आजकल ब्लागजगत में सीनियर जूनियर की चर्चा बडी जोरों पर है! बीते दिनों सुनने में आया कि जूनियर ब्लागरों ने अपना संगठन भी बना लिया है! भई हमारी तो कुछ समझ नहीं आया! इसलिये आज हमने निश्चय किया कि ज़्यादा से ज़्यादा ब्लाग्स के नये पुराने सभी लेखों को पढा जाये! ताकि पता लगे कि वाकई में ब्लाग जगत में अपनी लेखनी के दम पर कौन सीनियर है और कौन जूनियर! इस काम में पूरा दिन लग गया! कईं ब्लाग्स इतने उत्कृष्ट थे कि दिल बाग्-बाग हो गया! लेकिन अफसोस ऎसे ब्लाग्स भी देखने को मिले जो........!
इन्हें देखकर जो सवाल मन में आया वो ये कि क्या सच में हमलोग पक्के गुटबाज या यों कहें राजनीतिबाज बन चुके हैं कि हम कोई भी जगह राजनीति से अछूती छोडना नहीं चाहते! मुझे समझ नहीं आता कोई ब्लागर किस बिनाह पर जूनियर कहलता है और कोई ब्लागर किस आधार पर खुद को सीनियर कहलवा सकता है! ब्लाग आपकी निजी अभिव्यक्ति है! ये वो ज़रिया है जिसके माध्यम से आप सच को सच और झूठ को झूठ कह सकते हैं! लेकिन याद रखियेगा आपका ब्लाग आपके व्यक्तित्व का दर्पण भी है! यदि आप इसपर पूर्वाग्रहों से भरी बात करते हैं, साम्प्रदायिक या अश्लील विचार रखते हैं या अन्य कोई आपत्तिजनक बात कहते हैं तो ये आपके अपने व्यक्तित्व के लिये ही नुकसानदायक है! और ऎसे में कोई भी आपके ब्लाग को गंभीरता से नहीं लेगा! मुझे नाम लेने की ज़रूरत नहीं लेकिन इन दिनों ब्लागजगत में ऎसे आपत्तिजनक विचारों वाले ब्लाग्स की कोई कमी नहीं है! एक विद्वान महापुरुष जो एक बडे अखबार के संपादक भी हैं उनके बारे में कोई ये सोच भी नहीं सकता है कि वो इतनी साम्प्रदायिक विचारधारा वाले होंगे! लेकिन उनका ब्लाग देखने पर आप खुद हैरान रह जायेंगे कि इतना बडा आदमी इतनी छोटी बातें कैसे कह सकता है? तो वहीं महिलाओं पर आधारित होने का दावा करने वाले एक ब्लाग में आपको ऎसी सोच मिलेगी जो आधुनिकता के नाम पर दिग्भ्रमित करने का काम कर रही है!
ऎसे कईं ब्लाग हैं जो गलत बातों को सही साबित करने के लिये उलझूलूल तर्क दिये जा रहे हैं! जबकि वो खुद ये जानते हैं कि ये उचित नहीं है! हो सकता है इसमें मेंरा भी कोई लेख शामिल हो, क्योंकि मैं कभी पूर्ण सत्य होने का दावा नहीं करता! लेकिन मेरे ब्लाग पर आने वाले ब्लागरों की टिप्पणीयां ही मुझे ये बताती हैं कि मेरी दिशा सही है या गलत! उन ब्लागरों के ब्लाग्स को पढ कर ही मैं इस बात का अनुमान लगाता हूं कि कहीँ वो किसी पूर्वाग्रह के चलते तो मेरी किसी बात का समर्थन या विरोध नहीं कर रहे? इसतरह मुझे ये समझने में मदद मिलती है कि मेरी दिशा सही है या नहीं? इसीलिये अपने ब्लाग में मैं बेनामी टिप्पणीयों को भी स्थान देता हूं! यदि वे शालीन हैं तो उसमें तर्क खोजने की कोशिश करता हूं! यदि वे मेरी लेखनी से सहमत नहीं हैं या उन्हें मेरी लेखनी पसंद नहीं आ रही तो मेरी कोशिश यही रहती है कि यदि वे चाकई में सही हैं तो मैं अपनी गलतियों को सुधार लूं!
लेकिन आज ढेर सारे ब्लाग्स पढकर मुझे इस बात का अंदाज़ा हो गया कि कुछ लोगों ने स्वतंत्रता का मतलब कुछ भी करने या कहने से लगा लिया है! जबकि आपकी स्वतंत्रता तो केवल आपकी नाक की नोक तक सीमित है! और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ये मतलब कतई नहीं कि जो मन में आया वो कह दिया! और बेतुके और फिज़ूल के तर्कों के आधार पर भारतीय संस्कृति पर कीचड उछालने लगे! या साम्प्रदायिक सोच को दर्शाने वाली बातें करने लगे! वाकई में मैं हैरान हूं कि कैसे लोग बेतुके तर्कों के आधार पर अपनी ही सभ्यता और रीति रीवाजों का मखौल उडा सकते हैं! चार किताबें पढ कर ये लोग खुद को सारे जहान से समझदार समझने का दावा कैसे कर सकते हैं! कुछ ऎसे भी युवा देखे जो विदेशों में जाने को ही बहुत बडी उपलब्धि मान बैठे हैं! और वहां बैठ कर अपने ब्लाग्स पर भारतीय संस्क्रिति और यहां के आदर्शों को गरिया रहे हैं! अगर हम थोडा सा सीख कर खुद को समझदार मानने लगें तो ये हमारी बहुत बडी भूल है! हर संस्कृति में अच्छे और बुरे की परिभाषा अलग होती है! जैसे यूरोप में महिलाओं से अभिवादन के वक्त उनके गालों या हाथों को चूमना सभ्य माना जाता है! जबकि हमारे यहां यही असभ्यता की निशानी है!
चोला बदल लेने से व्यक्ति तो बदल नहीं जाता? हमें गर्व होना चाहिये कि हमारी संस्कृति चरित्र पर ज़ोर देती है! क्योंकि शुध्द चरित्र ही शुध्द चिंतन को उत्पन्न करता है! और शुद्ध चिंतन से ही विश्व कल्याण हो सकता है! खैर ये बहस का अच्छा मुद्दा हो सकता है और ऎसे मुद्दों पर सार्थक बहस होनी भी चाहिये ताकि अपने ब्लाग्स पर सिगरेट पीने शराब पीने या अन्य आपत्तिजनक बातों को अपने फिज़ूल के तर्कों से सही बताने वाले नादान ब्लागरों को जवाब मिल सके! और बाकी लोग भी ये जान सकें कि नैतिकता ज़िंदा है अभी!
25 comments:
मैं क्या बोलूँ? मेरे तो सभी अपने हैं.....
हमार कौनू बेगाने हैं भईया? आप नहीं ना बोलेगा तो कैसन चलएगा? चलो इ बताओ आप खुद को सीनियर मानत हो या जूनियर?
शब्दों और बेकग्राउंड का रंग कुछ इस प्रकार रक्खें कि पढ़ने में आसानी हो।
सच कहने की का माद्दा है आपमें! वाकई में विस्फोटक पोस्ट! इस पर अपनी राय देने की हिम्मत कौन करेगा? यहां से निकल लेने में ही समझदारी है मामू!
शुक्रिया चेतन जी! आपके सुझाव के मुताबिक परिवर्तन की कोशिश की है! यदि अन्य कोई सुझाव भी देना चाहें तो स्वागत है!
शत-प्रतिशत सहमत हूँ ।
यहाँ सभी को बात कहने का हक है, मगर सलीके से !
वैसे शब्दों और बेकग्राउंड का रंग पर मुझे भी आपत्ति है !
यदि बैकग्राउँड लाइट क्रीम कर लें शब्द स्वतः उभर आयेंगे !
दिल गार्डन-गार्डन हो गया योगेश जी.. आप कहीं सागर(म.प्र.) से तो नहीं.. खैर जो भी हो आपमें और मेरे में कई समानताएं हैं.. मसलन BHMS में चयन, NSD के सपने, जीव विज्ञान की पृष्ठभूमि, छोटे कस्बे से होना... आज की पोस्ट के विचार एक से होना और भी कई सारी...
"चोला बदल लेने से व्यक्ति तो बदल नहीं जाता? हमें गर्व होना चाहिये कि हमारी संस्कृति चरित्र पर ज़ोर देती है! क्योंकि शुध्द चरित्र ही शुध्द चिंतन को उत्पन्न करता है! और शुद्ध चिंतन से ही विश्व कल्याण हो सकता है!"
आज के युग में भी युवाओं के ऎसे विचार हो सकते हैं, यकीन नहीं होता! बहुत सुन्दर और विचारणीय लेख!
बेहतरीन पोस्ट
वाकई में विस्फोटक है! निकल लो भाई!
सबकी बोलती बंद!
बडे बडों की उतार दी आरती! नाम ना लेकर जिनका ज़िक्र किया है सब जानते हैं उन्हें! वैसे रचना जी भी ज़रूर आयेंगी अपना विरोध जताने!
ब्लागजगत को कूडादान बनने से बचाएं!
शानदार पोस्ट!
चोला बदल लेने से व्यक्ति तो बदल नहीं जाता
सही बात
सुनेगा कौन सक्रिय हैं चोला बदलने वाले
"चोला बदल लेने से व्यक्ति तो बदल नहीं जाता? हमें गर्व होना चाहिये कि हमारी संस्कृति चरित्र पर ज़ोर देती है! क्योंकि शुध्द चरित्र ही शुध्द चिंतन को उत्पन्न करता है! और शुद्ध चिंतन से ही विश्व कल्याण हो सकता है!"....
सार्थक चिंतन ...
सार्थक पोस्ट ...!!
आईये जाने ..... मन ही मंदिर है !
आचार्य जी
योगेश जी..आपने मेरे दिल की बात कह डी...
सार्थक और विचारणीय प्रस्तुती ...
mere bhi dil ka hal kuch aap hi ki tarha he mujhe bhi kal ,,,,, (nam nahi batana chahta )
la phone aaya or kaha bhai aap kis group ko jain karna chahte he
junior ya senior ko mene ab samjh nahi aa raha kya kahun unse
योगेश जी बहुत सटीक बात कही आपने....बड़े तरह तरह के लोग है यहाँ और वैसे ही अलग अलग लिखते है...हमें तो सब चल जाता है...लोगों को विवाद से क्या मिलता है पता नही....आपसे बात तो नही हुए पर आपके विचारों से अवगत होना अच्छा लगा...शुभकामनाएँ
तो वहीं महिलाओं पर आधारित होने का दावा करने वाले एक ब्लाग में आपको ऎसी सोच मिलेगी जो आधुनिकता के नाम पर दिग्भ्रमित करने का काम कर रही है!
i have failed to find any such blog but yes on your blog every alternate psot is against the woman , their rights which are given by law and constitution
i think you need to open your eyes and read more things and then right and be specific dont try to malign all . have guts to take the blog name
भाई योगेश जी, वेहतरीन लेख. ब्लोग जगत मे ये हलचल की बेला है, हम सभी कोशिश करे कि आगे इस उठापटक पर लिखने के बदले सार्थक लेखन करे जो हमारी पहचान के अनुरूप हो.
आपका विचार उत्तम है, पुरानी पोस्टो को पढ़ा जाना जरूरी है, क्योकि इतिहास से बहुत कुछ जानने को मिलता है अगर भूत मे हम सुधार किये होते वर्तमान मे ये दिन देखने न पड़ते, रही बात जूनियर ब्लागर की तो हर व्यक्ति पूर्ण नही है और जूनियर बने रहने मे बहुत फायदे है, सभी के प्यार पाने का पूरा अवसर मिलता है।
फिल्म- देशप्रेमी
गीत-महाकवि आनन्द बख्शी
संगीत- लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल
नफरत की लाठी तोड़ो
लालच का खंजर फेंको
जिद के पीछे मत दौड़ो
तुम देश के पंछी हो देश प्रेमियों
आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों
देखो ये धरती.... हम सबकी माता है
सोचो, आपस में क्या अपना नाता है
हम आपस में लड़ बैठे तो देश को कौन संभालेगा
कोई बाहर वाला अपने घर से हमें निकालेगा
दीवानों होश करो..... मेरे देश प्रेमियों आपस में प्रेम करो
मीठे पानी में ये जहर न तुम घोलो
जब भी बोलो, ये सोचके तुम बोलो
भर जाता है गहरा घाव, जो बनता है गोली से
पर वो घाव नहीं भरता, जो बना हो कड़वी बोली से
दो मीठे बोल कहो, मेरे देशप्रेमियों....
तोड़ो दीवारें ये चार दिशाओं की
रोको मत राहें, इन मस्त हवाओं की
पूरब-पश्चिम- उत्तर- दक्षिण का क्या मतलब है
इस माटी से पूछो, क्या भाषा क्या इसका मजहब है
फिर मुझसे बात करो
ब्लागप्रेमियों... आपस में प्रेम करो
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