेत तीन भारतीय शहरोँ पर जिहादी हमला करेँगे, ताकि भारत को सबक सिखाया जा सके! हालाकि हमारे गृह मँत्री को इस बार भी खूफिया तँत्र की नाकामी से इनकार है! सही है जब खुले-आम घोषणा करके हमले किये जा रहे हैँ तो इसे खूफिया तँत्र की नाकामी से जोड कर नहीँ देखा जाना चाहिये! वैसे भी हमारे खूफिया अधिकारियोँ का उपयोग विरोधियोँ की जासूसी कराने मेँ होने लगे, तो देश की सुरक्षा की जानकारी की उम्मीद करना बेमानी ही होगा! हमने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि हमारा सिस्टम एक फिल्म को रीलीज़ करवा कर हिट बनाने मेँ तो योगदान दे सकता है लेकिन घोषणा कर के किये गये आतँकी हमलोँ को रोकने मेँ कामयाब नहीँ हो सकता! बहरहाल हम कश्मीर मेँ आतँकवादियोँ के पुनर्वास की योजना पर जश्न मना सकते हैँ! केन्द्र सरकार ने पीओके से लौटने की इच्छा रखने वाले आतँकीयोँ का स्वागत करने की योजना बनाई है! इस योजना की सिफारिश जम्मू-कश्मीर के मुख्यमँत्री उमर अब्दुल्ला और प्रधानमँत्री द्वारा गठित एक कार्यसमूह ने की थी! सरकार का मानना है कि इस योजना से जम्मू-कश्मीर के उन हज़ारोँ परिवारोँ मेँ खुशी लौट सकेगी, जिनके पुरुष सदस्य आतँकी सँगठनोँ के बहकावे पर हथियारोँ की ट्रेनिँग लेने पीओके चले गये थे! लेकिन अब जिन्होँने हथियार डालने की इच्छा जताई है! सरकार का ये भी मनना है कि इस तरह वो पीओके मेँ आतँक की फेक्ट्रीयोँ का नेटवर्क खत्म कर सकती है! यानि एक तरफ सुरक्षा बल अपनी जान पर खेल कर सीमा की चौकसी कर रहे हैँ और दूसरी तरफ हमारी सरकारेँ आतँकीयोँ को पीओके से कश्मीर मेँ लाकर उनका पुनर्वास कर रही है! ऐसे मेँ ये सवाल उठना लाज़मी है कि नक्सलवाद को आतँकवाद से बडा खतरा मानने वाली हमारी सरकारोँ के पास क्या नक्सलियोँ के पुनर्वास की कोई योजना है? वो गरीब आदिवासियोँ के पुनर्वास के लिये भी क्या उतनी ही नरम है? और कश्मीरी पँडित....? उनके सवाल पर हमारी सरकार मौन क्योँ हो जाती है? क्योँ नहीँ दिखाई देता हमारी सरकारोँ को कश्मीरी पँडितोँ का दर्द? जो हिँसा का रास्ता अख्तियार कर भारत की अखँडता को चुनौती देते हैँ, सरकार को उनके पुनर्वास की चिँता सता रही है! और जो अपने ही देश मेँ रिफ्यूज़ी का जीवन बिता रहे हैँ उनकी कोई चिँता किसी को नहीँ है!
अपनी इस अनोखी योजना के बल पर शायद कश्मीर के मुख्यमँत्री उमर अब्दुल्ला को अगला नोबल शाँति पुरुस्कार भी मिल जाये..! लेकिन उनहेँ नहीँ भूलना चाहिये कि नोबल शाँति पुरस्कार से सम्मानित अमेरिका के राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने इराक और अफगानिस्ताअन पर अपनी नीतियोँ के सँदर्भ मेँ कहा था कि मैँ महात्मा गाँधी का अनुयायी ज़रूर हूँ लेकिन मैँ गाँधी नहीँ बन सकता!

3 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जितने गुंडे मवाली जेल में हैं उनका भी पुनर्वास होना चाहिये, वे भी तो भटके हुए हैं.

रंजन राजन said...

योगेश जी,
सरकारी स्तर पर इच्छाशक्ति की कमी का नतीजा है नक्सलवाद का तेजी से पैर पसारना। इससे पहले कि यह आतंकवाद के तालिबानी चेहरे को भी मात दे दे इसका इलाज होना चाहिए। इसी संदर्भ में मैंने एक पोस्ट डाली है। आशा है गौर फरमाएंगे।

कश्मीरी पंडित सरकार के वोट बैंक में फिट नहीं बैठ रहे हैं। उन्हें पीओके चले गए आतंकवादियों को वापस बुलाने में वोट बैंक ज्यादा सुरक्षित दिख रहा है।

RAJ SINH said...

सारी सत्ता देशद्रोहियों के हाथ में दे चूका देश भोगे !