इंडियन नेशनल लोक दल के प्रधान ओम प्रकाश चौटाला और काग्रेस के युवा सासद नवीन जिंदल में क्या समानता ढूंढ़ी जा सकती है? अगर राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को देखें या उम्र का फासला देखें तो कुछ भी एक जैसा नहीं है। अलबत्ता खाप पंचायतों को लेकर दिए अपने ताजे बयान के बाद दोनों एक ही तरफ खड़े दिखाई देते हैं।
पिछले कुछ समय से खाप पंचायतों की तरफ से एक मुहिम चल रही है, जिसके अंतर्गत हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-5 को बदलने की माग उठी है। कहा जा रहा है कि चूंकि इसके अंतर्गत सगोत्र शादियों की इजाजत है, इसलिए इसे समाप्त किया जाए या परिवर्तित किया जाए।
देखा जा सकता है कि मनोज-बबली हत्याकांड में आए अदालती फैसले के बाद [जिसमें अपनी इच्छा से शादी किए इस युवा जोड़े को मारने के आदेश इलाके की खाप पंचायत ने जारी किए थे], जिसमें हत्या में शामिल कातिलों को सजा सुनाई गई है, इस मुहिम ने जोर पकड़ा है।
पिछले दिनों पाई नामक स्थान पर हुई ऐसी ही सर्वखाप पंचायत में अपने आधार को बढ़ाने की फिराक में खाप पंचायत की महिला विंग और युवा विंग का भी गठन किया गया था। लोगों को याद होगा कि सर्वखाप पंचायतों के ऐसे ही एक सम्मेलन में यह ऐलान किया गया था कि वह आगे की रणनीति के तौर पर नवीन जिंदल के घर को घेरेगा ताकि उन पर तथा बाकी संसद सदस्यों पर दबाव बनाया जा सके।
सभी जानते हैं कि दलित अत्याचारों का मसला हो या 'इज्जत' की रक्षा के नाम पर की जाने वाली हत्याओं का मामला, खाप पंचायतों ने हमेशा मानवीय तर्क प्रणाली को नकारने की कोशिश की है। राज्य, कानून और अधिकारों के स्थान पर बैठे लोगों द्वारा प्रदत्त 'संरक्षण' के बिना खापों के लिए यह संभव नहीं होता कि वह देश के कानूनों को चुनौती देने वाले निर्णय लें। हिसार जिले में घटित मिर्चपुर काड ने भी इस हकीकत को उजागर किया था कि दलितों की बस्ती पर हमला करने के पहले बाकायदा खाप पंचायत बिठाई गई थी, जिसने इसे अंजाम देने के आदेश दिए थे।
हरियाणा के प्रख्यात युवा उद्योगपति नवीन जिंदल ने इस बात का इंतजार किए बिना कि उनकी पार्टी की इस मसले पर आधिकारिक पोजिशन क्या है, पिछले दिनों बयान दिया कि वह सगोत्र विवाह के खिलाफ खाप पंचायतों की मुहिम के साथ हैं और वह संसद में इस माग को रखेंगें।
ध्यान देने योग्य है कि कैथल जिले में सर्व जाति सर्व खाप पंचायत के जलसे में पहुंचकर जनाब नवीन जिंदल ने बाकायदा इस बात का ऐलान किया।
खाप पंचायतों द्वारा ऐसे मामलों को लेकर बरपाए जाते कहर के इस माहौल में कुछ ऐसी खबरें भी छन-छनकर आती हैं, जो बताती हैं कि उम्मीद महज एक शब्द नहीं है। अपनी मर्जी से शादी करनेवाले तमाम लोगों का जीना मुश्किल कर देने वाले खाप पंचायतों के फरमानों को चुनौती देता एक गाव उसी हरियाणा में ही मौजूद है- सिरसा जिले का चौटाला गाव।
इसकी सबसे ताजी मिसाल उसी गाव के रहने वाले 21 वर्षीय राकेश गौरिया और उसकी पत्नी सरोज हैं, जो परीकथाओं की तर्ज पर इन दिनों 'खुशी से अपनी जिंदगी बीता रहे हैं।' राकेश की बहन मंजू ने भी अपने पड़ोस के युवक से शादी की है, यहा तक कि राकेश की 65 वर्षीय दादी रामप्यारी ने भी अपने पड़ोसी से ब्याह रचाया था।
दिलचस्प है कि इस गाव में दो सौ से अधिक ऐसे जोड़े यानी 400 से अधिक ऐसे लोग हैं, जिन्होंने उसी गाव में अपना बचपन बिताया है और जिन्होंने उसी गाव में अपने लिए जीवनसाथी भी तलाशा है। साफ है कि ये लोग अगर कहीं बाहर रह रहे होते तो तमाम प्रताड़नाओं के शिकार हो जाते।
अपने गाव में अपनी ही मर्जी से शादी कर रह रहे सबसे बुजुर्ग लोगों में 71 वर्षीय राम परताप को शुमार किया जा सकता है, जिन्होंने अपनी पड़ोसन लिछमा से चालीस साल पहले शादी की थी। अपने वैवाहिक जीवन से बेहद प्रसन्न लिछमा कहती हैं कि अपने गाव में ही शादी करना अपराध कैसे हो गया। मुझे देखिए, जब चाहे मैं अपने माता-पिता से मिल सकती हूं। बेहद सहिष्णु और प्रगतिशील जान पड़ने वाला चौटाला गाव अकेला नहीं है। इसके बगल में स्थित भारू खेड़ा में भी जब 21 साल के राकेश रतिवाल ने गाव की ही 18 वर्षीय अलका से शादी करने की इच्छा जाहिर की, तब उसका जोरदार समर्थन राकेश के पिता बलराज ने किया। समूचा गाव इस शादी में शरीक हुआ।
इन दिनों हरियाणा प्रशासकीय सुधार आयोग के सदस्य डीआर चौधरी, जिन्होंने 1948 में अपने ही गाव में शादी की थी, बताते हैं कि सिरसा, हिसार और फतेहाबाद जिलों में या राजस्थान के बाड़मेर या जैसलमेर जिलों में ऐसे कई गाव हैं, जिन्होंने ऐसे मध्ययुगीन कानूनों को चुनौती दी है।
माल और देसी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दफ्तरों के लिए मशहूर गुड़गांव से कुछ वक्त पहले स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत बढ़ती शादियों की खबर आई थी। मालूम हो कि यह वही कानून है, जिसके तहत अंतरजातीय यहा तक कि अंतरधर्मीय विवाह भी संभव है। अगर पारंपारिक शादी एक सामाजिक शादी है तो इसके अंतर्गत की जाने वाली शादी एक वैधानिक प्रक्रिया है, जिसके लिए महज मूल जन्म प्रमाणपत्र और चंद गवाहों की जरूरत होती है। वैसे यह अधिनियम 1954 में ही बना था, लेकिन बनने के साढ़े चार दशक बाद भी नतीजे सिफर ही साबित हो रहे थे, लेकिन इधर बीच इनमें तेजी आ रही है।
अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने के मामले में समाज के समर्थन की एक नायाब मिसाल महाराष्ट्र के जिला चंद्रपूर का छोटा-सा गाव करंजी है। मुश्किल से दो हजार आबादी वाले इस गाव में बीते पाच साल में 38 प्रेम विवाह हुए हैं, जिनमें से 20 अंतरजातीय विवाह हैं तो 18 जाति के भीतर प्रेम विवाह हैं। नंदा-रामभाऊ जितार, नलेश्वर गजभे-वंदना, छब्बुताई-प्रेमचंद, राकेश थेरकर-सुनंदा, वनिता चापले, बाली भडके, संदेश पचारे, वत्सला वानोडे, छोटी खोब्रागडे, सतीश बावणे, सुरमुखसिंग डागी आदि कुछ नाम हैं, जिन्होंने अंतरजातीय शादी की है।
ऐसा नहीं कि यह सिलसिला बहुत सुनियोजित था। यह वर्ष 2005 की बात थी, जब पास के एक गाव से एक जोड़ा करंजी पहुंचा। अशोक गरपल्लीवार जहा कुम्भार जाति से संबधित था तो मीनाक्षी देउलमाले तेली जाति से संबधित थी। वे दरअसल अपने परिवार वालों के डर से भागते हुए करंजी पहुंचे थे और गाव के ही मंदिर में रुके थे। उनके आने की खबर पंचायत को लगी और उन दोनों को पंचायत कार्यालय बुलाया गया। सरपंच प्रभाताई खोब्रागडे और पंचायत के बाकी सदस्यों ने उनसे लंबी बातचीत की। उन्होंने महसूस किया कि अगर इन दोनों की शादी नहीं कराई गई तो वे आत्महत्या भी कर सकते हैं। प्रभाताई की पहल पर दोनों के माता-पिता को बुलाया गया और समझाया गया। वे मन मारकर इस रिश्ते के लिए राजी हो गए। प्रभाताई आखों में चमक लिए बताती हैं कि इस युगल की दोनों बेटिया गाव के ही स्कूल में जाती हैं। धीरे-धीरे पंचायत के इस अनूठे हस्तक्षेप की खबर दूर-दूर तक फैली और कई प्रेमी युगल वहा पहुंचने लगे। अगल-बगल के गाव के ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश से भी कुछ युगल यहा पहुंचे।
प्रश्न उठता है कि क्या करंजी पहले से ही ऐसा था। बिल्कुल नहीं! महज सात साल पहले गाव में विभिन्न जातियों में आपस में भी काफी तनाव था। दलितों के अपने अलग कुएं थे, पिछड़ी जातियों के अपने अलग। अब बहुत कुछ बदल गया है। यह अकारण नहीं कि महाराष्ट्र की सरकार ने इस गाव को 'तंटामुक्त' यानी झगड़ों से मुक्त गाव होने के नाते विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया है।
छोटे-से ग्राम करंजी में नजर आ रहे इस बड़े करिश्मे के पीछे किसी संगठित सामाजिक समूह का हाथ भले न हो, लेकिन अपने आप में यह खबर विलक्षण है कि आज की तारीख में यह छोटा-सा गाव समूचे जिले के लिए ही नहीं, पूरे सूबे के लिए एक नजीर बना है।
भारत के उज्वल भविष्य की कामना रखने वाले हर शख्स को अब यह तय करना है कि क्या खापों के कुहासे में इस मंजिल को पाया जा सकता है या करंजी के उजास में!
उदारवादी सोच रखें खाप पांचायतें
डा. एमएस मलिक। चिंता की बात है कि सम्मानित खाप और सर्वखाप पंचायतों का प्रचाीन गौरवपूर्ण इतिहास आज विवादास्पद, विरोधाभाष व आलोचना का केंद्र बनता जा रहा है। इन सम्मानित खाप पंचायतों की ऐतिहासिक पृष्टिभूमि का अध्ययन करने से पता चलता है कि खाप पंचायतों ने शुरू से ही ग्रामीण समाज में सद्भावना, भाईचारा व शांति का माहौल बनाए रखने के लिए अहम निर्णायक कार्य किए हैं, जिस कारण इनका फैसला हर व्यक्ति सिर-माथे पर स्वीकार कर लेता था और इन्हें सम्मान से पंच-परमेश्वर के खिताब से जाना जाता था। खाप पंचायतों द्वारा सूझबूझ से लिए गए निर्णय पूरे राष्ट्र के लिए न्याय के स्रोत साबित हुए हैं।
सर्वखाप पंचायतों के गौरवपूर्ण इतिहास व सम्मानजनक छवि के ठीक विपरीत आज सर्वखाप पंचायतों का मौलिक स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। मेरा मानना है कि आज सर्वखाप पंचायतों के अंदर शरारती एवं राजनैतिक तत्व अपने निजी स्वार्थो की पूर्ति के लिए प्रवेश कर रहे हैं, जिस कारण इनके वास्तविक मुद्दे धूमिल होते जा रहे हैं और सदियों पुरानी यह सम्मानित व्यवस्था नुक्ताचीनी व विरोधाभास का विषय बन गई है। आज कुछेक खाप पंचायतें दिशाहीन व नेतृत्वविहीन संगठनों की तरह कार्य कर रही हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि खाप पंचायतों का न तो कोई सामूहिक नेतृत्व है और न ही कोई एकछत्र नेतृत्व। शायद इसीलिए खाप पंचायतें स्वार्थपूर्ण व विभाजित नेतृत्व का शिकार हो रही हैं, जिस कारण इन खाप पंचायतों द्वारा दिए जा रहे बिना सूझबूझ व तर्कहीन फैसलों विशेषकर सगोत्र व अंतरजातीय विवाह से उत्पन्न विवादों के संदर्भ में दिए जा रहे मानमाने फैसलों की हर जगह आलोचना हो रही है। ये निर्णय सामाजिक भाईचारे और आपसी मेल-मिलाप के लिए बहुत नुकसानदायक सिद्ध हो रहे हैं।
इसके अलावा युवा वर्ग में निरंतर बढ़ती बेरोजगारी तथा भविष्य की अनिश्चितता के कारण उत्पन्न गंभीर उदासीनता भी खाप पंचायतों की प्राचीन परंपराओं तथा रूढि़वादी विचारधारा के साथ टकराव का कारण बनती जा रही है। यही कारण कि आज की युवा पीढ़ी का शादी-विवाह के मामलों में परंपराओं व रीति-रिवाजों का उल्लंघन करने के कारण खाप पंचायतों से निरंतर टकराव बढ़ रहा है। अनेक युवा दंपती खाप पंचायतों के सामाजिक बहिष्कार, गांव छोड़ने तथा पवित्र बंधन का त्याग करके भाई-बहन का रिश्ता कायम करने तक के बेतुकी फरमानों से दुखी होकर कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे हैं।
खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों द्वारा कई बार भावनाओं से वशीभूत होकर उत्तेजित भाषण दिए जाते हैं, जिसे मीडिया द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। इससे खाप पंचायतों की भूमिका का समाज में गलत संदेश जाता है।
आज कुछेक विभाजित खाप प्रतिनिधि अपने निजी स्वार्थो के कारण सामाजिक विवादों को हल निकालने की बजाए सत्ताधारी दलों के राजनेताओं व अपने राजनैतिक आकाओं के सामने उपस्थिति दर्ज कराने में ज्यादा रुचि रखते हैं। पिछले पांच-छह सालों के अंदर ग्रामीण समाज में हुई हिंसक घटनाएं विशेषकर कमजोर नेतृत्व वाली जातियों में हुए विवादों को सुलझाने में भी खाप पंचायतों की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगे हैं। हरियाणा में कैथल, करनाल, झज्जर, गोहाना तथा मिर्चपुर जिला हिसार में हुई पलायन, आगजनी व हत्या की घटनाएं जिनके अंदर सवर्ण जाति के लोगों को मुख्य रूप से दोषी माना गया है, को सुलझाने में भी खाप पंचायतों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे हैं। इन विवादों को सुलझाने व प्रभावित वर्गो में शांति व सुरक्षा का माहौल स्थापित करने में खाप पंचायतें विफल रहीं हैं।
मेरा मानना है कि आज सगोत्र व गोत्र विवाह संबंधी विवाद केवल हरियाणा में नहीं, बल्कि समस्त उत्तरी भारत की एक गंभीर सामाजिक समस्या बन चुकी है और यह जाट वर्ग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य जातियों व वर्गो में भी इस तरह के विवाद उत्पन्न हो रहे हैं।
प्राचीन सामाजिक परंपराएं हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं, जिनका अनुशरण किया जाना बहुत जरूरी है और इन परंपराओं को तोड़ना व उल्लघंन करना सामाजिक अपराध के क्षेत्र में आता है। यह सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार दंडनीय है। हमें हर हालत में दूध व खून के रिश्ते का खयाल रखना है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी मानव शरीर में जींस के संतुलन को कायम रखने तथा वंश के विकास व अनुवांशिक बीमारियों से बचने के लिए सगोत्र शादी वर्जित है। मेरा सुझाव है कि सर्वखाप पंचातयों को भी समय के साथ-साथ अपनी कार्यव्यवस्था व आचार संहिता में जरूरी बदलवाव लाना चाहिए। आज समय तेजी के साथ बदल रहा है। अत: खाप प्रतिनिधियों को भी उदारवादी सोच अपनानी चाहिए।
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