Tuesday 16 November 2010

चुप क्यों हैं मनमोहन?

आज आखिर सुप्रीम कोर्ट ने भी ये सवाल पूछ ही लिया जो सवाल मेरे और मुझ जैसे कईं नासमझ हिंदुस्तानियों के दिमाग में लंबे समय से कौंध रहा था. अपनी पिछली पोस्ट में मैंने लगातार सामने आ रहे घोटालों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी का ज़िक्र किया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2 जी स्‍पेक्‍ट्रम घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। अदालत ने पूछा है कि इस घोटाले में केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए राजा को लेकर उठने वाले सवालों का प्रधानमंत्री जवाब क्‍यों नहीं देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस घोटाले से जुड़ी जनता पार्टी के अध्‍यक्ष सुब्रमण्यम स्‍वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह सवाल उठाया। स्‍वामी ने अदालत में याचिका दायर कर राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत देने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि प्रधानमंत्री की 'चुप्‍पी और निष्क्रियता' से हम हैरान-परेशान हैं।

स्वामी ने 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर 2008 में ही प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी थी लेकिन प्रधानमंत्री इसका कोई जवाब नहीं दिया। कोर्ट ने इस पर कहा कि आखिर प्रधानमंत्री ने स्‍वामी की चिट्ठी का जवाब क्‍यों नहीं दिया। अदालत ने कहा कि सरकार को राजा के खिलाफ लग रहे सभी आरोपों का जवाब देना चाहिए। स्‍वामी की याचिका में सरकारी महकमे में हो रही 'गड़बड़ी' के कई उदाहरण पेश किए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीएम ने इससे पहले राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी क्‍यों नहीं दी।

1.76 लाख करोड़ रुपये के गड़बड़झाला को लेकर कैग की रिपोर्ट आज संसद में पेश कर दी गई जिसमें राजा पर अंगुली उठाई गई है। इसमें प्रधानमंत्री को क्‍लीन चिट देते हुए कहा गया है कि राजा ने प्रधानमंत्री की सलाह को दरकिनार करते हुए स्‍पेक्‍ट्रम आवंटित किए। ऐसे में सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दलों के हाथ 'ठोस हथियार' लग गया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्‍यूरो (सीबीआई) भी राजा से पूछताछ की तैयारी में हैं।

कामनवेल्थ गेम्स, आदर्श या 2जी स्पेक्ट्रम की बात हो, हर वक्त प्रधानमंत्री ने रहस्यमयी चुप्पी ही साधे रखी है. सवाल ये है कि सरकार के मुखिया के तौर पर पीएम की क्या कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती.ये घोटाले एक दिन में नहीं हुए हैं. ये लंबे समय से होते रहे हैं और जब अति हो गई तो घोटाले उजागर हो गये. हैरानी वाली बात ये है कि इन सभी घोटालों की प्रारंभिक अवस्था में सरकार ने इस बात से इंकार किया कि कोई घोटाला हो रहा है. और जब घोटाला हो चुका तब सरकार की तरफ से बयान आया कि दोषियों को बक्शा नहीं जायेगा. कहीं ये घोटालों को संरक्षण देने की रणनीति का हिस्सा तो नहीं है? प्रधानमंत्री को अपनी चुप्पी तोडते हुए इस बात का जवाब देना चाहिये. आखिर वो देश के नेता हैं और सरकार के मुखिया. सारा देश आज उनकी तरफ टक-टकी लगाये देख रहा है. ऐसे में उनकी रहस्यमयी चुप्पी उनके दामन पर दाग लगा रही है.



हमारे देश में आर्थिक अपराध करना बहुत आसान है. घोटाला जितना बडा होगा आरोपी के बचने की संभावना भी उतनी ही ज्यादा होती है. ऐसे अपराधों में कानून स्पष्ट रूप से सख्त सज़ा का भी कोई प्रवाधान नहीं करता. आज़ादी के बाद से लेकर अबतक शायद ही ऐसा कोई साल बीता होगा जब कोई बडा घोटाला ना हुआ हो. लेकिन क्या आपको ऐसा कोई साल याद है जब किसी भी बडे घोटालेबाज़ को सज़ा हुई हो? शायद यही कारण है कि हमारे देश में लंबे समय से मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक मौका पाकर शान से घोटाले करते रहे हैं. और बाद में काफी हो हल्ले के बाद इस्तीफा देकर देश पर एहसान करने की परंपरा सी बन गई है. लेकिन डी राजा तो इससे भी एक कदम आगे निकल गये. काफी समय पहले ही उजागर हो चुके इस घोटले में राजा ने इस्तीफा देने से साफ इंकार कर दिया था. और मनमोहन चाह कर भी उन्हें हटाने की हिम्मत नहीं दिखा पाए थे. सुप्रीम कोर्ट ने भी यही सवाल पूछा था कि आखिर राजा इतने बडे घोटाले के बाद भी गद्दी पर विराजमान क्यों हैं? गठबंधन की राजनीति की अपनी मजबूरियां होती हैं, लेकिन कोई भी मजबूरी देश हित से बडी नहीं हो सकती. इसलिये प्रधानमंत्री को अपनी चुप्पी तोड कर देश को ये बताना चाहिये कि आखिर क्यों उनकी सरकार में घोटालों की बाढ आ गई है? और घोटालेबाज़ों को उनके असली अंजाम तक पहुंचाने के लिये वो क्या कर रहे हैं? अगर वो ऐसा नहीं करते हो मनमोहन सरकार घोटालों की सरकार बनकर रह जायेगी.

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