Sunday, 9 May 2010

जाति भारतीय समाज की सच्चाई है: दिल्ली से योगेश गुलाटी

जाति आधारित जनगणना ना कराने पर अडी सरकार आखिर जातिगत जनगणना के लिये राजी हो ही गई! इसके पहले हमारे देश में इस तरह की जनगणना तीस के दशक में अंग्रेज़ों ने कराई थी! ज़ाहिर है उस वक्त उनका मकसद जातिगत आधार पर देश की एकता को खंडित करने के रास्ते तलाशने का ही रहा था! लेकिन किसी भी लोकतांत्रिक देश में जाति और धर्म के आधार पर विभाजन लोकतन्त्र को असफल बनाता है! जाहिर सी बात है कि यदि जनता का जाति और धर्म के आधार पर विभाजन हो जायेगा तो लोकतन्त्र कभी भी अपने लक्ष्य को पा नहीं सकेगा! ये विभाजन जितना गहरा होगा लोकतन्त्र उतना ही बीमार होगा! लेकिन हमारे देश में ये कडवी सच्चाई है कि जाति और धर्म हमारी राजनीति का यथार्थ बन चुके हैं! और जाति आधारित जनगणना ना करा कर हम केवल उस यथार्थ से आंखें चुराने का ही काम कर रहे हैं! क्योंकि दुनिया के इस सबसे बडे लोकतन्त्र में जाति और धर्म की खाई को और गहरा करने का काम तो हमारी राजनीति आज़ादी के बाद से ही कर रही है! लेकिन जाति आधारित जनगणना के बाद सही आकडे सामने आ जाने से सही मायनों में वंचित वर्गों की पहचान की जा सकेगी! इसके बाद उस वंचित वर्ग के कल्याण के लिये सरकार क्या करती है ये तो उस वर्ग की संख्याबल पर ही निर्भर करेगा ! लेकिन इससे काफी हद तक परिदृ्श्य स्पष्ट हो जायेगा कि कौन कितने पानी में है? और आज़ादी के बाद से अब तक सरकारी योजनाओं ने पिछडों का वाकई में कितना कल्याण किया है? ये आकडे इस मायने में भी खास होंगे कि ये देश की भावी राजनीति की दिशा निर्धारित करेंगे! वीपी सिंह् ने जब मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए पिछडों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी, तब कांग्रेस्-बीजेपी समेत तमाम राजनीतिक पार्टियां इसका व्यापक राजनीतिक निहितार्थ समझ नहीं पाई थीं! और इसके खिलाफ उठ खडी हुई थीं! इस राजनीतिक लडाई में वीपी सिंह ने अपनी कुर्सी खो दी थी! इस लिहाज़ से वो भले ही हारे हुए लगें, लेकिन उनकी राजनीति जीत गई थी! जाति चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है! और कास्ट फेक्टर के आधार पर ही हमारे देश में सरकारें बनती और गिरती हैं! इस हकीकत को सभी राजनीतिक दल बखूबी जानते हैं! और इसका फायदा भी उठाते रहे हैं! जबकि होना तो ये चाहिये था कि लोकतन्त्र को मजबूत बनाने के लिये तमाम राजनीतिक दल मिल कर चुनावों में कास्ट फेक्टर को डाईल्यूट कर धीरे-धीरे खत्म कर देते! लेकिन हुआ इसका ठीक उलट यानि ये फेक्टर उतरोत्तर मजबूत होता गया! और जाति से मुक्ति के बजाये हमारे देश में जाति की जडें गहरी होती गईं! निश्चित तौर पर जाति आधारित जनगणना के आकडों के आधार पर ही राजनैतिक दल आगामी चुनावों की रणनीति तय करेंगे! यानि इस जनगणना के पीछे सत्य का सामना करने का साहस नहीं बल्कि इसके पीछे का स्वार्थ ही अधिक नज़र आ रहा है!

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