झारखंड जिसे वन प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है, उसे प्रकृति ने भरपूर संपदा से नवाज़ा है! झार का अर्थ होता है पेड और खंड का अर्थ प्रदेश! नाम से ही स्पष्ट है कि वनों का ये प्रदेश निश्चय ही प्राकृतिक संधानों से परिपूर्ण होगा! और ऎसा ही है भी, यहां वन संपदा, कोयला और खनिजों के भंडार हैं! बावजूद इसके ये आदिवासी प्रदेश देश के सबसे गरीब प्रदेशों में आता है! 22 जिले और दो करोड सत्तर लाख की जनसंख्या वाले इस वन प्रदेश का ये दुर्भाग्य ही रहा है कि हमेंशा से ही यहां के भोले-भाले आदिवासियों को छला गया है!
आज से 72 साल पहले आदिवासी महासभा ने अलग झारखंड का जो सपना देखा था वो 15 नवंबर 2000 को आदिवासी नेता बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर पूरा हुआ! इस दिन झारखंड देश का 28 वां राज्य बना! तब ये माना जा रहा था कि अब झारखंड की बदहाली के दिन लद जायेंगे, और ये वन प्रदेश तरक्की की राह में बाकी प्रदेशों को पीछे छोड देगा! क्योंकि जितने प्राकृतिक संसाधन झारखंड के पास हैं उतने सपन्न दूसरे प्रदेश नहीं हैं! लेकिन इसे झारखंड का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि 72 साल पहले देखा गया आदिवासी महासभा का वो सपना पूरा तो हो गया लेकिन परवान नहीं चढ सका! क्योंकि झारखंड राजनीति के खेल में इस कदर उलझ गया कि यहां के मूल मुद्दे आदिवासी और विकास एक बार फिर दरकिनार कर दिये गये!
आदिवासियों के विकास के नाम पर बना ये प्रदेश लूट का केन्द बन गया! झारखंड में जो लूट मची उसे देख कर सारा देश स्तब्ध रह गया! लगातार मुख्यमंत्री बदले गये! खुद को आदिवासियों का नेता बताने वालों ने लूट का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दिया! झारखंड के एक पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोडा इन दिनों भ्रष्टाचार और अकूत संपत्ति अर्जित करने के आरोपों के बाद से ही जेल में हैं ! तो पूर्व मंत्री एनोस एक्का, कमलेश सिंह, और हरिनारायण सिंह भी जेल में उनका साथ दे रहे हैं! कुछ और पूर्व मंत्री और उनके नज़दीकीयों पर भी कानून का शिकंजा जल्द ही कसता दिख रहा है! यानि एक पूर्व मुख्यमंत्री का पूरा मंत्रीमंडल ही प्रदेश को लूटने के आरोपों के चलते सलाखों के पीछे है! झामुमो के मुखिया शिबू सोरेन के समर्थन में बनी मधु कोडा सरकार ने प्रदेश में जो लूट मचाई उसने सारे देश को हैरान कर दिया! और बुध्दिजीवी सोच में पड गये कि लोकतंत्र में यदि चुनी हुई सरकार ही प्रदेश को लूटने लगे तो क्या किया जाये?
इधर मधु कोडा को समर्थन देने वाले शीबू सोरेन का दामन भी पाक साफ नहीं है! उन पर भी कई संगीन आरोप लगते रहे हैं! कितने आश्चर्य की बात है कि झारखंड में सोरेन बीजेपी के सहयोग से मुख्यमंत्री बनते हैं और नई दिल्ली में जाकर कांग्रेस की यूपीए सरकार के पक्ष में वोट करते हैं! इस पर भी जब बीजेपी ने समर्थन वापस लिया तो सोरेन अपनी कुर्सी बचाने के लिये पूरी तरह आश्वस्त दिख रहे थे! शायद उन्हें ये भरोसा था कि कांग्रेस के साथ उनकी डील हो जायेगी और अगर कांग्रेस ने अपना मुख्यमंत्री बनाने की शर्त रखी तो वो केन्द्र में कोई भारी भरकम मंत्रालय मांग कर सौदा पटा लेंगे! लेकिन लगता है अंतिम समय में सोरेन का ये भ्रम टूट गया! और महज़ 14 विधायकों के बल पर झारखंड पर राज करने वाले सोरेन को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पडा!
झारखंड में चाहे राष्ट्रपति शासन लग रहा हो, चाहे वहां विधानसभा निलंबित हो जाये, तब भी राजनीति के गलियारों में जोतोड का खेल बंद नहीं होने वाला! एक तरफ अमीर धरती के गरीब लोग विकास की उम्मीद लगाये बैठे हैं, तो दूसरी तरह उनके नेता जोड-तोड की राजनीति में मगन होकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं! ये वो प्रदेश है जहां लोग बीस रुपये प्रतिदिन से भी कम आय पर अपना गुजारा करते हैं! जहां की साक्षरता, भुखमरी, बेरोज़गारी और मानव विकास संबंधी आकडे आपको हिला कर रख देँगे! लेकिन 72 साल पहले आदिवासी महासभा ने झारखंड प्रदेश का सपना इसलिये तो नहीं देखा था कि झारखंड लूट और राजनीति के अखाडे में तब्दील हो जाये, और यहां के आदिवासी भूख से दम तोडते रहें?
5 comments:
यही परिदृश्य तो लगभग सभी उत्तर भारतीय प्रदेशों की है.
सुन्दर आलेख
आदिवासियों की यही त्रासदी है...जंगल ही इनके जीने का साधन रहा है...लेकिन टिंबर माफिया, प्रशासन, नेताओं की गिद्ध दृष्टि इस जंगल की संपदा को दोनों हाथों से लूटने में लगी है...आदिवासियों की बदकिस्मती रही है कि इन्हें सही मायने में कोई नेतृत्व ही नहीं मिल पाया...
जय हिंद...
पिछले दस बर्षों से निरन्तर स्थिति बदतर होती जा रही है झारखण्ड की। सहमत हूँ आपसे योगेश भाई।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
जब तक नेता स्वार्थी रहेगे तबतक यही होगा. कमीनो को सिर्फ़ अपनी चिंता रहती है और बोलते है जनता के लिये कर रहे है.
इस समस्या का मूल कारण सशक्त नेतृत्व का ना होना ही है.
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